Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ८६२-६५२ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
प्रकार का समाज था पर आप उनको एक रथ के दो पहिये समझ कर शासन रथ को चलाने में बड़ी ही कुशलता से काम लेते थे । अतः आपका प्रभाव दोनों पर समान रूप से था । आप श्री का शिष्य समुदाय भी बहुत विशाल था व उग्रविहारी सुविहित मुनियों की भी कमी नहीं थी । अतः कोई भी प्रान्त उपकेशगच्छीय मुनियों के विहार से रिक्त नहीं रहता । स्वयं आचार्य श्री भी प्रत्येक प्रान्त में विहार कर धर्म प्रचारार्थ प्रेषित जन मण्डली को धर्म प्रचार के लिये प्रोत्साहित करते रहते थे । आचार्यश्री इस छोर से उस छोर तक भारत की प्रदक्षिणा कर मुनियों के कार्यों का निरीक्षण करते थे । आपने अपने ६० वर्ष के शासन में अनेक मुमुक्षुभावुकों को दीक्षा दी। अनेकों अजैनों को जैन बनाये । अनेक मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठाएं करवा कर जैन शासन की ऐतिहासिक नींव को दृढ़ की । श्रीसंघ के साथ कई बार तीर्थों की यात्रा कर पुण्य सम्पादन किया । वादियों के साथ शास्त्रार्थ कर जैनधर्म की विजयपताका को फहरायी ।
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इस प्रकार आचार्यश्री का जैन समाज पर बहुत ही उपकार है । इस अवर्णनीय उपकार को जैन संघ का प्रत्येक व्यक्ति स्मृति से विस्मृत नहीं कर सकता है। यदि हम ऐसे उपकारियों के उपकार को भूल जावें तो जैन संसार में हमारे जैसे कृतघ्नी और होंगे ही कौन ? शास्त्रकारों ने तो कृतघ्नता को महान् पाप बतलाया है। इतना ही क्या पर जिस समाज में उपकारी के उपकार को भूला जाता है उस समाज का पतन करोड़ों उपाय करने पर भी नहीं रुक सकता है। हमारी समाज के पतन का मुख्य कारण भी कृतघ्नत्व ही है ।
आचार्यश्री सिद्धसूरि ने अपनी अन्तिम अवस्था में नागपुर के आदित्यनाग गौत्रीय चोरलिया शाखा के परम भक्त श्रद्धा सम्पन्न शाह मलुक के नव लक्ष द्रव्य व्यय से किये हुए महा महोत्सव पूर्वक आदिनाथ भगवान् के चैत्य में चतुर्विध श्रीसंघ के समक्ष उपाध्याय मुक्तिसुन्दर को सूरि पद से विभूषित कर आपका नाम परम्परानुसार कक्कसूरि रख दिया। इस शुभ अवसर पर योग्य मुनियों को पदवियां प्रदान की गई। अन्त में आप अपनी अन्तिम संलेखना में संलग्न हो गये । क्रमशः २४ दिन के अनशन के साथ समाधि पूर्व स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिया ।
पूज्याचार्य देव के ६० वर्षों के शासन में मुमुक्षुओं की दीक्षाएँ ।
प्राग्वटवंशी जाति के शाह
१ - चन्द्रपुर २- भद्रावती ३- नरवर ४- उच्चकोट ५ त्रिभुवनगढ़
६- मालकोट
७ - वीरपुर
-तेजोड़ी
६- राजाणी
१० - दुखी
११ - सराउ १२ - जैतपुर १३- हाडोली १४ - करजी १५ - वर्धमानपुर,
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श्रेष्टि गौत्र
चोरड़िया
नाहटा
चरड
मल
चंडालिया
कुबेरा
पोकरणा
शंका
हिंगड़ गुलेच्छा मोडियारणी
भूतिया
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मुं
देवाने
कुम्भाने
आसलने
हाका
मोकमने
रूपाने
धनाने
फूलने
दुर्गा
जाल्हाने
पोमाने
मानाने
कुशल
राजसीने
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सूरिजी के पास दीक्षा ली
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सूरीश्वरजी के शासन में दीचाएं
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