Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धसरि का जीवन }
[ ओसवाल सं० १.३१-१०६०
मन्दिरों के दर्शन करते हुए या स्थान स्थान के संघों से सम्मान पाते हुए जीर्णोद्धार एवं जीव दया के लिये संघपति मैंकरण खुल्ले हाथों से पुष्कल द्रव्य व्यय करता हुआ संघ तीर्थ धिराज श्रीशत्रुजय पर पहुँचे भावुकों ने परम प्रभु ऋषभदेव के दर्शन स्पर्शन या पूजा कर अपने जीवन को सफल बनाया आठ दिन तक तीर्थ पर रह कर अष्टान्हिक महोत्सव धजारोहणादि शुभ कार्य किये बाद रेवता चलादि तीर्थों की यात्रा कर संघ पुनः नारदपुरी में आया शाह मेकरण ने पुरुषों के लिये सोना की कंठियों और स्त्रियों के लिये सोना के कांकण ( चुड़ियों ) तथा उमंदा वस्त्र एवं लडओं की प्रभावना देकर संघ को विसर्जन किया इन सब कार्यो में शा मकरण ने तीन करोड़ रुपये व्यय किया जो उनको करणा ही था यह एक उदाहरण बतलाया है पर उस समय ऐसे तो बहुत से धर्मज्ञ भावुक भक्त थे और उनको पुन्य के उदय से लक्ष्मी भी उनके घर पर दाशी होकर रहती थी ज्यों ज्यों शुभ कार्यों में लक्ष्मी का सदुपयोग करते थे त्यों त्यो अधिक से अधिक लक्ष्मी बढ़ती जाती थी उस समय के भद्रिक लोगों की देव गुरु धर्म पर अटल श्रद्धा एवं विश्वास था छल प्रपंच माया कपटाइ में तो ये लोग प्रायः समझते ही नहीं थे गुरु वचन पर उनको पूर्ण श्रद्धा थी येही उनके पन्य-बढ़ने के मुख्य कारण थे ।
वंशावलियाँ पट्टावलियों में अनेक उदार नर पुंगवों के उल्लेख किया गया है पर प्रन्थ वडजाने से मैंने केवल नमूना के तौर पर एक शाह मैंकरण का ही उल्लेख किया है और शेष हमारे लेखन पद्धति के अनुसार नामावली आगे देदी जायगी जिससे पाठक ठीक अवगत हो सकेंगे।
प्राचार्य सिद्धसूरीश्वरजी महाराज अपने २९ वर्ष के शासन समय में जैनधर्म की महिति सेवा की और जैनधर्म का उत्कर्ष को खुब जोरों से बढ़ाया आपके शासन में हजारों मुनि आर्याए प्रत्येक प्रान्त में विहार कर अपने संयम को शोभाय मान कर भव्य जीवों पर महान् उपकार करते थे कोरंट गच्छ कुंकुं. न्द शाखा एवं वीर परम्परा के अनेक गण कुल शाखाए के हजारों मुनि आपस में भातृ भाव एवं मेल मिलाप के साथ जैनधर्म का प्रचार वढ़ा रहे थे उस समय आचार्य सिद्धसूरि सर्वोपरी धर्म प्रचारक आचार्य समझे जाते थे और श्रापका प्रभाव सब पर एकसा पड़ता था अतः ऐसे महान् प्रभाविक आचार्य के चरण कमलों में मैं कोटी कोटी नमस्कार कर अपने जीवन को सफल हुआ समझता हूँ:
श्राचार्य भगवान् के २६ वर्ष के शासन में भावुकों की दीक्षाए १-धारोजा के ब्राह्मण सीताराम ने दीक्षली २-कुपल के चंडालिया गौत्रीय माला ने ३-क्षत्रीपुरा , चोरडिया , भादू ने ४-हापड़ " लुग
कालण ने ५-खटोली , दूधड़ ६-पृथ्वीपुरा, श्रेष्टि ७-गोधाण , बोहरा ८-नागपुर , सुचंति
नारायण ने ९-उतरसाणी , प्राग्वट , संखला ने घरीश्ववरजी के शासन में दीक्षाए
१०५९
धनाने पुनड़ ने पन्ना ने
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