Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ५२०-५५८ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
स्वैर ! यह मान लिया जाय कि सिक्काओं का बनाना सम्राट् श्रेणिक के समय से ही प्रारम्भ हुआ था पर एक सवाल यह पैदा होगा कि उस समय के पूर्व वाणिज्य व्यापार तथा माल का लेना वेचना कैसे होता था तथा शास्त्रों में यह भी कहा जाता है अमुक सेठ दश करोड़ की अमुक ५० करोड़ की आसामी था सिक्का बिना यह गिनती कैसे लगाई गई होगी ? इसके लिये कहा जाता है कि सामान माल का लेन देन तो माल के बदले माल ही दिया जाता था जैसे धान देकर गुड़ लेना घृत देकर कपड़ा लेना तथा गाय बछा देकर माल लेना और विशेष व्यापार तथा दूर दूर देशों में थोक वद्ध माल बेचना उसके लिये तेजमतुरी तथा रत्न मोतियों से भी व्यापार किया जाता था और उस सोना रत्न मारएक मोतियों की बजाय से अनुमान किया जाता था कि इस व्यक्ति के पास इतना द्रव्य है और आज भी जहाँ पाश्चात्य विद्या का अधिक प्रचार नहीं है वहाँ के किसान लोग धान गाय बछड़ा देकर माल खरीद किया करते हैं तथा जैन शास्त्रों में धन्ना सेठ जावड़शाह जगडुशाह सज्जन पेथा वगैरह वहुत व्यापारियों के वर्णन में तेजमतुरी का उल्लेख मिलता है कि वे तेजमतुरी देकर लाखों का माल खरीद किया था । इससे पाया जाता है कि सिक्का का चलन सम्राट् श्रेणिक के शासन में ही प्रारम्भ हुआ होगा । दूसरा अभी थोड़े समय में सिन्ध एवं पंजाब देश के बीच में भूगर्भ से दो नगर निकले हैं वे नगर इ० सं० पूर्व कई पांच हजार वर्ष जितने प्राचीन होने बतलाये जाते हैं उन नगरों के अन्दर बहुत प्राचीन पदार्थ निकले हैं पर प्राचीन एक भी सिक्का नहीं निकला यदि प्राचीन काल में सिक्का का चलन होता तो थोड़ी बहुत संख्या में सिक्के अवश्य मिलते १ जब तक कोई प्राचीन सिक्का नहीं मिल जाय तब तक तो विद्वानों की यही धारणा है कि सिक्काओं की शुरुआत इ० सं० पूर्व छटी शताब्दी में हुई थी फिर भी अनुमान वाला निश्चयात्मिक नहीं कह सकता है।
समय
वर्तमान में जितने सिक्के मिल हैं वे तीन प्रकार के हैं १ - धातु के क्राटे हुए टुकड़े जिस पर ऐरन और हथोड़ा से सिक्का की छाप पड़ी हुई २- धातु को गाल कर भूमि पर छोटे-छोटे सिक्काकार खाड़ा कर उसमें गाला हुआ धातुरस ढाल कर सिक्का बनाना ३-- टकसाल के जरिये सिक्का पड़ना । इन तीन प्रकार के सिक्कों में पहला धातु के काटे हुए टुकड़ों को ऐरन हथोड़ा से छाप लगाना सम्राट बिंबसार के तथा धातु का रस बना कर भूमि पर डाल कर सिक्का बनाना नंदवंश एवं मौर्यवंश के राजा के समय के हैं और सम्राट सम्प्रति के समय सम्राट ने टंकसालों का निर्माण कर उन टकसालों द्वारा सिक्के पाडे गये थे तथा राजा संप्रति के समय के बाद भी जहां पर टकसालें स्थापित नहीं हुई थी वह पर ढाल में सिक्के ही पड़ाये जाते थे । वर्तमान में मिले हुए सिक्काओं में कई सिक्के तो ऐसे हैं कि जिसके एक ओर छाप है और दूसरी ओर साफ चीपटे हैं वे सिक्के सम्राट् श्रेणिक के समय के हैं कारण ऐरन हथोड़ा से सिक्के पाडने में एक ही ओर छाप पड़ सकती है दूसरी ओर साफ ही रहते हैं। कई
the lower end of the scale, for smaller purchases stood another unit, which took Various forms among different peoples. Shells, beads, knives and where those matals were discovered. Bars of Copper and iron".
(See the Book of "Coins of India" of "the Heritage of India Series" written by C. J. Brown M. A Printed in 1922. P. 13)
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सिक्काओं की शुरुआत
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