Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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श्राचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ श्रोसवाल सं० १४३३-१४७४
तत्पश्चात् सूरिजी ने राव महाराव आदि वीर क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर जैनधर्म में दीक्षित किये । सत्यपुर से तीन कोस की दूरी पर मालपुरा नामका रावजी की जागीरी का ग्राम था अतः रावजी ने अपने ग्राम को पावन बनाने के लिये व अपने समान अन्य बन्धुओं का उद्धार करने के लिये सूरीश्वरजी से अत्यन्त विनयपूर्वक प्रार्थना करने लगे । रावजी की प्रार्थनानुसार उपकार का कारण जान कर सूरिजी थोड़े साधुओं के साथ वहाँ गये एवं वहीं ठहर गये । उस ग्राम के लोगों को धर्मोपदेश देकर के श्रावकों के करने योग्य कार्यों का बोध करवाया | जैनधर्ग के तत्वज्ञान एवं शिक्षा दीक्षा से परिचित किया। उस समय के जैनाचार्यों की दूरदर्शिता तो यह थी कि वे जहां नये जैन बनाते वहां सब से पहिले धर्म के भावों को सर्वदा के लिये स्थायी रखने के लिये जिन मन्दिर निर्माण का उपदेश देते। कारण, प्रभु प्रतिमा धर्म की नींव को मजबूत बनाने के लिये व धार्मिक भावनाओं की स्थिरता के लिये प्रमुख साधन हैं । तदनुसार सूरिजी ने रावजी को उपदेश दिया और रावजी ने सूरिजी के कहने को स्वीकार कर मन्दिर का कार्य प्रारम्भ कर दिया । कुछ दिनों पर्यन्त सूरिजी ने वहां स्थिरता की पश्चात् अपने कई साधुओं को वहां रख आपने अन्यत्र विहार कर दिया । इस घटना का समय पट्टावली कारों ने वि० सं० १०४३ का लिखा है ।
जब राव महाराव का बनवाया हुआ मन्दिर तैयार होगया तो प्रतिष्ठा के लिये आचार्यश्री सिद्धसूरि को आमन्त्रित कर सम्मान पूर्वक बुलवाया। श्रीसूरिजी ने भी वि० सं० १०४५ के माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम से प्रतिष्ठा करवाई जिससे जैनधर्म की बहुत प्रभावना हुई। अहा ! जैनाचार्यो का हम लोगों पर कितना उपकार है ? प्राणियों के रुधिर से रंजित हस्तवाले, जैनधर्म की निंदा व जैन श्रमणों का तिरस्कार करने वाले प्याज जैनधर्म को विश्व व्यापी बनाने की उन्नत भावना में अग्रसर होगये हैं ।
अस्तु वंशावलियों में राव महाराव का परिवार इस प्रकार लिखा है
राव महाराव ( पार्श्व० मन्दिर)
पारस
शिव
सांवत सबलो (गरुड कहलाये )
संखला गोकल रावल हरपाल ( इन चारों के परिवार का विस्तार से उल्लेख है )
काम्हण केलो
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रेखो आखो जालो भूतो नारायण
( इनका परिवार भी बहुत विस्तृत है । वंशावलियों से ज्ञेय है )
खेतो
T चूंढो गोविंद देवपाल सोनल
( इन बन्धुओं की वंशावली भी पर्याप्त परिमाण में विशद है )
भीमो ( भ० महावीर का मन्दिर ) गेनो
पातो नोथो जोधी (शत्रु का संघ निकाला )
गरुड़ जाति की उत्पति और वंशवृक्ष
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T
देदो
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