Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ११७८-१२३७
से नहीं हो सकता है । इस से तो शासन में द्वेष एवं कलह की अपूर्व अग्नि ही प्रज्वलित होती है जिसमें धर्मोचित सर्वगुण नष्ट हो जाते हैं । अतः इस विषय का सफल उपाय जो अभी आप उपयोग में ला रहे हैं-सर्वथा उपयुक्त है । इस प्रकार शासन हित की बातें होने के पश्चात् वादी कुञ्जर केशरी प्राचार्य बप्प भट्टसूरि ने कहा-सूरिजी महाराज ! जैन समाज पर आपके पूर्वजों का श्रापका महान उपकार है ।
आज प्रत्येक प्रान्त में जो महाजनसंघ दृष्टि गोचर हो रहा है वह सब उन्ही पूज्याचार्य स्वयंप्रभसूरि और रत्नप्रभसूरि जैसे धुरंधर, युगप्रवर्तक, समयज्ञ श्राचार्यों की कृपा का फल है। उनके पश्चात् उपकेशगच्छ के जितने प्राचार्य हुए उन सबों ने भी प्रत्येक प्रान्त में परिभ्रमन कर महाजनसंघ का रक्षण, पोषण एवं वर्धन किया है । इस प्रदेश में भी आचार्यश्रीदेवगुप्तसूरि का ही महान् उपकार हुआ है। यहां के राजा चित्रांगंद को उन्होंने जैन बनाकर जैनधर्म का इस प्रान्त में खूब ही प्रचार करवाया था। सूरीश्वरजी के उपदेश से ही राजा चित्रांगद ने एक विशाल जैनमन्दिर बनवा कर सुवर्णमय प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी। प्रतिमाजी के नेत्रों के स्थान पर बहुमूल्य दो ऐसे मणि लगवाये गये कि वे अपनी चमक से रात को भी दिन बना रहे हैं वह मन्दिर आज भी श्राचार्यश्री के गुणों की रह २ कर स्मृति करवा रहा है। सूरीश्वरजी के उपदेश से प्रभावित हो राजा ने ही जैनधर्म स्वीकार कर लिया तब प्रजा उसके मार्ग का अनुसरण करे इसमें आश्चर्य ही क्या।
इस के प्रत्युत्तर में आचार्यश्री कक्कसूरिजी ने कहा- आपका कहना सर्वथा सत्य है। पूर्वापार्यों के उपकार ऋण से उऋण होने जितनी शक्ति तो हम में है ही नहीं । उनके कार्यों की स्मृति आज भी हमारे हृदय में नवीन उत्साह एवं नूतन क्रान्ति को पैदा कर देती है। उन्होंने शासनोत्कर्ष के लिये जो कुछ कार्य किया वह इस जिह्वा से सर्वथा अवर्णनीय ही है । आप जैसे प्रभाविक तो आज भी पूर्वाचार्यों के मार्ग का अनुसरण कर जैन शासन की प्रभावना कर रहे हैं। क्या आपने राजा श्राम को प्रतिबोध देकर जैनधर्म के विशाल प्रचार में सहयोग नहीं दिया ? श्राचार्य प्रवर ! आपके नाम को श्रवण करके तो आज भी वादी लोग धूजते हैं । यदि श्राप जैसे वादी कुब्जर केशरी जिन शासन स्तम्भ का आविर्भाव नहीं हुआ होता तो विधर्मी लोग जैन शासन की नाव को कमजोर बना देते । श्रापश्री ने इन्हीं सब वादियों के सम्मुख जिन शासन की उन्नत सुयश पताका को उन्नत रक्खी। इस प्रकार आचार्य देव परस्पर गुणों का अनुमोदन करते हुए शासन के हित की विचारणा किया करते थे जैसे प्राचार्यश्री कक्कसूरिजी म. प्रभाविक थे वैसा बप्पभट्टसूरिजी भी प्रतिभाशाली थे। दोनों प्राचार्यों का एक स्थान पर मिलाप होने से वहां के राजा एवं जन समाज पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा।
आचार्यश्री कक्कसूरिजी ने गोपगिरि में एक मास की स्थिरता की इस अवधि में प्राचार्यश्री बप्पभट्ट सूरि के सत्संग समागम से उनका काल बहुत ही अानंद पूर्वक व्यतीत हुआ आचार्यश्रीकक्कसूरिजी को यह निश्चय होगया कि वर्तमान जैनाचार्यों में आचार्य बप्पभट्टसूरि वादियों का सामना करने में अनन्य ही हैं । यदि मैं अन्य प्रान्तों में विचार करूं तो भी इधर के प्रान्तों के लिये कोई भी विचारणीय प्रश्न नहीं कारण श्राचार्यषष्पभट्टसूरि स्वयं विचक्षण, उत्साही एवं समयज्ञ हैं । इस प्रकार गोपगिरि आने से आपके हृदय में परम संतोष एवं श्रानंद हुआ।
इधर आचार्यबप्पभट्टसूरि को भी अत्यन्त हर्ष हुश्रा। बादी कुरूजर केशरी सूरीश्वरजी के हृदय दोनों आचार्यों में आपसी सद्भाव
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