Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९५८-१००१
की आराधना करना है । विमल ! साधारण मनुष्य तो क्या ? किन्तु चक्रवर्ती जैसे चतुर्दिशा के स्वामी भी स्वाधीन सुखों पर लात मार कर संयम रूप अमूल्य रत्न को यावज्जीवन सुरक्षित रख अनादिकाल से सम्बन्धित जन्म मरण के दुक्खों से छूट कर आत्मशांति परम सुख का अनुभव करते हैं । विमल ने कहा-पूज्यवर ! दीक्षापालन करना भी तो महादुष्कर एवं लोहे के चने चबाना है ? सूरिजी ने कहा विमल! देख,यह बैल की दारूण यातना असहय है या दीक्षा पालन दुष्कर है ? विमल ने कहा-यहतो परवश होकर भोग रहा है । सूरिजी ने कहा-जब परवश होकर भी वेदना भोगनी पड़ती है तो सबसे अच्छा यही है कि स्वाधीनपने ही वेदना भोगलें जिससे बलादसह्य वेदना न सहन करनी पड़े । विमल ने कहा-- भगवन् मेरी इच्छा सब प्रकार के सांसारिक दुःखों से मुक्त होने की है । सूरिजी ने कहा-विमल ! खूब गहरा विचार करले । देख वैराग्य चार प्रकार के होते हैं।
(१) वियोग वैराग्य -- किसी के मृतक शरीर को जलाते हुए देखकर मनुष्य को श्मसानीया वैराग्य श्राता है परन्तु, वह मृत देह को जलाने के पश्चात् स्नान करने के साथ ही साथ धुप जाता है।
(२) दुःख वैराग्य -जब कभी असह्य दुःख पापड़ता है तब वैराग्योत्पन्न होजाता है। पर पह, दुःख की स्थिरता तक ही सीमित रहता है।।
(३) स्नेह बैराग्य-पिता पुत्रादि के स्नेह से जो वैराग्य होता है वह भी अधिक समय तक स्थायी नहीं रहता।
(४) श्रात्म वैराग्य-श्रात्मा के भावों से सांसारिक स्वरूप को समझ कर जन्म मरण के दुःख से मुक्त होने के लिये जो वैराग्य होता है वह सच्चा वैराग्य है।
सूरिजी-विमल ! तेरा वैगग्य इन चारमें से कौनसा है।
विमल- पूज्यवर ! मेरे वैराग्य में कारण तो इस बैल का दुःख ही है अत- मेरा वैराग्य दुःखजन्य बैराग्य है किन्तु मुझे दृढ़, स्थायी तथा सच्चा वैराग्य है ।
सूरिजी-तब तेरे दीक्षा लेने के भाव कव हैं ? विमल -आप आज्ञा फरमावे तब ही। सूरिजी-शीघ्रमतः सिद्ध क्षेत्र में ही तेरी दीक्षा हो जाय तो... विमल-बहुत खुशी की बात है गुरुदेव ! मैं भी तैय्यार हूँ। सूरिजी-तुम्हारा शीघ्र ही कल्याण हो। इस प्रकार के महत्वपूर्ण निर्णय के पश्चात् सूरिजी और संघपतिजी क्रमशः संघ में आकर मिलगये। विमल के साथ में उनकी धर्मपत्नी,आठ पुत्र तीन पुत्रियां एवं भाइ आदि बहुत सा परिवार भी यात्रा निमित्त पाया था किन्तु, विमल ने सिद्ध क्षेत्र पहुँच ने के पूर्व अपने मनोगत भांवों की किसको सूचना भी न की और क्रमशः चलता हुआ संघ तीर्थ स्थान पर सकुशल आ गया । सब ने दादा के दर्शन, स्पर्शनकर अपने मनोरथों को सफल बनाने में भाग्यशाली बने । पूजा प्रभावना, स्वामीवात्सल्य' धाजामहोत्सवादि पावन कार्यों में उदार दील से पुष्कल द्रव्य व्यय कर अपूर्व पुण्यमय लाभ उपार्जन किया।
जब संघपति सूरिजी को वंदन करनगये तब सूरीजी ने कहा कि पुण्य शाली ! क्या विचार है १ विमल ने कहा-वे ही दीक्षा ग्रहण करने के दृढ़ विचार हैं सूरिजी ने कहा-तब क्या देर है ? विमल-भगवान् ! देर कुछ विमल का वैराग्य और दीक्षा
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