Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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प्राचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १२३७-१२६२
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अभिलाषा एवं कार्य करने का अदम्य उत्साह हो । वास्तव में आपको शासन के प्रति अपूर्व गौरव एवं सम्मान है अतः आपको बारम्बार धन्यवाद है। प्रभो ! अब आपकी वृद्धावस्था हो चुकी है अतः आप मरुभूमि में ही विराजकर हम अज्ञानियों पर कृपा करे; यही मेरी प्रार्थना है। सूरिजी ने 'क्षेत्र स्पर्शना' के रूप में उत्तर दिया और देवी भी सूरिजी को वंदन कर क्रमशः स्वस्थान को चली गई।
इतने समय पर्यन्त इतर प्रान्तों में दीर्घ परिभ्रमन करने के कारण मरुधर प्रान्तीय श्रमणवर्ग में कुछ शिथिलता आ गई ऐसे समाचार यत्र तत्र कर्णगोचर होने लगे। उक्त समाचारों ने प्राचार्यश्री के हृदय में पर्याप्त चिन्ता एवं दुःख का प्रादुर्भाव कर दिया । शिथिलता निवारण के लिये श्रमण सभा योजना का निश्चय किया और उक्त निश्चयानुसार अपनी मनोगत भावना को दूसरे दिन व्याख्यान में श्रीसंघ के समक्ष प्रगट करदी। श्राचार्यश्री की उक्त योजना को श्रवण कर श्रीसंघ ने प्रसन्नता पूर्वक इसका उत्तरदायित्व अपने सिर पर ले लिया । उपकेशपुरीय श्री संघ ने तो शासन के इस महत्व पूर्ण कार्य का लाभ प्राप्त करने के लिये अपने को परम भाग्यशाली समझा। वास्तव में इससे अधिक शासन प्रभावना का कार्य हो ही क्या सकता था ? शासन की बड़ी से बड़ी या कीमती सेवा तो यही थी अतः श्री संघ ने विनय पूर्वक प्रार्थना कीभगवन् ! इस सभा का निश्चित दिन निर्धारित कर दिया जाय तब तो हमें हमारे सब कार्य करने में सुविधा रहे । सूरिजी ने कहा-आप लोगों का कहना यथार्थ है पर सभा का समय कुछ दूर रक्खा जायगा तो पासपास के क्षेत्रों के साधु व सुदूर प्रान्तीय साधु भी यथा समय सम्मिलित हो सकेंगे अतः मेरे मन्तव्यानुसार कुछ दूर का ही शुभ दिन मुकर्रर करना चाहिये-श्रीसंघ ने कहा-जैसी आप श्री की इच्छा। सर्व मुनियों को एक स्थान पर एकत्रित होने में तो अवकाश चाहिये ही अतः दूर का मुहूर्त रखना ही अच्छा रहेगा। सूरिजी ने फरमाया-माघ शुक्ला पूर्णिमा का दिन निश्चित किया जाता है जिससे; चातुर्मासानन्तर तीन मास में श्रमण वर्ग अनुकूलता पूर्वक सम्मिलित हो सके । दूसरा-गुरु महाराज की स्वर्गारोहण तिथी भी है श्रतः सर्व कार्य गुरुदेव की कृपा से निर्विघ्न तया सानन्द सम्पन्न हो सके । श्रीसंघ ने भी प्राचार्यश्री की दीर्घदर्शिता की प्रशंसा करते हुए सूरीश्वरजी के कथन को सहर्ष स्वीकार कर लिया। बस, समयानुकूल श्रीसंघ ने भी अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। यत्र तत्र सर्वत्र अपने योग्य-प्रमाणिक पुरुषों के द्वारा आमन्त्रण पत्रिकाएँ भिजवा दी। श्रमणवर्ग की प्रार्थना के लिये उचित पुरुषों को भेज दिये इससे जन समाज के हृदय सागर में उत्साह की ऊर्मियां उछलने लगी। बहुत समय बीत गया । ज्यों ज्यों श्रमण सभा का निर्धारित दिन नजदीक
आता गया त्यों त्यों उनके हृदय में नवीन २ आशाओं-कल्पनाओं का सुदृढ़ दुर्ग निर्माण होता गया । सब ही लोग माघ शुक्ला पूर्णिमा के परम पावन दिन की प्रतीक्षा करने लगे।
ठीक समय पर चारों ओर से श्रमण संघ का शुभागमन हुआ। श्रीसंघ की ओर से बिना किसी भेद भाव के सबका यथोचित सम्मान किया गया । कुछ समय के लिये मुनियों एवं श्रावकों के आवागमन की अधिकता के कारण उपकेशपुर तीर्थ धाम ही बन गया। इससे सबके हृदय में श्राशातीत उत्साह एवं कार्य करने की शक्ति का सञ्चार हुआ। आगुन्तक श्रमण वर्गों में उपकेशपुरशाखा भिन्नमालगच्छ, कोरंटगच्छ एवं वीर परम्परागत मुनियों को मिला कर कुल पांच हजार श्रमण आये थे। ठीक पूर्णिमा के दिन सभा का कार्य सूरिजी के अध्यक्षत्व में प्रारम्भ हुआ । सर्व प्रथम सूरिजी के सन्यासी शिष्य ज्ञानानन्द मुनि ने सभा करने के मुख्य उद्देश्यों एवं आवश्यकताओं की ओर जन समाज का ध्यान आकर्षित करते हुए संक्षिप्त स्पष्टीकरण किया तत्पश्चात् आचार्यश्री ने श्रागत श्रमण मण्डली का आभार व्यक्त करते हुये व उनके शासन विषयक इस अदम्य उत्साह की सराहना करते हुए फरमाया कि जिन किन्हीं महानुभावों को सभा के उक्त उद्देश्यानुसार किसी विषय का स्पष्टीकरण करना हो तो वे इस समय खुले दिल से प्रसन्नता पूर्वक अपने मानसिक उद्गारों को प्रगट कर सकते हैं । आचार्यश्री की उक्त सूचना के होने पर भी सभा तो एक दम निस्तब्ध रही उपकेशपुर में संघ सभा
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