Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि० सं० ५५८ से ६०१ ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
शुद्धि मशीन चलती ही रहती थी वे दूसरे प्रान्त में नये जैन बना कर उस क्षति की पूर्ति कर ही डालते थे । फिर भी जैनों के लिए वह समय बड़ा ही विकट समय था क्योंकि एक ओर तो जैन श्रमणों में श्राचार शिथिलता एवं चैत्यवास के नाम पर ग्रामोग्राम श्रमणों का स्थिरवास और दूसरी और विधर्मियों का संगठन आक्रमण तथापि शुभचिन्तक सुविहित एवं उपबिहारी आचार्यों शासन की रक्षा करने को कटीबद्ध रहते थे पाठक उन श्राचार्यों का जीवन पढ़कर अवगत होगये होंगे कि वे अपनी विद्वतापूर्ण एवं कार्य कुशलता से धर्म की रक्षा किया करते थे ।
बिक्रम की सातवीं शताब्दी में पांड्य देश में सुन्दर नामक पांड्यवंश का राजा राज करता था और वह कट्टर जैनधर्मोपासक था किन्तु उसकी रानी और मंत्री शिवधर्मी थे उन्होंने पांड्य देश में शिव धर्म का प्रभुत्व स्थापन करने का निश्चय किया और ज्ञानसम्बदर नामक शिव साधु को बुलाकर राज सभा में कुछ चमत्कार बतलाकर जैनों को परास्त कर राजा को शिवधर्मी बना लिया । बस, फिर तो कहना ही क्या था कई प्रकार के प्रपंच रच कर कोई आठ हजार जैन मुनियों को मौत के घाट उतार दिये ।
इसी प्रकार पल्लव देश राजा महेन्द्रवर्मा को शित्रसाधु द्वारा जैनधर्म छोडा कर शिवधर्मी बनाया गया और जैनमर्म को इतनी ही क्षति पहुचाई गई कि जितनी पांड्य राजा ने पहुचाई थी जिसका वर्णन ' पेरिया प्रराणम्” ग्रंथ में है ।
इसी समय वैष्णव लोगों ने अपना धर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया और जैन धर्म को वढी भार हानि पहुँचाई । मदुरा मीनक्षी मन्दिर के मण्डप की दीवाल की चित्रकारी में जैनियों पर शिव और वैष्णवं द्वारा किये गये अत्याचारों की कथा अंकित है जिसको पढ़ने से अतंत्य दुःख होता है ।
तीर नगर के पुस्तकालय में जैनियों को कष्ट पहुचने के दो चीत्र है जिसमें एक चित्र में अनेक जैनों के शूली पर लटका कर मारने का दश्य है तब दूसरे चित्र में शूली पर चढ़ा कर लोहा के शिलाये से पूर हालत में मारने का दृश्य दिखाया गया है
1
लिंगायत मत का स्थापक वासवदत ने विज्जल की सहायता से दश हजार श्रमणों को शूली चढ़ कर उसकी लाशों काग और कूतों को खिलाइ गइ इसका रामोच कारी वर्णन हलस्य महात्म्य नाम का प्र में हैं ।
राजा गणपत देव ब्राह्मणों की चूगल में आकर निरापराध जैनों को तेल का कोल्हुओं में दबा क बुरी तरह मरवाये - तथा किसी समय जैनो और ब्राह्मणो के आपस में शास्त्रार्थ हुआ जिसमें ब्राह्मणों मंत्री द्वारा जैनियों को परास्तकर- जैनों की कत्ल करवादी इत्यादि अनेक उदाहरण विद्यमान है।
इनके अलावा भी शिव वैष्णव और रामानुजादि धर्म वालों ने जैनधर्म पर बड़े २ अत्याचार कर बहुर क्षति पहुँचाई पर जैनधर्म अपनी सच्चाई के नाते जीवित रहा और रहेगा | जैनधर्म की यह एक बढ़ भारी विशेषता है कि अपने उत्कर्ष के समय किसी दूसरे धर्म पर अत्याचार नहीं किया था यदि जैन चाहते तो सम्राट् सम्प्रति के समय सम्पूर्ण भारत को जैन बना सकते तथा राजा कुमारपाल के समय १८ देशों के जैनधर्मी बना सकते थे पर न तो जैनों ने कभी बलजबरी से किसी को जैन बनाया और न जैनधर्म ऐस शिक्षा ही देते हैं । जैनों ने जो कुछ किया है । वह अपने धर्म के मौलिक तत्वों का उपदेश देकर ही किय है खैर प्रसंगोपात हूण राजाओं के साथ इतना लिख दिया है ।
१०२६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
जैनो पर अत्याचार
www.jainelibrary.org