Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य ककसूरि का जीवन ]
| ओसवाल सं० ११७८-१२३७
सूरिजीने बालक की भव्याकृति को देखकर उसकी इच्छा से उसको अपने पास रख लिया और ज्ञानाभ्यास कावाना प्रारम्भ करवा दिया । सूरपाल की बुद्धि इतनी कुशाग्रह थी कि वह किसी भी श्लोक को एक बार पढ़लेता तो उसको कण्ठस्थ हो जाता था बह एक दिन में एक हजार श्लोक बड़ी ही आसानी से कण्ठस्थ करलेता था । भला ! ऐसे होनहार बालक को शिष्य बनाने की किसकी इच्छा न हो ? तदनुसार प्राचार्यश्री सूरपाल को दीक्षा देने की गर्ज से उसको लेकर उसके प्राम डुवातिथि आये और सूरपाल के माता पिता को उपदेश दिया कि यदि तुम्हारा पुत्र दीक्षा अङ्गीकार करेगा तो निश्चित ही शासन का उद्धार करने वाला एक महाप्रभावक पुरुष होगा। इस पर पहिले तो बप्प और भट्टि ने आनाकानी की पर बाद में इस दीक्षा के साथ अपना नाम चिरस्थायी रखने की शर्त पर वे मजूर हो गये। बस, भाचार्यश्री ने भी सूरपाल के माता पिताओं की अनुमति से मोढेरा में वि० सं० ८०७ में वैशाख शुक्ला तृतीय कों सूरपाल को दीक्षा देकर उसका नाम मुनि भद्रकीर्ति रखदिया पर उपरोक्त शर्तानुसार प्रसिद्ध नाम बप्पभट्टि नाम का ही व्यवहार किया जाता था। दीक्षानन्तर गुरु ने बप्पभट्टि को योग्य समम कर उनको सरस्वती का मन्त्र दिया बप्पभट्ट ने उसका निडरता पूर्वक आराधन किया जिससे देवी सरस्वती ने प्रसन्न होकर बरदान दिया।
मुनि बप्पभट्टि एक समय स्थण्डिल भूमिका गये थे। वापिस लौटते समय वर्षा आनेलगी अतः वे एक देवल में ठहर गये। इधर से एक भव्याकृतिवान् नवयुवक श्रा निकला । मुनिवप्पभट्टि को देखकर उसका साहस उनके प्रति अनुराग हो गया । वह वहीं पर ठहर गया। उसकी दृष्टि उस देवल के एक श्याम पत्थर पर खुदी हुई प्रशस्ति पर पड़ी जिसको आगन्तुक ने ध्यान पूर्वक पड़ी और मुनि बप्पभट्टि को उसका अर्थ समझाने के लिये विनय पूर्वक प्रार्थना की। मुनिने उसकी आन्तरिक इच्छा को जान कर उसका स्पष्ट अर्थ समझाया जिससे श्रागन्तुक पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा । बर्षा बन्द होने के पश्चात् दोनों चलकर अपने निर्दिष्ट स्थान पर-मन्दिर में आये । सूरिजी ने मुनि के साथ आये हुए नवयुवक को देखकर उसका नाम पूछा। उसने मुंह से न कह कर वहीं अक्षरों में लिख दिया । नाम को पढ़कर सूरिजी को स्मरण हो गया कि-रामसेन नगर के पास जंगल में पीलुड़ी के माड़ की एक डाल के वस्त्र की मोली में छमास का बच्चा झूल रहा था
और बच्चे की माता पीलू चून कर ला रही थी जिसको पूछने पर मालूम हुआ था कि कन्नौज के राजा यशोवर्मा की एक राणी के षड्यन्त्र से दूसरी रानी निकाल दी गई थी और वह ही इत उत परिभ्रमन कर अपने बच्चे का व अपना जीवन निर्वाह कर रही थी जिसका मैंने मोढेरा के एक सद्गृहस्थान के यहां सर्वानुकूल प्रबन्ध करवाया था उसीका बच्चा आम है। कुछ ही समय के पश्चात वहाँ से विहार कर देने के कारण इस व्यय में आचार्यश्री उसे पहले नहीं पहचान सके थे।
__ अब तो मुनि बप्पभट्टि के साथ आमकुमार का स्नेह और भी अधिक बढ़ता गया । उसको भी व्याकरण न्याय, धर्म व राजनीति सम्बन्धी विद्याओं का अध्ययन करवाया जाने लगा। इधर पुण्यानुरोग से षड. यन्त्र करने वाली राजा यशोवर्मा की रानी मर गई । राजाने अपने विश्वस्त मन्त्री को भेजकर मोढेरा से रानी और बच्चे को बुलवाया व अपनी मृत्यु के पूर्व ही राजकुमार आम को राज्य दे दिया।
जब राज कुमार श्राम को गज्य प्राप्त हुआ तो आपने राज्य के प्रधान पुरुषों को गुर्जर प्रान्त में भेजकर बप्पभट्टि मुनि को कन्नौज में बुलवाया। प्राचार्यसिद्धसेनसूरि ने भी राजा श्राम का अत्याग्रह देख, मुनिबप्पभट्टि को जाने की आज्ञा देदी । क्रमशः मुनिश्री के कन्नौज पधारने से राजा श्राम को अत्यन्त हर्ष मुनि बप्पभट्टि और आम कुँवर का मिलाप
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