Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १४११-१४३३
४६-आचार्यश्री देवगुप्तसूरि (१०वाँ)
सूरिश्वोरडिया प्रधान पुरुषो गुप्तोत्तरो देवमाक् । शिष्यान् स्वान् स विहार माज्ञपितवान् प्रान्तेषु सर्वेषु च ॥ जित्वा वादीजनामनेक गणना संख्यापितान् सुव्रती ।
शिष्याँस्ताँग्ध विधाय कीर्ति लतिकामास्तीर्णवान् भूतले ॥ न रम पूजनीय आचार्यश्री देवगुप्त सूरिश्वरजी महाराज बड़े ही प्रतिभाशाली, उग्र विहारी,
सुविहित शिरोमणि, प्रखर विद्वान , सफल वाङ्गमय साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित, जिनशासन के प्रखर प्रचारक आचार्य हुए।
आप दशपुर नगर के आदित्य नाग गौत्रीय चोरड़िया शाखा के मंत्री सारङ्ग की पतिधर्म परायण, परम सुशीला, गृहिणी रत्नी के होनहार लाडिले पुत्र थे ! आपके जन्म के समय मन्त्री सारङ्ग ने महोत्सव मात्र में ही एक लक्ष द्रव्य व्यय किया था। कारण, आपके पूर्व इनके कोई भी सन्तान नहीं थी । अतः पुत्रोत्सव के अपूर्वोत्साह में इतने रुपये व्यय करना भी नैसर्गिक ही था। माता रत्री की कुक्षि में जब एक पुण्यशाली जीव श्रावतरित हुआ तब अर्धनिशा में उसने षोड़शकला से परिपूर्ण चंद्र का स्वप्न देखा । जन्म महोत्सवानन्तर पूर्वदृष्ट स्वशानुवत् पुत्र का नाम भी चन्दकुंवर ही रख दिया। मन्त्री सारङ्ग पहिले से ही अपार सम्पत्ति का धनी धन वेश्रमण था पर चन्द्र के जन्म के पश्चात् तो उसके घर में हरएक प्रकार की ऋद्धि सिद्धि लहराने लगी । इकलौते पुत्र का पालन पोषण भी बहुत ही लाड़ प्यार से होने लगा । जब क्रमशः चंद २-३ वर्ष का हुआ तब तो उसकी तुतलाती हुई मधुर वाणी ने केवल माता पिताओं के ही मन को नहीं अपितु हर एक दर्शक के हृदय को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। कौटम्बिक पारवारिक लोगों के लिये तो चक्षवत अ लम्बन भूत व दीर्घ कालीन चिन्ता शोक के शमन के लिये शान्ति मन्त्र सिद्ध हुआ। गार्हस्थ्य जीवन की जटिल समस्याओं में उलझा हुआ उद्विग्न खिन्न हृदय व्यक्ति भी चन्द की तोतली वाणी को श्रवण कर चिन्ता मुक्त हो जाता । इस तरह हरएक व्यक्ति को हर्षित एवम् प्रमुदित करने वाला चन्द, द्वितीया के चन्द्र की भांति हर एक बातों में बढ़ने लगा।
जब चन्द की वय विद्या पठन योग्य हुई तब सारङ्ग ने चन्द के लिये धार्मिक, व्यापारिक, राजनैतिक आदि हरएक विषय में सविशेषानुभव पूर्ण परिपक्कता प्राप्त करने के लिये योग्य साधनोंको उपलब्ध कर दिया। कुशाग्रमति चंद भी शिशु अवस्थोचित बाल चापल्य में यौवन-गाम्भीर्य को प्रकट करता हुआ एकाग्र चित्त से पठन कार्य में संलग्न हो गया। इधर चंद की माता रत्री ने भी चन्द के पश्चात् क्रमशः चार पुत्र एवं तीन पुत्रियों को जन्म देकर अपने स्त्री जीवन को सफल बनाया । चारों पुत्रों के नाम-सूगो, गोरख, अमरो और लालो तथा पुत्रियों के नाम पाँची, सरजू, वरज निष्पन्न कर दिये। जब चंद की वय सोलह वर्ष की होगई तब तो उसने आवश्यक विद्या एवं कलाओं में भी पूर्ण निपुणता प्राप्त करली। अब सो रह रह कर सारङ्ग के पास बड़े बड़े उच्च घरानों के चंद के लिये विवाह के प्रस्ताव आने लगे। इतना होने पर भी मन्त्री सारङ्ग की आन्तरिक अभिलाषा चन्द की परिपक्कावस्था ( २५ वर्ष की वय) में विवाह करने की थी चंद भी पिता के इन दूरदर्शिता पूर्ण विचारों में सहमत था पर माता रत्नी को इन दोनों के उक्त विचार रुचिकर नहीं ज्ञात हुए । वह तो नव दशपुर नगर का मन्त्री सारङ्ग
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