Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचाय ककसूरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १०६० से १०८०
तण्हा किलन्तो धावन्तो पत्तोवेयरणीनई। जलं पाहित्तिचिन्तन्तो खुरधाराहि विवाइओ ॥१४॥ उण्हाभित्तत्तो संपत्तो असिपत्त महारण, असिपत्तोहिं पडन्तेहिं छिन्नपुवो अणेगमो ॥१५॥ मुग्गरेहिं सुसतीहिं सुलेहिं मुसलेहिय । गयासंभग्ग गत्तहिं पत्त दुक्खं अणंतसो ॥१६॥ खुरेहिं तिक्खधारेहि, रियाहि कप्पणीहिय । कप्पिओ फालि पोछिन्नो उक्कितोयअणेगसो॥१७॥ पासेहिं कूडजालेहि मिओवा अवसो अहं । वाहिओ बद्धरुद्धोवा, बहुसो चेव विवाइओं ॥१८॥ गलेहिं मगर जालेहि, मच्छोवा अवसो अहं । उल्लिओफालिओहिओ मारिओयअणंतसो ॥१९॥ वीदंसएहिं जालेहि लेप्पाहि सउणोविव । गहि ओ लग्गोबद्धोय मारिओय अणंतसो ॥१०॥ कुहाडफरसुमाइहिं बढईहिं डमो विव । कुट्टिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिीय अणंतसो ॥२१॥
___ उक्त रोमाञ्चकारी नारकीय वर्णन को श्रवण कर उपस्थित जन समाज के रोंगटे खड़े हो गये । एकदम सहसा सब के सब कुछ क्षणों के लिये वैराग्य के प्रवाह में प्रवाहित हो गये । श्राचायश्री ने इसका रौद्र एवं विभत्स रस परिपूर्ण सजीवचित्र उपस्थित श्री वर्ग के वक्षस्थलपर अंकित करते हुआ फरमाया किमहानुभावो ! जब हम दीक्षा का उपदेश देते हैं तब दीक्षा के बावीसपरिषहों की दुष्करता को स्मरण करके साधारण जन समाज भयभीत हो जाता है किन्तु, विचारने की बात है कि-नारकीय दुःखों के सामने परिषह जन्य यातनाएं नगण्य सी है । बन्धुओं ! हमने अनंतबार ऐसी २ दारुण तकलीफें सहन की है तो फिर चारित्र में नरक से ज्यादा क्या कष्ट हैं १ यदि सम्यग्दृष्टि पूर्वक विचार किया जाय तो दीक्षा के जैसा निवृत्ति मय सुख तीनों लोक में कहीं पर भी नहीं है । शास्त्रकार फरमाते हैं कि मनुष्य की उत्कृष्ट मद्धि से देवताओं के सुख अनंत गुणे हैं तथापि
१ जितना सुख १५ दिन की दीक्षा वाले को है उतना व्यंतर देवों को नहीं । २ , " एक मास , , ,, नागादि नवनिकायों के देवों को नहीं
" " ", असुर कुमार देवों को नहीं। " , , , ज्योतिषी , , , ,, पहले दूसरे देवलोक के देवों को नहीं ।
तीसरे चौथे देव लोक के देवों को नहीं ।
पांचवे, छ? " "
, , सात, आठवे , , " "आठ , ,
, , नववे, दसधे , , ,
"" ग्यारहवें, बारहवें , , ११ , , दस , ,, , , , नवप्रेवेयक , " " १२ " "ग्यारह" " " "" चार अनुत्तरविमान के " " १३ , ,बारह , , , , , सर्वार्थ सिद्धविमानके देवोंको, ,
पौद्गलीक सुखों में देवता जैसा और उसमें भी अनुत्तर विमान निवासी देवों जैसा सुख दो अन्य है ही नहीं। पर संयमाराम में विचरण करने वाले मुनियों के सामने वह सुख भी शास्त्रकारों ने नगण्य सा संयमसुख व देव सुख की तुलना
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