Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कमरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ११७८-१२३७
८५-चार चौरासी सात यज्ञ ११ बार संघ निकाल संघ पूज कर पहरामणी दी। ८६-संघ निकाला सर्व यात्रा की सोने की सुपारियां पहरामणी में दी। ८७-चौरासी ज्ञानभण्डार स्थापना करके सर्व आगमों की पेटियां दी। ८८-सात बार तीर्थों के संघ, संघ पूजा एक एक मुद्रिका दी। ८९-शत्रुजयतीर्थ के मंदिरों का उद्धार पुनः प्रतिष्ठा करना सोने की ध्वजा चढ़ाई। ९०-केशर और कस्तूरी की वालद मंदिरों में चढ़ाई। ९१-सात वार चौरासी तीन बार संघ, मंदिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाये । ९२-एक शत्रुजय एक गिरनार पर सोने का तोरण चढ़ाया माला पहराई । ९३-सम्मेतशिखरजी का संघ समुद्र तक सोना मुद्रा की पहरामणी दी। ९४-चौरासी देहरी का मंदिर संघ पूजा, पांच-पांच मुहरें पहरामणी में दी । ९५-दुष्काल में अन्नघास दिया, संघ पूजा स्वर्ण मुद्रिका दी। ९६-आपके पास पारसमणि थी, लोहे का सोना बनाकर संघ पूना की सेर की थाली पहरामणी में दी। ९७-सकल तीर्थों की यात्रा की संघ पूजा कर एक एक मुहर पहरामणी में दी। ९८-चौरासी देहरी का मंदिर बनवा कर स्वर्ण प्रतिमा स्थापन कराई संघ पूजा की । ९९-सात वार चौगसी घर श्रांगण बुलाई वस्त्राभूषणों की पहरावणी दी। १००-चार यज्ञ किये दुकालों को सुकाल बनाये ४ मंदिरों की प्रतिष्ठा की। १०१-आब और गिरनार पर मंदिर बनवा कर स्वर्ण कलश चढ़ाये संघ पूजा की। १०२-चार बार चौरासी न्याति घर आंगन बुलाई एक करोड़ द्रव्य व्यय किया । १०३-केसर की बालद ऋषभदेव के मन्दिर पर चढ़ाई और संघ पूजा की। १०४-जनसंहार और तीन वर्ष लगातार दुष्काल पड़ा पांच करोड़ रुपये व्यय किये । १०५-सात मन्दिर बनवाये स्वर्ण कलश ध्वजा दंड की प्रतिष्ठा और संघपूजा । १०६-एक बीस आचार्यों को सूरिपद । आगम लिखा कर दिये । संघपूजा को । १०७-श्रमण सभा करवाई । संघपूजा में सोने की कंठियाँ तथा याचकों को दान दिया। १०८-सात बार संघ निकाला यात्रा की संघ पूजा और एक मोहर दी। १०९-चार चौरासी घर बुलाई पहरावणी में सोने की सुपारियाँ दी। ११०-सकल तीर्थों की यात्रा मन्दिर बनवा कर यात्रा कराई और संघपूजा की। १११-दुकाल में अन्न घाम दिया सहधर्मियों के अर्थ एक करोड़ द्रव्य दिया। ११२-सम्मेतशिखर की यात्रार्थ संघ और संघ को पांच पांच मुहरें दी। ११३-केसर धूप कस्तूरी की गुणे मन्दिरों में चढ़ाई संघपूजा की। ११४-मन्दिर बनवा कर मूर्ति सुवर्ण की बनवाई नेत्रों के स्थान दो मणियां लगाई। ५१५-सर्व तीर्थों का संघ निकाल पृथ्वी प्रदक्षिणा की एक एक मोहर पहरावणी में दी । ११६-आपके पास चित्रावल्ली थी संघ पूजा और पच्चीस २ मुहरों की पहरावणी दी। ११७-तीन दुष्कालों में तीन करोड़, सात क्षेत्र में सात करोड़ द्रव्य व्यय किया तथा संघपूजा कर ७४॥ शाहों की ख्याति
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