Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ७७८-८३७ }
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
२७-तीन वर्ष तक निरन्तर दुष्काल में आपने खुले दिल से मनुष्य और पशुओं को अन्न वस्त्र एवं
घास देकर अनेकों के प्राण बचाये जिसमें बीस करोड़ द्रव्य खी और संघपूजा कर लाहणी दी। २८-आपको एक महात्मा से स्वर्णरस मिला जिससे पुष्कल सुवर्ण बनाया अपने घर में सुवर्ण मन्दिर
एवं रत्नमय मूर्ति स्थापन की सात तालाव सात वापि सात मंदिर सात वर संघ निकाले तथा साधर्मी
भाइयों को सातवार घर पर बुला कर संघ पूजा कर सुवर्ण थाल प्याला पहरावणी में दिये २९-सम्मेतशिखरादि तीर्थों का संघ निकाला यात्रा की। संघ पूजा--सोने के प्याले पहरामणीमें दिये। ३०-चौरासी देहरी का विशाल मंदिर बनाया सोने की ९६ अंशुल की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवा संघ
पूजा की जिसमें बढ़िया वस्त्र तथा एक एक सुवर्ण मुद्रा लहण में दी। ३१-दो दुकाल में अन्न वस्त्र घास दिया तथा चार तालाब चार कुवें चार मंदिर बनाये। संघ पूजा की। ३२-शत्रुजय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाल तीर्थ पर ध्वजारोहण बहुतर लक्ष द्रव्य में माला पहरी
घर पर आकर स्वामिवात्सल्य कर संघपूजा पुरुषों को सुवर्ण कड़े स्त्रियों को सुवर्ण हार पहिनाये । ३३-एकादश आचार्यों के सूरिपद के समय महोत्सव-वीस करोड़ द्रव्य जैनधर्म के प्रचार में दिया। ३४-आपका व्यापार विदेशों में था एक नीलमणि लाये जिसकी मूर्ति बनाकर घर देरासर में स्थापना की ३५-दुष्काल में देशवासी भाइयों को अन्न वस्त्र पशुओं को घास देकर उनके प्राण बचाये पुष्कल द्रव्य खर्चा। ३६-तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाल सकल तीर्थों की यात्रा की आते जाते समुद्र के अन्त तक साधर्मी
भाइयों को एक एक सुवर्ण मुद्रिका लहण में देकर जैनधर्म का बड़ा ही उद्योत किया। २७-सात बार बड़े यज्ञ किये शिखरवन्ध मंदिर बना कर प्रतिष्ठाकरवाई बावन मण केशर की बालद भ०
ऋषभदेव को चढ़ाई संघ पूजा कर पाँच पाँच मोहरें लहण में दी। २८-आशापुरी माता तुष्टमान हुई संघ निकाल यात्रा की समुद्र तक सब साधर्मियों को एक एक मोहर दी। २९-गुरु कृपा से चित्रावल्ली मिली बावनतसु सोने की मूर्ति बनाकर प्रतिष्ठा करवाई पराहवणी में मोहरें दी। ३०-सात बड़े यज्ञ किये ८४ न्याति घर पर बुला कर भोजन पहरामणी दी। तीर्थ यात्रार्थ संघ निकाला
पुष्कल द्रव्य व्यय किया । संघ पूजा करके पहरामणी दी। ३१-सकल तीर्थों की यात्रा कर संघमाला पहरी समुद्र तक एक एक सुवर्ण मुद्रिका लहण में दीनी म्लेच्छों
के बंध में पड़े गरीब लोगों को करोड़ों द्रव्य देकर मुक्त कराये। संघ पूजा, तीन यज्ञ किये । ३२-चार बार चौरासी ऑगणे बुलाई ५ यज्ञ किये संघ पूजा कर एक एक मुहर लहण में दी। ३३-आपके पास पारस मणि थी लोहे का सोना बनाकर १०८ अंगुल सुवर्ण की मूर्ति बना कर प्रतिष्ठा
करवाई सव तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाला संघ को सोने मुहरों की पहरावणी दी। ३४-सकल तीर्थों की यात्रा के लिये संघ निकाला संघपूजा कर छः छः सोना मुहरें लहण में दी। ३५-चार यज्ञ चार वार चौरासी अंगणे बुलाई पुरुषों को सोने की कंठियां बहिनों को सोने के चुड़े दिये । ३६--सर्व तीर्थों की यात्रा के लिये संघ निकाला तीर्थ पर माला पहरी संघ को पांच २ मुहर प्र. में दी। ३७-चौरासी तालाब खुदवाये चौरासी मंदिर बनवाये राजा को प्रसन्न कर सर्वत्र जीव दया पलाई । ३८-दुकाल में अपना करोड़ों का द्रध्य देशहित अर्पण कर दिया सात बार संघ पूजा भी की। ३९-दुकाल में अन्न वस्त्र व घास दिया चौरासी देहरी का मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा में पुष्कल द्रव्य व्यय किया।
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७४॥ शाहों की ख्याति
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