Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य ककसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ११७८ से १२३७
हमारे राजा की आज्ञा को स्वीकार करे तो मैं चल सकता हूँ। उन लोगों से कोकास का कहना स्वीकार किया। तब राजा काकजंघ की आज्ञा लेकर कोकास कांचनपुर गया और गरुड़ विमान के एक चाबी लगाई जिससे उन आसनों पर के आवरण खुल गये और राजादि नये जन्म पावे जितनी खुशी मनाई । कोकास ने कहा कि यह आपके किये हुए अनुचित कार्य का फल मिला है जब एक राजा अपनी विपदावस्था में आपके यहां आगया तो आपका कर्तव्य था कि आप उनका स्वागत सत्कार करते पर आपने उलटा ही रास्ता पकड़ लिया। पर हमारे राजा की कितनी दयालुता की उन्होंने श्रापका राज न लेकर आपको बन्धन मुक्त करने की मुझे आज्ञा देदी इत्यादि शिक्षा देकर कोकास पुनः उज्जैन नगरी आ गया ।
राजा काकजंघ और कोकास संसार से विरक्त होकर एक ऐसे महात्मा की प्रतिक्षा कर रहे थे कि उन महात्माजी की सहायता से अपना शीघ्र कल्याण कर सकें। इतने में आचार्यधर्मघोषसूरि अपने शिष्य मंडल के साथ उद्यान में पधार गये । राजा को बधाई मिलने पर बड़े ही समारोह के साथ कोकासादि नागरिकों के साथ राजा सूरिजी महाराज को चंदन करने को गया । आचार्यश्री ने वोधकरी धर्म देशना दी जिसको सुनकर राजा एवं कोकास को वि. वैराग्योत्पन्न हो आया । ठीक उसी समय राजा ने सूरिजी से अपना पूर्व भव पूछ। । इस पर सूरिजी ने अपने अतिशय ज्ञान से उनका पूर्व भव जान कर राजा को कहा कि हे राजन् ! पूर्व जमाने में एक गजपुर नाम का नगरथा वहां पर शेल नाम का राजा राज्य करता था उसके नगर में एकसालग नाम का सुथार भी वसता था उसने राजा की आज्ञा से अनेक जैनमंदिरों का निर्माण किया और करता ही रहता था। उस समय किसी अन्य प्राम से एक जैन सुथार आया वह भी अच्छा कला निपुण था। सालग ने उसका साधर्मी के नाते स्वागत नहीं किया पर वह मंदिर बनाने लग गया तो मेरी आजीविका कम हो जायगा । अतः उसने आगत जैन सुथार पर जाति नीचता का दोषारोपण कर उसको राजा द्वारा कैद करवा दिया पर जब राजा अन्य लोगों द्वारा पूछा ताछ की तो उसको मालूम हुआ कि मैंने अन्याय किया है उस सुथार को कैद से मुक्त कर दिया पर इस पातक की आलोचना न करके तुम दोनों मर कर पहले देवलोक में विराधिक देव हुए और वहां से चलकर गजा का जीव तो तुम राजा हुए हो जो छः घंटे की कैद के बदले तुमको छः मास की कैद में रहना पड़ा और सुथार का जीव कोकास हुआ है जाति नीचता का कलंक लगाने से कोकास को दासी पुत्र होना पड़ा है इत्यादि । सूरिजी ने संसार का असार पना तथा कृत कर्मों को उसी प्रकार भो ने का सचोट उपदेश दिया। राजा तो पहले से ही संसार से उदासीन हो रहा था ऊपर से मिल गया सूरिजी का उपदेश । बस, फिर तो देरी ही क्या थी उसी समय राजाने अपने पुत्र को राज सौंप कर कोकास के साथ सूरिजी के चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा लेकर यथा शक्ति तप, संयम की आराधना करते हुए कैवल्य ज्ञान दर्शन हो आया जिससे अनेक भव्चों का उद्धार कर अन्त में आप इस नाशमान शरीर एवं संसार को छोड़ मोक्ष महल में पहुँच कर अनंत एवं अक्षय सुखों का अनुभव करने लगे।
ऊपर मैंने जितने उदाहरण लिखे हैं उन सब के इस प्रकार के चरित्र बने हुए हैं पर इस एक नमूने से ही पाठक समझ सकते हैं कि पूर्व जमाने में भारत में कैसे-कैसे शिल्पज्ञ एवं कलाएं थी कि जिनकी बराबरी
श्राज का (Scienee) विज्ञान बाद भी नहीं कर सकता है। .... कई सज्जन यह खयाल करे कि यदि आपके साहित्य में इस प्रकार के उदाहरण मिलते हैं तब उन्होंने चिरकाल से इसका प्रयोग करना क्यों छोड़ दिया है ? जैनों के जीवन का मुख्योद्देश्य आत्मकल्याण काकजंघ व कोकास की दीक्ष्य
११९३ Jain Education Intou donal
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