Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० १.३३-२०७४
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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पुरुषों के नाम पर अनेक शाखा, :प्रशाखाएँ प्रचलित हुई। जैसे कि-गरुड़, घोडावत, सोनी, भूतड़ा, संघी खजाश्ची, पटवा, फलोदिया आदि ।
भूरा जाति-पॅवर सरदार भूरसिंह अपने साथी सरदारों के साथ प्रामान्तर जा रहे थे इधर विहार करते हुए प्राचार्य परमानन्द सूरि अपने शिष्यों के साथ जंगल में पारहे थे जिन्हों को देखकर एक सरदार
पशुकन की भावना कर दो चार शब्द साधुओं से कहे इतने में पीछे से आचार्यश्री भी पधार गये और उन सरदारों को जैन मुनियों के प्राचार विचार के विषय में उपदेश दिया तथा अपने रजोहरण के अन्दर रहा हुधा अष्ट मंगलरूप पाटा दिखाया सूरिजी का उपदेश सुन राव भूरसिंह ने जैन मुनियों के त्याग वैराग्य और शुभभावना पर प्रसन्न होकर धर्म का स्वरूप समझने की जिज्ञासा प्रकट की फिर तो था ही क्या सूरिजी ने क्षत्रियों का धर्म के विषय युक्ति पुरस्सर समझाया कि भूरसिंह पहले शिव भक्त था और भजन खूब करता था उसके हृदय में यह बात ठीक जच गई कि आत्म कल्याण के लिये तो विश्व में एक जैनधर्म ही उपादेय हैं सूरिजी से प्रार्थना की कि यहां से चार कोस हमारा नारपुर ग्राम है वहाँ पर आप पधारे हम आपका धर्म सुनेंगे क्योंकि मेरी रुचि जैनधर्म की ओर बढ़ी है इत्यादि । सूरिजी भूरसिंह का कहना स्वीकार कर नारपुर की ओर चल दिये । भूरसिंह ने सूरिजी की खूब भक्ति की और हमेशा सूरिजी का व्याख्यान मुन गहरी दृष्टि से विचार किया और आखिर कई लोगों के साथ उसने जैनधर्म को स्वीकार कर उसका ही पालन किया। भूरसिंह ने नारषुर में भ० पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया भूरसिंह के सात पुत्र थे वे भी सबके सब जैन धर्म की आराधना करते थे उन्होंने भी अनेक कार्य जैनधर्म की प्रभावना के किये इससे भूरसिंह की सन्तान को भूरा भूरा कहने लगे धागे चलकर भूरा शब्द जाति के नाम से शुरु होगया इस जाति की उत्पति के अलावा वंशावलियाँ सुझे नहीं मिली अतः यहाँ नहीं लिखी गई हैं।
छावत गोत्र- आचार्यश्री सिद्धसूरिजी महाराज परिभ्रमन करते हुए मालवा प्रदेश में पधारे। मालवा निवासी परमार वंशीय आमिषाहारी, हिंसानुग्रामी क्षत्रियों को प्रतिबोध देकर उन्हें अहिंसा भगवती एवं जैन धर्म के उपासक बनाये। उक्त समुदाय में मुख्य राव लाहड़ था। लाह
समुदाय में मुख्य राव छाहड़ था। लाहड़ का पुत्र मल बड़ा ही धर्मात्मा था। उसने अपने न्यायोपार्जित द्रव्य से शत्रुञ्जय का संघ निकाल कर जिनशासन की प्रभावना की थी। धारानगरी के बाहिर भगवान महावीर का मन्दिर बनवाकर आपने प्रतिष्ठा करवाई थी। इस तरह दर्शन पद की आरा. धना के साथ ही साथ अनेक शासन-अभ्युदय के कार्य किये। आपका समय पट्टावलीकारों ने वि० सं० १०७३ का लिखा है। आपकी संतान छावत के नाम से प्रसिद्ध हुई। आपकी वंशावली इस प्रकार मिलती है।
राव गहड़
-
कुंपा
तोला
माला (संघ)
हडमंत
दोलो खरत्थो
I (महावीर म०)। दलपत कालिया
। लणे पाचो दुर्गा
गोगो
पातो
कानड़
पुनड़ (संघ निकाला)
महादेव
का
चतरी
चैनो सुखो बारम
करमण
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