Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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श्राचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ओसबाल सं२ ११७८-१२३७
एक वृद्ध किसान का नदी के किनारे पर गेहूँ का खेत था । किसान की सम्भाल से खेत में प्राशा. तीत गेहूँ की उत्पत्ति हुई। सारा ही खेत गेहूँ से हग भरा दीखने लगा । जब धान्य पक गया किसान मजदूरों से गेहूँ कटवाने लगा पर किसान को सूर्यास्त होने के बाद दीखता नहीं था कारण वह रातान्ध था; अतः उसने मजदूरों से कहा-भाई ! तुम दिन अस्त होने के पूर्व ही अपना काम निपटा कर चले जाओ। मजदूरों ने इसका कारण पूछा तो किसान ने उच्च स्वर से पुकार कर कहा-मुझे सज्जा (सूर्यास्त के समय) का बड़ा भारी भय लगता है । सब मजरों को सुनाने के लिये उसने इसी बात को दो तीन बार कहा । कि मुझे जितनासिंह से भय नहीं उत्तना संज्जा से भय लगता है। इधर नदी की एक ओर खोखाल में एक सिंह पड़ा हुआ था। उसने किसान के शब्दों को सुनकर सोचा कि सज्जा भी कोई मेरे से अधिक शक्तिशाली जानवर होगा इसी। इन लोनों को मेरे नाम का जितना भय नहीं उतना सज्जा के नाम का भय मालूम पड़ रहा है। इप्स ताह सिंह के हृदय में भी सज्जा विषयक संशय-भय होगया । उसी गांव में एक वृद्ध धोबी भी रहता था; वह नागरिकों के कपड़े धोकर अपना गुजारा करता था। ग्राम से दो माईल की दूरी पर कपड़े धोने का एक घाट था अतः कपड़े ले जाने के लिये एक मोटा माता गधा रख लेना पड़ा था । गधा शरीर में खूब मोटा, तगड़ा एवं तन्दुरुस्त था । एक दिन सूर्यास्त होने पर भी गधा नहीं आया तो धोबी मारे गुस्से के हाथ में लठ्ठ लेकर उसे खोजने को गया। भाग्यवशात् धोबी को भी रात्रि में कम दीखता था अतः जब वह दंढते २ नदी पर आया तो नदी के किनारे पर एक सिंह पड़ा हुआ देखा । कम दीखने के कारण उसको सिंह में ही गधे की भ्रान्ति होगई और क्रोध के आवेश में पांच सात लट्ठ सिंह के जमा दिये । इधर सिंह ने सोचा कि-सज्जा नाम के जो मैंने मेरे से बलवान प्राणी के विषय में सुना था-हो-न हो वह यही सज्जा है । बस इसी भय और शंका के कारण उसने धोबी के सामने चूं तक भी नहीं किया । धोबी भी उसे गधा समझ उसके गले में रस्सा डाल अपने घर पर ले आया । गत्रि में भी सज्जा के भय से सिंह चुपचाप ही रहा । जब अाधा घंटा रात. शेष रही तब धोबी ने प्राम के सब कपड़े सिंह पर लाद कर घाट पर जाने के लिये प्रस्थान किया । मार्ग में सूर्योदय होते ही पहाड़ पर से एक सिंह का बच्चा पाया । उस अपने जातीय वृद्ध सिंह की इस प्रकार की दुर्दशा देखी नहीं गई। उसे बड़ा ही पश्चापात हुआ कि सिंह जैसा पराक्रमी पशु गधे के रूप में कपड़े लादने रूप भार का वहन करने वाला कैसे दृष्टिगोचर हो रहा है ? उसने पास में आकर वृद्ध सिंह को पूछा-बाबा यह क्या हालत है ? वृद्ध शेर ने कहा-तू अभी वच्चा है मत बोल, देख-यह सज्जा नाम का अपने से भी पराक्रमी जीव है । इसने मुझे तो ऐमा पीटा है कि-मेरी .मर ही टूट गई हैं । अगर तू भी चुप रहने के बदले कुछ बोलना प्रारम्भ करेगा तो तुझे भी इसी तरह पीटेगा- मारेगा अतः जैसे आया वैसे चले जाना ही अच्छा है। यह सुन शेर का बच्चा सोचने लगा- संसार में सिंह से शक्ति शाली तो दूसरा कोई जोव वर्तमान नहीं फिर सज्जा का नाम भी कभी सुनने में भी नहीं आया अतः अवश्य ही बाबा के हृदय में एक तरह भय प्रविष्ट हो गया है। बस इस संशय को निकालने के लिये मुझे किसी न किसी तरह प्रयत्न अवश्य ही करना चाहिये । यद्यपि मैं बच्चा हूँ,-बाबा को शिक्षा या उपदेश देने का अधिकारी नहीं पर मौका ऐसा ही आ गया है अतः अपनी जातीय गौरव खोना युक्ति युक्त नहीं। इस तरह मन में संकल्प विकल्प कर सिंह को कहा बाबा ! सज्जा तो कोई जानवर ही नहीं है । आप व्यर्थ ही भ्रम में पड़े हुए हैं । यदि मेरे कहने पर आपको विश्वास न हो तो आप एक किसान का उदाहरण
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