Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन )
[ ओसवाल सं० १००१-१०३१
अत्यन्त समारोह पूर्वक सूरिजी के पास दीक्षा ली। डिंडू गौत्रीय शा. नोढ़ा के बनाये महावीर मंदिर की भी प्रतिष्ठा इसी बीच हुई ।
चातुर्मासानंतर वहां से विहार कर चन्द्रावती शिवपुरी वगैरह छोटे बड़े प्रामों में होते हुए श्राचार्यश्री कोरंटपुर पधारे। उस समय वहां कोरंटगच्छीय आचार्यश्री सर्वदेवसूरिजी विराज मान थे । उन्होंने जब आचार्यश्री देवगुप्तसूरि का शुभ श्रागमन सुना तो वे अपने शिष्यों सहितसूरिजी का सत्कार करने के लिये उनके समुखगये । श्रीसंघ ने भी बड़ े ही समारोह से सूरिजी का नगर प्रवशमहोसव किया। इसमें श्रीमाल - वंशीय शाह खुमाण ने सवालक्ष द्रव्य व्यय किया । सूरिजी ने चतुर्विध श्रीसंघ के साथ भगवान् महावीर की यात्रा की। बाद में दोनों श्राचार्य देवों ने एक तख्त पर विराजमन होकर थोड़ी किन्तु समयानुकूल सारगर्भित देशना दी। जनता पर इसका पर्याप्त प्रभाव पड़ा ।
करंटपुर में बिराजते हुए सूरीश्वरजी का एक दिन यकायक स्वास्थ्य खराब होगया । शत्रि को सोते हुए उन्होंने विचार किया कि - मेरी वृद्धावस्था हो चुकी है और स्वास्थ्य भी अनुकूल नहीं है । हो न हो मेरा मृत्युकाल ही नजदीक हो अतः इस समय किसी गच्छ के योग्य मुनि को पट्टभार दे देना ही समीचीन होगा । वे इसी विचारधारा में प्रवाहित हो रहे थे कि देवी सच्चायिका ने भी यकायक वहां परोक्षपने प्रवेश कर सूरिजी को वंदन किया। सूरिजी ने देवी को धर्मलाभ दिया । धर्मलाभ आशीष को प्राप्त करने के पश्चात् देवी ने प्रार्थना की कि भगवन् ! आप किसी तरह की चिन्ता न करें। अभी तो श्राप आठ वर्ष पर्यंत और जनकल्याण करेंगे । प्रभो, एतद्विषयक विशेष विचार की आवश्यकता नहीं फिर भी यदि आपको जल्दी पट्टधर बनाना ही है तो कृपया उक्त कार्य को उपकेशपुर पधार कर ही करें। पूज्यवर ! इससे मुझे भी पकी परोक्ष सेवा का यत्किच्चित लाभ भी हस्तगत होगा । सूरिजी ने भी क्षेत्र स्पर्शनानुसार देवी के बचनों को स्वीकृत किया और देवी भी सूरिजी को वंदन कर यथास्थान चली गई ।
देवी के कथनानुसार आचार्यश्री के स्वास्थ में थोड़े ही समय में सन्तोष जनक सुधार हो गया । श्रतः शरीर के पूर्ण स्वस्थ होने पर आचार्यश्री ने तुरंत ही कोरंटपुर से विहार कर दिया । क्रमशः सूरिजी सत्यपुर, भिन्नभाल, जाबलीपुर, श्रीनगर आदि प्रामों में विचरते हुए माण्डव्यपुर पधारे माण्डव्यपुर श्रीसंघ ने श्रापका वड़ा ही शानदार स्वागत किया । जब उपकेशपुर श्रीसंघ को ज्ञात हुआ कि आचार्यश्री मांडव्यपुर पर्यन्त पधार गये हैं तो उपकेशपुर और मांढव्यपुर के बीच श्राने जाने का तातांसा लगा दिया। वे लोग उपकेशपुर पधारने की श्रमहपूर्ण प्रार्थना करने लगे। पर मांडव्यपुर के भक्तगण सूरिजी को कब बिहार करने देने वाले थे ।
उस समय मांडव्यपुर, उपकेशपुर की सत्ता के नीचे था । उपकेशपुर के रावगोपाल ने श्रेष्टिगोत्रीय राव शोभा को बहां के प्रबन्ध एवं समुचित व्यवस्था लिये नियुक्त किया था। उसने सूरिजी से बहुत पूर्ण प्रार्थना की कि, पूज्यगुरुदेव ! आपके विराजने से और भावुकों को तो लाभ होगा ही पर मेरी आत्मा का कल्याण तो अवश्य ही होगा । भगवन्! मैं एक मात्र अपना आत्म कल्याण चाहता हूँ । आप जैसे पूज्य पुरुषों के निमित्त (कृपा) की आवश्यकता थी वह भी गुरुदेव की कृपा से सहज ही हस्तगत होगया है | अतः आप यहां पर ही चातुर्मास करने की कृपा करें ।
इधर उपकेशपुर का रावगोपाल, श्रीसंघ को साथ में लेकर सूरिजी की प्रार्थना के लिये माण्डव्यपुर में
कोरंटपुर में दो सूरियों का समागम
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