Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ७७८ से ८३७]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
हाल सुन लिया था अतः नगर के बाहिर राजा सम्मुख आया और महा महोत्सव पूर्व सूरिजी को नगर प्रवेश करवाया । राज सभा में राजा ने कहा-पूज्य गुरुदेव ! आप महान शक्ति शाली हैं कि वाक्पतिराज जैसे को प्रतिबोध किया। सूरिजी ने कहा-जहां तक मैं आपको प्रतिषोध न दूं वहां तक मेरी क्या शक्ति है । राजा ने कहा- मैं प्रतिबोधपागया हूँ। आपके धर्म पर मुझे दृढ़ श्रद्धा है परपूज्य ! मेरे पूर्वजों से चले आये शिवधर्म को छोड़ने में मुझे बड़ा ही दुःख होता है अतः यह पूर्व भव का ही संस्कार मालूम होता है ।
सूरिजी कहा--राजन् ! तुमने जो पूर्वभव में कष्ट किया उसका स्वरूपफल ही राज्य है। सभाजनों ने कहा--पूज्यवर ! हम लोग राजा का पूर्वभव सुनना चाहते हैं कृपाकर श्राप सुनाइये ।
श्री चूड़ामणि शास्त्रादि के अनुसार सूरिजी ने कहा- कलंजर के पास शालवृक्ष की शाखा के दोनों पैर बांधकर अधोमुखी होकर पृथ्वी पर जटालटकती इस प्रकार तप कष्ट करने से वहां से तू राजा हुआ है। यदि मेरी बात पर किसी को विश्वास न हो तो उस वृक्ष के नीचे जटा पड़ी है देखलो । राजा ने अपने अनुचरों से जटा मंगाकर देखी जिससे सब लोग सूरिजी की भूरि २ प्रशंसा करने लगे।
एक समय राजा अपने मकान पर खड़ा हुआ क्या देखता है कि एक युवा रमणी के यहां एक जैन मुनि भिक्षा के लिये आया। मुनि को देख रमणी ने भोग की प्रार्थना की पर मुनि अस्वीकार कर बाहिर निकलता था कि मकान के द्वार के किवाड़ स्वयं बन्द होगये । इस पर बाला ने एक लात मारी जिससे उसके पैर का नेवर आकर मुनि के चरणों में गिर पड़ा । रमणी ने हाव भाव पूर्वक प्रार्थना की पर मुनि पर उसका कुछ भी असर नहीं पड़ा इस घटना को देख राजा ने प्राकृत में एक पद बनाकर सूरिजी के सामने रक्खा । सूरिजी ने उसके तीन पद बनाकर पूरी गाथा करदी वह इस प्रकार है। कवाडमासज्ज वरंगणाए अब्भच्छिउजुव्वणमत्तियाए। अमनिए मुकपयप्पहारे सनेउरो पव्वइयस्स पाउ ।
इस प्रकार राजा ने एक गृहणी और भिक्षु को देख एक पाद गुरु के समक्ष रक्खा जिसको भी गुरु ने पूरा कर दिखाया । वहभिक्खयरो पिच्छइ नाहिमण्डलं सावि तस्स मुहकमलं । दुहनंपि कवालं चदृशं काला विलंपति ॥
एक समय एक विद्वान् चित्रकार राज सभा में आया । राजा का चित्र बनाकर राजा को दिखलाया पर राजा का दिल गुरु गुण में लीन था कि चित्र देखने पर भी राजा ने कुछ भी नहीं कहा। इस पर चित्रकार हताश होगया तब किसी ने कहा, कि तू चित्र गुरुराज को दिखला । चित्रकार ने ऐसा ही किया जिससे सूरिजी ने चित्रकार की प्रशंसा की अतः राजा ने एक लक्ष रुपये दिये । बाद में चित्रकार ने चार भगवान् महावीर के सुन्दर चित्र चित्रित कर सूरिजी को अर्पण किये जिससे एक तो कन्नौज, एक मथुरा एक अणहिल्ल पट्टण में और एक सौपारपट्टन में गुरु महाराज के प्रतिष्ठापूर्वक पधराये । पाटण का चित्रपट म्लेच्छों ने पाटण का भंग किया यहां तक विद्यमान था।
एक समय श्राम राजा ने राजगृह पर पढ़ाई की पर वहां का किला ले नहीं सका । तब गुरु महाराज को पूछा । गुरुने कहा तेरा पौत्र भोज होगा वह राजगृह विजय करोगा तथापि राजा ने बारह वर्ष तक का घेरा डाल कर फोज वहीं रक्खी । इधर राजा के पुत्र दुदुक २ के पुत्र भोज का जन्म हुआ। सामन्त नवजात भोज को लेकर राजगृह गये और भोज को इस प्रकार सुलाया कि उसकी दृष्टि राजगृह के १२१४
सूरिजी को समस्याएँ पूर्ति
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