Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ६३१ से ६६०
[ भगवान् पार्श्वनाथ को परम्परा का इतिहास
३८-प्राचार्य श्रीसिद्धसरि (सप्तम)
श्रीमन्मान्यवरेण्यसिद्धमुनिराट् श्रीपप्पनागाभिधे ॥ गोत्रेलब्धजनिः सदानिजयते शीतांशु बिम्बाननः लन्धो येन पुराऽक्षयो धननिधिर्धम्ये विधौ योजितो। दीक्षा प्राप्य तपःस्थितो जिनमतोद्धारे मुदा तत्परः।।
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ज्यपाद, प्रख्यात विद्वान्, चारित्र चूड़ामणि, विविध वाङ्गमय विदग्ध, तपस्ते जपुनधारी,
ज्ञान दिवाकर, उत्कृष्ट क्रिया कर्ता आचार्य श्री सिद्धसूरिजी महागज एक सिद्ध पुरुष की 9 भांति सर्वत्र पादपूजित थे। आप जैसे वर्तमान साहित्य व्याकरण, न्याय, काव्य, लक्षण न आदि शास्त्रों के अनन्य - अजोड़ विद्वान थे उसी तरह कठोर तपश्चर्याकर श्रात्म दमन
करने में भी परम शूरवीर थे । आपश्री की तपश्चर्या अभिग्रह के साथ में प्रारम्भ होती थी
अतः कभी २ तो एक मास तक की कठोर तपश्चर्या होने पर भी अभिग्रह पूर्ण नहीं होता था। इस तरह आपने अपने जीवन का तपश्रर्या भी एक अंग बना लिया। इस कठोर तपश्चर्या के प्रभाव से साधारण जनता ही नहीं अपितु बड़े २ राजा महाराजा भी आपश्री के तपस्तेज एवं ज्ञान क्रिया निधान से प्रभावित होकर आपश्री के चरण कमलों की सेवा का लाभ लेने में अपने को परम सौभाग्यशाली समझते थे ।
आपश्री का जीवन अनेक चमत्कार पूर्ण घटनाओं से ओतप्रोत है जिस को मैं संक्षिप्त रूप में पाठकों की सेवा में इसी गरज से रख देता हूँ कि वाचकवृंद, प्राचार्य देवका जीवन चरित्र मनन पूर्वक पढ़ कर व श्रवण कर सूरीश्वरजी के जीवन का अनुसरण करें।
सिंध की उन्नत भूमि पर मालपुर नामका नगर था। वहां पर उस समय राव रुद्राट के वंश पर. म्परा के राव कानद राज्य करते थे । यद्यपि वेदान्तियों के अधिक संसर्ग में आने के कारण, मालपुर नरेश, बाह्मण धर्मोपासक थे, परन्तु जैन श्रमणों के त्याग, वैराग्य, शांति, क्षमा, सरलता आदि गुणों का उनके हृदय पर अच्छा प्रभाव था । वे जैन श्रमणों की चारित्र विषयक विशुद्धता से प्रभावित हो उनके सत्संग के लिए सदाही उत्कंठित एवं लालायित रहते थे । परम्परागत श्राभिनिवेशिक मिथ्यात्वका यद्यपि वे (मालपुर नरेश) त्याग नहीं कर सके परन्तु जैनश्रमणों की पवित्रता एवं यम नियम की दुष्करता के कारण वे उनकी ओर चुम्बक की तरह आकर्षित थे। जैनश्रमणों के आगमन से एवं व्याख्यान श्रवण से मालपुर नरेश का मन भी शान्ति का अनुभव करता था। हृदय सागर में श्राध्यात्मिक भावनात्रों की उत्तुंग मियां छलने लगती । लिखने का तात्पर्य यही है कि-यह वाममार्गी होने पर भी जैन ही था।
मालपुर में जैन एवं उपकेशवंशियों की अच्छी श्राबादी थी। परम समृद्धि शाली मालपुर नगर में क्रयविक्रयादि वाणिज्य (व्यापार ) कला कुशल, धर्मानुरागी, श्रावकत्रतानुष्ठान कर्ता बप्पनागगौत्रीय शा. देवा नाम के एक जग विश्रुत व्यापारी रहते थे। आपकी गृह देवी का नाम दाड़म दे था । दम्पत्ति बड़े ही धर्मशील एवं भद्रिक परिणामी थे । धर्म करनी में सदा उद्यमपन्त-तत्पर थे । शाह देवा के यों तो पुत्र
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सिन्ध धरा का मालपुरा
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