Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कत्रि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १३५२-१४११
शा० पायो
कानो
मानो
नो
नम्बो
करमो
सावत
सरवण
(मन्दिर बनवाया) (संघनिकाला)
(क्षत्रिय पुत्री से विवाह
किया)
गोपाल-मन्दिर |
गोपाल-मन्दिर
र
दूधो
खेमो
भोजो वीरो देवो
देयाल
रावल (क्षत्रियों से०)
लाखो (संघ ति० यात्रा)
1
राणों देदो (महावर मन्दिर ब०)
पुनड़ जोरो (संघ निकाला)
(दीक्षा ली)
फूसो
खेतो
जैतो
नाथो जैमल भाणो लालो आशो (आगे वंशावली विस्तार से है ) (महोत्सव) (मन्दिर बन०) (संघ निकाला)
इस प्रकार बहुत ही विस्तृत वंशावलियां हैं पर स्थानाभाव से यहां उतनी विशद नहीं लिखी जासकी। मेरे पास वर्तमान वंशावलियों के अनुसार बाघरेचा जाति के उदार नर रत्नों ने निम्न प्रकारेण देश समाज एवं धर्म के कार्य किये हैं । यथा
१४२-मन्दिर, धर्मशालाएं एवं जीर्णोद्धार करवाये । ५३-बार तीर्थ यात्रा के लिये संघ निकाले। १६--बार आगम बाचना का महोत्सव किया। ७२-बार संघ को घर बुलवा कर संघ पूजा की। ६-बार दुष्काल में शत्रु कार ( दान शालाएं ) उद्घाटित की। ७-आचार्यों के पद महोत्सव किये। ५३-वीर योद्धा संग्राम में वीर गति को प्राप्त हुए। १३-वीराङ्गनाएं अपने पतियों के पीछे सतियां हुईं।
इनके सिवाय भी अनेक प्रकार के धार्मिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय कार्य करके इस जाति के नर रत्नों वाघरचा जाति के सुकृत कार्य Jain Education International
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