Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ७७८-८३७]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कलावान् हो ने से ही शंकर ने अपने कपाल पर अंकित किया है । हे राजन् ! कोकास जैसा कलावान् को मार डालना यह आपको योग्य नहीं है कारण इससे एक तो इस अनुचित कार्य से सर्वत्र आपकी अपकीर्ति एवं अपयश होगा। दूसरा एक बड़ा भारी कलावान आपके हाथों से सदा के लिये खोया जायगा । हे भूपति ! मारने की अपेक्षा कोकास जैसा विद्वान आपकेहाथ लगा है तो इससे कोई अच्छा काम लेना चाहिये इसमें ही श्रापकी शोभा है । नागरिकों का कहना मान कर राजाने कोकास को अपने पास बुला कर पूछा कि कोकास तुम एक गरुड़ ही बनाना जानते हो या । दूसरा भी कुछ बना सकते हो? इस पर कोकास ने कहा कि जो हुक्म आप दें वही मैं बना सकता हूँ गजा ने कहा कि एक ऐसा काष्ट विमान बना दो कि जिस पर मैं मेरी रानी और मेरे सौ पुत्र व मेरा प्रधान सव अलगर बैठ कर आकाश में सफर कर सकें। राजा की इस बात को कोकास ने स्वीकार कर ली। और राजा ने कोकास के कहने मुजब सब सामान भी मंगवा दिया । वस, फिर तो क्या देरी थी । कोकास ने इस कार्य को अपने तथा राजा गणी को कागगृह मुक्ति का साधन समझ शुरू कर दिया । राजा राणी को भी खुश समाचार कहला दिया कि अब मैं आपको शीघ्र ही संकट मुक्त करवा दूंगा । इधर उज्जैननगरी को एक गुप्तचर भेज कर गजा काकजंघ के पुत्र रामेश को कहला दिया कि राजा गणी और मेरी यह दशा हुई है। पर आप अमुकतिथि तक ऐसे गुप्त तरीके से सैना लेकर कलिंगदेश की राजधानी कांचनपुर पर चढ़ाई करके यहां आ जाना कि मैं मदद कर आपकी विजय करवा दूंगा इत्यादि ।
इधर कोकास अपना काम बड़ी ही शीघ्रता से करने लगा कि थोड़े ही समय में एक देव भवन के सदृश्य गरुड़ विमान तैयार कर दिया जिसको देख राजा एवं प्रजा का चित्त प्रसन्न हो गया जब राजा उस विमान पर सवार हुआ तो प्रत्येक २ आसन पर राजा राणी, राजा के सौ पुत्र और प्रधान बैठ गये कोकास ने विमान के एक ऐसी चावी रखी थी कि चाबी के लगाते ही वे सब श्रासन ऐसे बन्द होगये कि वे सब बैठने वाले माता के गर्भ में ही नहीं सो गये हों अर्थात् उन शासनों के पाक्षी की तरह काष्ट की पाखे रखी गई थी कि चाबी लगाते ही वे काष्ट की पाख्ने सब आसनों को आच्छादित कर दे अर्थात् वे सब सवार कारागृह की भांति बन्द हो गये । उधर उज्जैननगरी से सैना लेकर राजपुत्र रामेश श्रा पहुँचा वह राजा नगर पर
आक्रमण कर गज लूटना शुरु कर दिया जिसका सामना करने वाले राजा मंत्री या राजा के सौ पुत्र विमान में बन्द हुए पड़े थे। जिन नागरिकों ने राजा गणी, कोकास को खान पान फेंके थे उन सबको सकुशल रख दिये । बाकी राज भवन आदि सब लूट लिये राजा राणी जो कारागृह में थे, उनको छुड़ा लिये। रामेश
और कोकास राज को अपने हस्तगत करना चाहते थे पर राजा काकजंघ ने कहा कि मेरे व्रतों की मर्यादा है जिसमें सौ योजन के बाहर की भूमि मेरे काम की नहीं है । अतः यह राज्य मेरे राज से सौ योजन से दूर होने से राज लेने में मेरे अत का भंग होता है । इस लिये राज और द्रव्य यहीं छोड़ कर राजा राणी कोकास और राजपुत्र रामेश तथा उसकी सैना चलकर उज्जैनी नगरी श्रा गये।
पीछे लोग एकत्र हो गरुड़ विमान से राजादिकों को निकालने का प्रयत्न किया पर कोकास की ऐसी चाबी लगाई हुई थी कि उनके सब उपाय निष्फल हुए तब सुथार को बुला कर कुलाड़े से काटने लगे पर ज्यों ज्यों कुलाड़ा विमान पर चलाया जाने लगा त्यों त्यों अन्दर रहे हुए राजादि को कष्ट होने लगा इससे अन्दर से राजादि चिल्लाने लगे इस हालत में कई अच्छे आदमी चलकर उज्जैन आये और कोकास से प्रार्थना की कि श्राप हमारे यहाँ पधार कर राजादिकों कष्ट मुक्त कर दें। कोकास ने कहा कि आपका राजा ११९२
कोकास ने अपना काम निकाला
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