Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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प्राचार्य ककसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं२ ११७८-१२३७
राव महाबली (जैनमन्विर वनाया)
मालो
खुमाण
कल्हण
बागो
भूतो
वीरम
भाखर
संगण
चूड़ा
धीगो
आम्र
मलुका पासड
पास (शत्रुञ्जय का संघ निकला)
जगदेव
झंझण
हाप्पो
खीवा (बोहरगत करने से बोहरा कहलाये
देदो
गांगो
नागदेव
भोजदेव
राणो
। । । । ।
। । जेतो भैरो सालग कालो रावल मोकल जोघड जुजार हरदेव गोसल
( मन्दिर बनवाया) (संघ निकाला)
(इस प्रकार विस्तार से वंशावली लिखी हुई है।) आचार्यश्री कक्कसूरि ने अपना शेष जीवन वृद्वावस्था के कारण मरुभूमि और मरुभूमि के आस पास के प्रदेशों में विताना ही उचित ज्ञात हुआ । तदनुसार आप मरुभूमि में ही बिहार करते रहे ।
आचार्यश्री कक्कसूरीश्वरजी म. ने अपने ५९ वर्ष के शासन में अनेक प्रान्तों में परिभ्रमण कर जैन धर्म का विस्तृत प्रचार किया। भारत में शायद ही ऐसा कोई प्रांत रह गया हो जहां पूज्याचार्यदेव के कुकुम्ममय चरण न हुए हों ? आपने अपने जीवन में २०० पुरुष ३०० बाइयों को दीक्षा दी। लाखों मांसा. हारियों को जैन बनाये । सैकड़ों मन्दिरों की प्रतिष्ठाए करवाई । कई संघ निकलवा कर तीर्थों की यात्रा की। विशेष में आपने उस समय के बैत्यवास के विकार में बहुत सुधार किया । अनेक वादियों के संगठित आक्रमणों से शासन की रक्षा की और उन्हीं के द्वारा अहिंसा का प्रचार करवाया अस्तु आपश्री का जैनसमाज पर ही नहीं अपितु भारतवर्ष पर महा उपकार है।
__ आपश्री जी ने कई अर्से तक उपकेशपुर में ही स्थिरवास कर दिया । जब देवी सच्चायिका के द्वारा आपको अपने आयुष्य की अल्पता ज्ञात हुई तो आपने अपने योग्य शिष्य उपाध्याय ध्यानसुन्दर को सूरि मंत्र की आराधना करवा कर; भाद्र गौत्रीय शाह लुणा के महामहोत्सव पूर्वक श्रीसंध के समक्ष महावीरचैत्य में उपाध्याय ध्यानसुन्दर को सूरि पद से विभूषित कर दिया और परम्पग के क्रमानुसार आप का नाम श्री देव गुप्तसूरि रख दिया और आपश्री अन्तिम सलेखना में सलग्न हो गये
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राव महाबली की बंशावली
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