Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १२६२-१३५२
पीछे राव माधवजी की राणी ने गर्भ धारण किया जिससे रावजी वगैरह को सुनिजी के वचन स्मरण में आने लगे क्रमशः गर्भ स्थिति पूर्ण होने से रावजी के देव कुँवर जैसा पुत्र का जन्म हुआ जिसके खुशी
और आनन्द मंगल का तो कहना ही क्या था अब तो रावजी को रह रह कर पण्डितजी ही याद आने लगे महाजनों को बुलाकर कहा कि पण्डितजी कहाँ पर हैं तथा उन महात्माओं को जल्दी से अपने यहाँ बुलाना चाहिये ? महाजनों ने कहा उनका चातुर्मास सिन्ध धरा में सुना था पर वे चातुर्मास में कहीं पर भ्रमन नहीं करते हैं । तथापि रावजी ने अपने प्रधान पुरुषों को सिन्ध में भेजकर खबर मंगवाई वे प्रधान पुरुष खबर लेकर आये कि पण्डितजी का चातुर्मास मालपुर में है । खैर चातुर्मास के बाद रावजी की अति आग्रह होने से पण्डित जी सोनगढ पधारे रावजी ने नगर प्रवेश का बड़ा ही सानदार महोत्सव किया और रावजी अपने परिवार अन्तेवर और कर्मचर्य के साथ पण्डितजी से जैन धर्म स्वीकार कर लिया इससे जैन धर्म की अच्छी प्रभावना हुई। रावजी ने अपने नगर में भ० महावीर का सुन्दर मन्दिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य सिद्ध सूरिजी ने करवाई । रावजी ने शत्रुञ्जय गिरनारादि तीर्थों की यात्रार्थ संघ भी निकाला और साधर्मी भाइयों को लहणी एवं पहरावणी भी दी उसका रोटी बेटी व्यवहार जैसे राजपूतों के साथ जैसे ही महाजन संघ के साथ भी शुरु हो गया इत्यादि
राव माधोजी की इग्यारवीं पुश्त में शाह नोधणजी बड़े ही भाग्यशाली हुए उन्होंने ढेलड़िया गाँव में बोरगत ( लेनदेन ) का धंधा किया जिससे लोग उनको ढेलड़िया बोहरा कहने लगे इस जाति के अनेक दान वीर उदार नर रत्नों ने देश समाज एवं धर्म की बड़ी बड़ी सेवाएं करने में खुल्ले दिल लाखों करोड़ो का द्रव्य व्यय किया जिसका उल्लेख वंशावलियों में विस्तार से मिलता है।
ढेलडिया जाति के कई लोग ब्यापार करने लगे तब कई लोग राज के मंत्री महामंत्री आदि उच्च पदों पर नियुक्त हो राजतन्त्र भी चलाते रहे । इस जाति की जन संख्या भी बहुत विस्तृत हो गई थी जिससे कई शाखाएँ भी फैल गई जिसमें एक शाखा के कतिपय नाम यहाँ लिख दिये जाते है। चापशी
इनके अलावा और भी बहुत सी शाखाओं का इतिहास वर्तमान में विद्यताराजी
| मान है पर स्थानाभाव यहाँ पर दिया नहीं गया है प्रत्येक जाति वालों को चाहिये कि वे अपनी २ जाति का यथार्थ इतिहास लिख कर जनता के समाने ही नहीं पर
अपनी सन्तान को तो अवश्य पढ़ाना चाहियेभानाजो
वंशावलियों के देखने से मालुम होता है कि जैन धर्म पालन करने वाली
जातियों में प्रत्येक जाति को वंशावली में कम से कम उनके पूर्वजों द्वारा मन्दिरों का लिखमीचन्दजी
निर्माण यात्रार्थ तीथों के संघ एवं संघ पजा का तो उल्लेख मिलता ही है पर सबका
उल्लेख करने के लिये इतना ही विशाल स्थान चाहिये जिसका अभाव है। मानमलजी
श्राचार्यश्री सिद्धसूरिजी महाराज अपने समय के एक बड़े ही युग प्रवर्तक शिवदानमलजो
श्राचाय थे। आपका सारा जीवन जिन शासन की सेवा से ओत प्रोत है। जहां
जाना वहाँ नये जैन बनाना व पुराने जैनों की रक्षा करना तो आपश्री का ध्येय ही इन्द्रमलजी
बन गया था। विशेषता यह थी कि आपके शासन में करोड़ों की संख्या में जैन थे पूनेमलजी पर किसी भी स्थान पर पारस्परिक मनोमालिन्य नहीं था। यदि कहीं पर किसी
कारणवश क्लेश ने जन्म भी ले लिया तो वह अपनी अवधि को अधिक समय तक मूलचन्दजी
स्थायी नहीं रख सकता । कारण, समाज पर आपका अधिक प्रभाव था। आपके लालचन्दजी । समय में चैत्यवास का साम्राज्य था और उनमें सुविहित व शिथिलाचारी दोनों देवड़िया बोहरों की उत्पत्ति
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रूपजी
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