Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११७८-१२३७
१४४-श्राप श्रीमान् नारायण सेठ की परम्परा में एक महान् प्रभाविक पुरुष हुये जब आपने मारवाड़ के
नागपुर से श्रीशत्रुजय तीर्थ का विराट संघ लेकर गुर्जर धरा में प्रवेश किया तब वस्तुपाल तेजपाल ने सुना तो वे बहुत दूर से चल संघपति पुनड़ से मिले और आपके इस शुभ कार्य की खूब ही प्रशंसा की । शाह पुनड़ का मान पान केवल जैन समाज में ही नहीं पर देहली पति बादशाह भी आपका
श्रादर करता था और इस आदर से शाह पुनड़ ने जैनधर्म के भी अनेक कार्य किये थे १४५-शाह करणा चोरडिया के चार पुत्र थे शाहवालो शाहटीकु शाहभैसो और शाहासल एवं
चारों भाई बड़े ही भाग्यशाली थे प्रत्येक ने एक २ नाम्बरी का कार्य किया जैसे शाह वाला ने नागपुर में भग० आदीश्वर का मन्दिर बना कर सर्व धातुमय विशाल मूर्ति स्थापन की थी। वादशाह के भय से उस समय मन्दिरों पर शिखर नहीं कराये जाते थे अतः उस समय के बने हुये मन्दिर पर अभी सं० १९९३ में शिखर करवाये गये । शाहटी कुने टीकुनाडो बनाया कहा जाता है कि हिन्दू मुर्दा के जलाने का टैक्स बादशाह दो स्वर्णमुद्रा लेता था जिसको टीकूशाह ने छुड़वा कर नगरवासियों को उस जुल्ली कर से मुक्त किया शाह श्रासल ने गोचरभूमि के लिये बड़ी रकम देकर कई कोसों तक भूमि छुड़ादी जिसमें आज भी गायादि पशु सुख से चर रहे हैं। शाह भैसा ने तीर्थ यात्रार्थ संघ निकाल
साधर्मी भाइयों को एक एक मुहर लहण में दी। १४६-देवी ने प्रसन्न हो एक अक्षय थैली दी कि जिससे सर्व तीर्थों की यात्रा की चौबोस भगवान का
एक मन्दिर शत्रुजय पर बना कर सुवर्णमय मूर्ति और सोने का कलश चढ़ाया तथा सघ पूजा कर
संघ को सुवर्ण जनेऊ की पहरामणी दी। १४७ --दुष्काल में एक करोड़ द्रव्य व्यय कर मनुष्यों को अन्न वस्त्र पशुओं को घास तथा तीन बड़े
तलाव तीन वापी और एक मन्दिर बनाया प्रतिष्ठा में संघ को पांच पकवान भोजन करवा कर वस्त्र
तथा लड्डू में एक एक स्वर्ण मुद्रिका गुप्त रख पहरावणी दी। १४८-चार बार सकल सौंघ को घर श्रांगणे बुलाया तिलक कर सुवर्ण सुपारी दी। १४९-आप पर गुरु कृपा थी तेजमतुरी मिली जिससे सुवर्ण बना कर तीर्थ यात्रार्थ संघ निकाला पूजा की सं०
१३११-१२ में सुवर्ण द्वारा पुष्कल धान का देश देश में सचय किया और उसमें शुरु से ही ताम्रपत्र लिखा कर डाला कि यह धन मैंने एक गरीबों के लिये सचय किया है वि० सं० १३१३-१४-१५ लगातार तीन दुष्काल पड़े जिससे साधारण जनता ही नहीं पर राजा महाराजा और बादशाह ने भी जगडुशाह का संचा हुश्रा धान खाकर प्राण बचाये।।
राजा महाराजा तथा बादशाह ने जगडु से प्रार्थना की कि आप हमारा राज लो और हमको खाने के लिये धान दो। इस पर जगडु ने कहा कि सचय किया धान मेरा नहीं है आप उसमें उस समय के ताम्रपत्र देखलें वह धान निराधार रांक भिक्षुओं का है यदि आपको जरूरत हो तो आप भी
ले लीजिये । आखिर लाचार हो उस धान को लिया एक कविता में इस प्रकार लिखा है-- १- सिन्ध के राव हमीर को ८० ० मुंडा धा दिया। २-- उज्जैन के राजा को १८००० मुंडा ३- देहली के बादशाह को २१००० , ४-प्रतापसिंह को ३२००० , ७४॥ शाहों की ख्याति
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