Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ोसवास सं० १२३०-१२६२
हुआ अतः वे बोल उठे-महात्माजी का कहना तो ठीक है पर हम उक्त कथन को इस शर्त पर स्वीकार कर सकते हैं कि महात्माजी के प्रयत्न से हमारे ग्राम में पूर्णतः शान्ति हो जाय।
सूरिजी-महानुभावों ! इन पशुओं को तो आप रात्रि भर यहीं रहने दो और मैं आपके साथ ग्राम में चलता हूं व शान्ति का उपाय बतलाता हूँ वह कोजिये। यदि आपके शुभ कर्मों का उदय होगा तो शीघ्र ही शान्ति हो जायगी।
सूरिजी के वचनों के विश्वास पर सब लोग ग्राम में आ गये। ग्राम में आने के पश्चात् सूरिजी ने राव राखेचा से कहा कि आपके ग्राम का सकल जन समुदाय आज रात्रि पर्यन्त मेरे कहे हुए मन्त्र का जाप करे । व कल प्रातः काल शान्ति स्नात्र पूजा करवाई जाय जिससे आपके ग्राम में सब तरह से शान्ति हो जाय ।
गरजवान क्या नहीं करता है ? रावजी ने भी ग्राम भर में उद्घोषणा करवादी कि शान्ति के इच्छुक महात्माजी के द्वारा बतलाये जाने वाले मंत्र का सब लोग रात्रि पर्यन्त जाप करें। सूरिजी का वह मंत्र था "नवकारमंत्र" । रावजी एवं ग्रामवासियों ने रात्रि पर्यन्त नवकार मंत्र का जाप किया जिससे उस रात्रि में मरने का एक भी केस नहीं हुआ। बस दूसरे ही दिन मन्दिर के वहां बांधे हुए सभी पशुओं को राव राखेचा ने छुड़वा दिये । फिर शान्ति स्नात्र पूजा करवाने से तो ग्राम भर में सर्वत्र शान्ति हो गई अतः सूरिजी के व्यक्तित्व का उन लोगों पर गहरा असर हुआ । आचार्यश्री ने भी कुछ समय पर्यन्त वहां स्थिरता कर राजा प्रजा को सदुपदेश दिया व जैन धर्म के तत्वों को समझाया । उन लोगों को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा देकर अहिंसा भगवती के परमोपासक बनाये । तथा वहाँ पर एक जैन मन्दिर की नींव भी मुलवादी
पट्टावलीकारों ने इस घटना का समय वि० सं०८७८ चैत्र विद ८ का बतलाया है।
कालेर के बहुत से लोग सूरीश्वरजी के प्रभाव से प्रभावित हो जैन धर्म व अहिंसा भगवती के परम भक्त बन गये थे। राव राखेचा को तो दया धर्म पर बहुत ही रुचि बढ़ गई। उसने आचार्यश्री से विनम्र शब्दों में प्रार्थना की गुरुदेव । नजदीक ही नवरात्रि का त्यौहार आरहा है अतः आप अभी कुछ समय पर्यन्त यहीं पर स्थिरता करें । कारण, पाखण्डी लोग जन समाज में भ्रम फैला कर देवी के नाम पर पशुवध न कर डालें ? आचार्यश्री ने भी लाभ का कारण सोचकर कुछ समय वहीं पर ठहरने का निश्चय किया अतः कई साधओं को तो आस पास के ग्रामों में विहार करवा दिया और थोड़े बहन साधुओं के साथ आप तो वहीं पर ठहर गये । सूरीश्वरजी के अन्य साधुओं ने भी वहां के लोगों को जैन धर्म के विधि विधान एवं नित्य कृत्य की शिक्षा देना प्रारम्भ किया। और इधर आचार्यश्री ने अहिंसा के संस्कारों को दृढ़ करने के लिए व्याख्यान के रूप में अहिंसा का विशद स्वरूप बताना शुरू किया। क्रमशः नवरात्रि की स्थापना का दिवस
आने लगा तब तो ग्राम भर में बड़ी भारी चहल पहल मच गई । जितने मुंह उतनी बातें सुनाई देने लगी। कई कहने लगे दया तत्व को स्वीकार करने वाले देवी को बलि देकर पूजेंगे या नहीं ? कई कहने लगेपरम्परानुसार दी जाने वाली बलि देवी के लिए नहीं दी गई तो देवी रुष्ट हो सबका संहार कर डालेगी। तब कई कहने लगे-देवी देवता ऐसे घृणित पदार्थ को छूते ही नहीं क्योंकि देवता का भोजन ही अमृत है, इत्यादि । लोगों के हृदय में नाना प्रकार की कल्पनाएँ नवरात्रि के लिये प्रादुर्भूत होने लगी व कुछ क्षणों के पश्चात् विलीन भी।
इधर राव राखेचा ने प्राचार्यश्री के पास आकर ग्राम के सम्पण हालको निवेदन किया। इस पर सूरिजी ने कहा-रावजी ! आप घबरा नहीं । आज रात्रि में ही आपको मालूम हो जायगा कि दया धर्म का कैसा महात्म्य है ? यह सुनकर राव राखेचा को हर्षान्वित संतोष एवं आनन्द हुआ। वे प्राचार्यश्री को वन्दन करके अपने घर लौट आये।
उस ही रात्रि को श्राप सोये हुए थे कि देवी ने आकर कहा-रावजी ! गुरुदेव बड़े ही भाग्यशाली रावजी की अहिंसा-उद्घोषणा
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