Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १३५२-१४११
जब श्रावक वर्ग सूरिजी के पास व्याख्यान सुनने को आए और उस सुगन्ध के आश्चर्य की चर्चा व्याख्यान में की तब सूरीश्वरजी महाराज ने फरमाया कि श्रावकों ! सुगन्ध का मूल कारण मुनि सोमसुन्दर है। यह मुनि नन्दीश्वर तीर्थ की यात्रार्थ नन्दीश्वर द्वीप में गया था और वहां की यात्रा कर पुनः आते समय एक देवनामी पुष्प साथ में लेता आया उस पुष्प की सौरभ सर्वत्र प्रसारित हुई है। इस पर उपस्थित सब लोगों को बड़ा भारी आश्चर्य हुआ। हां आचार्य पादलीप्त सूरि वगैरह के चरित्र में आकाश गमन विद्या का वर्णन तो आता है, प्राचार्य वज्रसूरि आकाश गमन विद्या से दुर्भिक्ष में संघ का रक्षण किया तथा प्रभू पूजा के लिये श्रावकों के अत्याग्रह से बीस लक्ष पुष्प आकाश गमन विद्या के बल से ले आए पर नंदीश्वर द्वीप की यात्रा करने का अधिकार आज पर्यन्त नहीं सुना था।
आचार्यश्री ने मुनि सोमसुन्दर को सभा में बुलवा कर संघ के समक्ष सब हाल कहने को कहा इस पर मुनि सोमसुन्दर ने नन्दीश्वर द्वीप का सब हाल कह सुनाया। यद्यपि यह सब हाल शास्त्रों में विद्यमान है तथापि आपने अपनी आँखों से और देव की सहायता से जो देखा सुना वह यथावत् अर्थात् ज्यों का त्यों कह दया। जैसे:
१-नन्दीश्वर नाम का आठवां द्वीप है १६३८४००००० लम्बा चोडा है।
२-इस द्वीप के मध्य भाग में अरिष्ट रत्नोंमय चारों दिशाओं में चार अंजनगिरी पर्वत हैं और प्रत्येक अंजनगीरी १००० योजन धरती में और ८४००० योजन धरती ऊपर ऊंची है। भूमि पर दस हजार योजन का विस्तार चौड़ा है बाद क्रमशः कम होता-होता ऊपर एक हजार योजन का विस्तार रह जाता है।
३-अंजनगिरी पर्वत के ऊपर का तल रत्न जड़ित है जिस पर एक सिद्धायतन है जिसको देख कर मेरे हर्ष का पारावार नहीं रहा। जहाँ-जहाँ नज़र दौड़ाई तो रत्नों को चमक दमक ने मेरे दिल में बड़ा भारी
आश्चर्य उत्पन्न कर दिया। वह जिन मन्दिर एक सौ योजन का चौड़ा पचास योजन का पहुल बहुतर योजन का उँचा था जहां तक मनुष्य की दृष्टि पहुँच ही नहीं सकता है तथा उस मन्दिर के चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं वह सोलह योजन ऊंचा आठ योजन चौड़ा है। उन चारों मुख्य मंडयों के आगे चार प्रक्षेप मंडप हैं जो सौ योजन लम्बा पचास योजन चोड़ा है । साधिक सोलह योजन ऊँचा है उन प्रक्षेप मंडपों के मध्य भाग
मणिपीठ चबुतराहे जो पाठ योजन लम्बा चार योजन चोड़ा उस पर एक सिंहासन देवदष वस्त्रसहित तथा एक वनमय अंकुश और उन अंकुशों के अन्दर घट के प्रमाण की मुक्ताफल की मालाएँ सुन्दर ढङ्ग से पोई हुई और पीछे फून्दा भी लगा हुआ है उन प्रक्षेप घर मंडपों के आगे एक-एक स्तूप जो साधिक सोलह योजन के विस्तार वाला है प्रत्येक स्तूप के चारों दिशाओं में चार मर्णिपीठ चबूतरे हैं उन मणिपीठ पर चार चार शांत मुद्राएं पद्मासन सहित जिन प्रतिमाएं हैं जो स्तूप के सन्मुख मुंहकर विराजमान हैं। वहाँ पर हमने बड़े ही हर्प और आनन्द से स्तुति-दर्शन किया उन प्रत्येक स्तूप के आगे एक-एक मणिपीठ चबूतरा है और उस प्रत्येक मणिपीठ पर एक-एक चैत्यवृक्ष जो उनके सर्वाङ्ग विचित्र रत्नोमय है उन चैत्यवृत्तों के आगे और पाठ योजन का मणिपीठ आता है और प्रत्येक मणिपीठ पर एक-एक महिन्द्रध्वज सहस्र ध्वजाओं के साथ चौसठ योजन ऊंची आकाश के तले को उल्लंघन करने वाली खूब लहरा रही है उन प्रत्येक इन्द्रध्वज के आगे जाने पर एक-एक नन्दापुष्करजी वापि आती है वह एक सौ योजन लम्बी और पचास योजन चौड़ी और दस योजन गहरी जो अनेक प्रकार के कमल, तोरण, ध्वज, चामर, छत्र से बहुत ही शोभायमान दर्शकों के मनको
आनन्द पहुंचाने वाली है। उन नन्दा पुष्करणी के आगे एक-एक बन खण्ड आ गया है जिसकी शोभा का वर्णन एक जिह्वा से नहीं किया जा सकता है मेरा दिल वहाँ से हटने को बिलकुल नहीं होता था और उन बन खण्डों के प्रत्येक दिशा में ४००० गोल व ४००० चौखूटे आसन लगे हुए हैं जो देवांगना एवं देवता वहाँ यात्रार्थ आते हैं, उनके बैठने के लिये काम आते हैं यह सो एक अंजनगिरी पर्वत का मूल एक मन्दिर के चार नन्दीश्वर द्वीप की यात्रा का वर्णन
१३६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org