Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ ओसवान सं० १३५२-१४११
राव जाधो चूंडा चोपो रोड़ो र हारो पुरा नादो गोपी
(म० मं०) (इन सबों का परिवार वंशावली में बहुत विस्तृत है)
(शत्रुज्जय का संघ)
लाखण
सांगण करमण (पावा में मंदिर)
रावण पातो
(शत्रुञ्जय का संघ)
दुल्लो दुर्गो
धर्मसी
दोलो ___दुल्ला ने गुंद का बहुत ही जोरदार व्यापार किया इससे आपकी सन्तान गुंदेचा नाम से प्रसिद्ध हुई। राव दुल्ला ने श्री शत्रुञ्जय का बहुत ही बड़ा संघ निकाला था और स्वधर्मी भाइयों को स्वर्ण मुद्रिकादि की प्रभावना व याचकों को पुष्कल दान दिया था जिससे आपकी कीर्ति चतुर्दिक में प्रसरित होगई थी।
इस गुंदेचा जाति की एक समय बहुत ही उन्नति हुई थी। गुंदेचा जात्युत्पन्न महानुभावों में बहुत से तो ऐसे महापुरुष पैदा हुए कि जिनके नाम की अनेक प्रकार की जातियां शाखाएं एवं प्रशाखाएं होगई। उदाहरणार्थ-गंगोलिया वागोणी, मच्छा, गुदगुदा, रामानिया, धामावत् इत्यादि अनेक शाखाएं गुंदेचा गोत्र की ही हैं । इस जाति की वंशावलियाँ बहुत विस्तृत है तथापि इस जाति के नरपुङ्गवों से किये गये कार्यों का टोटल वंशावलियों के आधार पर निम्न प्रकारेण है
१०६ जैन मन्दिर, धर्मशालाएं एवं जीर्णोद्धार करवाये । २४ बार यात्रार्थ तीर्थों के संघ निकाले । ५२ बार संघ को अपने घर बुलाकर संघ पूजा की।
५ बार जैनागम लिखवा कर ज्ञान भण्डार में स्थापित करवाये । १३ वीर संग्राम में वीरता पूर्णक वीर गति को प्राप्त हुए।
६ वीराङ्गनाएं पतिदेव के पीछे सती हुई।
इत्यादि अनेक पुण्योपार्जन के कार्य कर जैन धर्म की उन्नति एवं प्रभावना की। इस जाति की कुछ वंशावलियां विक्रम सं० १०२६ से १६०६ तक की लिखी हुई मुझे प्राप्त हुई हैं; उन्हीं के आधार पर इस जाति के महापुरुषों के द्वारा किये गये कार्यों के आंकड़े लिखे हैं। दूसरी तो न जाने कितनी वंशावलियां और होंगी ? इस जाति के महानुभावों को अपने पूर्वजों के इतिहास को एकत्रित कर जन समाज के सम्मुख रखने का प्रयत्न करते रहना चाहिये।
इस प्रकार आचार्य देवगुप्तसूरि ने भू भ्रमन कर अनेकों मांस मदिरादि कुव्यसन सेवियों को प्रतिराव लाधा का वंशवृक्ष
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