Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १३५२-१४११
दीक्षा ली
महात्माओं पर जनता की कैसी श्रद्धा एवं भक्ति थी ? सच कहा जाय तो उस विश्वास एवं श्रद्धा ही उनके अभ्युदय का मुख्य कारण था। चाहे सुविहित हो चाहे शिथिल चैत्यवासी हो पर परस्पर एक दूसरे की श्रद्धा न्यून नहीं करते थे वे जानते कि आज मैं दूसरों की श्रद्धा विश्वास न्यून कर दूंगा तो दूसरा मेरा विश्वास उठा देगा इससे गृहस्थ लोग श्रद्धा एवं विश्वासहीन हो जायंगे। इससे शासन एवं समाज का पतन होना निश्चय है अतः वे दीर्घदर्शी प्रत्येक व्यक्ति की प्राचार्य एवं मुनियों के लिये श्रद्धा बढ़ाया करते थे जब से मुनियों में ऐसी कुत्सित भावना पैदा हुई कि अपनी प्रशंसा, दूसरों की निंदा तब से ही समाज का पतन प्रारम्भ हुआ। क्रमशः उसने उग्र रूप धारण कर ही लिया।
यों कहो तो उन भाग्यशाली पुरुषों का पुन्यबल बड़ा ही जबर्दस्त था कि उनके जरिये से जो शासन का कार्य होता वह अच्छे से अच्छा लाभप्रद ही होता था आज हमारे संकीर्ण हृदय में उस समय की विशाल बातों को स्थान नहीं मिलता हो पर वास्तव में उनके जीवन की एक एक घटना सञ्चाई को लिये हुए प्रमाणिक ही कही जा सकती है।
पूज्याचार्य देव ने अपने ५६ वर्षों के शासन में मुमुक्षुओं को जैन दीक्षाएं दीं। १-रणथंभोर
बाफना जाति के मोहन ने २-गोपगिरी तोडियाणी
पारस ने ३-सारंगपुर समदाड़िया
पुड़न ने ४-योगनीपुर छाजेड़
पेथा ने ५-ब्रह्मपुरी
आय्य ६-राजपुर
राखेचा
गोमाने ७-नाणपुर
श्रेष्टि
बालु ने ८-विजयपुर
चोरडिया
वीरम ने १-कालेरा सचेति
भोजा ने १०-लोद्रयापुर
श्रीश्रीमाल
तोला ने ११-दीववंदर
नक्षत्र
पद्मा ने १२-राजोरी
गुरुड़
पर्वत ने १३-पाटली
चंडालिया
वाघा ने १४-बुरड़ो
कंकरिया
आणाने १५-दात्रीपुरा
पोकरणा
खेता ने १६-विजोरा
देसरड़ा
भैरा ने १७-नादुली
कुंकुंम
जैनसी ने १८-मेदिनीपुर
सुघड़ १६-आमेर
भुरंट
मूला ने २०-संगानेर
गोगला
लाखण ने २१-करोखी
केसरिया
धीराने २२-अर्जुनपुरी
आखा ने २३-भाभेसर
प्राग्वट २४-विराटपुर
आदू ने सूरीश्वरजी के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ
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मलुका ने
डिडू
भाला ने
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ernational १७४
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