Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ७७८ से ८३७ ]
। भगवान पाश्वनाथ की परम्परा का इतिहास
शाह
प्रति नंबर
शाह नाम
पिता का नाम
जाति का नाम
नगर का नाम
समय
शाह हेमराज
गोकुलशाह
सुराणा
देहली
वि०सं०१६७० १७६
م م س
"
"
पर्वत
कैसाशाह
गादइया
,
१६७२ १७७
ه م م م س
धूनाड़ा
" जाबलीपुर अलवर
वासा हंसराज
हरखाशाह भीमाशाह
हथुडिया वैदमहता
, १६७९ १७८
१६८९ १७९
प्राग्वट
पाली
सांगाशाह पद्ममाशाह
१७०१ १८० १७१६, १८१
जीतो
मांडोत
| उज्जैन
ه م م
नरसिंह
खेताशाह
गेललाहा
मुर्शदाबाद
१७३२ १८२
م ه ه م
कोष्टक में अन्तिम कोष्टक कार्य का है और उसके नीचे जो अंक रक्खे गये है वे फूटनोट के हैं और तदनुसार शाहात्रों के किये हुए कार्य क्रमशः अंकानुसार फूटनोट के तौर पर लिख दिया जाता है । १-दुष्काल में अन्न वस्त्र घास देकर देश सेवा की तथा तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला और संघ पूजा कर साधर्मी भाइयों को एक-एक सुवर्ण मुहर की लहण दी। २-चौरासी देहरिया वाला मन्दिर बनाकर सुवर्ण कलश चढ़ाया प्रतिष्ठा में सकल श्रीसंघ को बुलाकर
तीन बड़े यज्ञ (जीमणवार ) कर संघ पूजा कर पहरामणी दी। ३-सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला। चतुर्विधश्रीसंघ के साथ यात्रा की। तीर्थ पर ध्वजारोहण
कर बहत्तर लक्ष द्रव्य में संघमाला पहरी । संघ पूजा कर एक-एक मुहर दी। ४-आपको चित्रावल्ली मिली थी। जिसके प्रभाव से ८४ मन्दिर प्रथक् २ स्थानों में बनाकर प्रतिष्ठा कर
वाई । सर्व तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला । संघ पूजा में एक-एक सुवर्ण थाली में रख लहण दी। ५-पांचबार यात्रा संघ निकाला पृथ्वी प्रदक्षिणा दी। समुद्र तक सर्वत्र साधर्मी भाइयों को वस्त्र तथा
लाढू में एक-एक सुवर्ण लेहण में प्रदान कर नाम कमाया। ६-प्रदेश से केसर की बालद आई थी जिसको मुंह मांगा मूल्य देकर सर्व मन्दिरों में अर्पण करदा तथा चार बार संघ को घर पर बुलवाकर पूजा कर पहरामणी दी।
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