Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९५८-१००१
भाग्य हूँ कि पिताजी को मौजुदगी में संघ नहीं निकाल सका तथापि विमल के हृदय में संघ निकाल कर तीर्थों की यात्रा करने की भावना बढ़ती ही गई ।
इधर मेदिनीपुर के प्रबल पुन्योदय से शासन शृंगार धर्मप्राण, श्रद्धेय, पूज्याचार्यश्री सिद्धसूरि का शुभागमन मेदिनीपुर में हुआ । स्वर्गस्थ करमण के विमलादि पुत्रों ने सवालक्ष द्रव्य व्यय कर सूरिजी का नगर प्रवेश महोत्सव करवाया।
सूरिजी का व्याख्यान हमेशा त्याग, वैराग्य एवं आत्म कल्याण के विषय में होता था । अतः सर्व श्रोतागण ऐसे तो सूरिजी के व्याख्यान से लाभ उठाते ही थे किन्तु विमल पर इन व्यायखानों का सविशेष प्रभाव पड़ा। एक दिन विमल ने सूरिजी से प्रार्थना की कि भगवान ! यदि इस वर्ष के चातुर्मास की कृपा हमारे पर हो जाय तो मैं चातुर्मासानंतर शत्रुञ्जय का संघ निकालू प्रत्युतर में सूरीश्वरजी ने फरमाया कि विमल ! तेरी भावना अत्युत्तम है । यात्रा के लिये संघ निकाल कर पुण्य सम्पादन करने रूप कार्य साधारण नहीं किन्तु, अत्यन्त महत्व का है। चातुर्मास के लिये निश्चित तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता; पर जैसी क्षेत्र स्पर्शना होगी वैसा कार्य बनेगा।
विमल के दिल में पूरी लगन थी । वह अच्छी तरह से समझता था कि गच्छनायक सूरिजी के विराजने से ही मेरा हृदयान्तर्हित कार्य बड़ी सुगम रीति से सफल हो जायगा इत्यादि खैर । पुनः एक समय मेदिनीपुर श्रीसंघ एकत्र मिडकर सूरिजी से चातुर्मास के लिये आग्रह भरी प्रार्थना की। सूरिजी ने भी भविष्य के लाभालाभ का कारण जानकर मेदिनीपुर के श्रीसंघ की प्रार्थना को स्वीकार करली । बस फिर तो था ही क्या ? केवल विमल के लिये ही क्यों पर आज तो मेदिनीपुर के घर घर में हर्ष की तरंगे छलने लगी।
चातुर्मास में पर्याप्त समय होने से सूरिजी ने इधर उधर के समीपस्थ क्षेत्रों में परिभ्रमण कर अर्ध निद्रित समाज को जागृत किया । चातुर्मास के समय के नजदीक आने पर सूरिजी ने पुनः मेदिनीपुर पधार कर चातुर्मास कर दिया । बस विमल के हृदयान्तर्हित मनोरथ भी सफल होगया। उसने सूरिजी से परा मर्शकर संघ के लिये और भी विशेष सामग्री जुटाना प्रारम्भ कर दिया।
इधर चातुर्मास में सूरिजी के व्याख्यान हमेशा तात्विक, दार्शनिक, एवं सामाजिक विषयों पर होते थे। जैन दर्शन के मुख्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हुए त्याग, वैराग एवं आत्म कल्याण के विषयों का भी समन्वय कर दिया जाता जिससे, श्रोताओं का हृदय संसारावस्था में रहते हुए भी वैराग्य सन्निकट ही रहा करता था । आचार्यश्री के विराजने से इतः उतः सर्वत्र प्रबल परिमाण में धकिान्ति का बीजारोपण हुआ और जनता ने खूब लाभ उठाया।
जब चातुर्मास के अवसान का समय सन्निकट आ गया तो विमल ने सूरिजी से प्रार्थना की कि--- पूज्यवर ! कृषा कर संघ प्रस्थान के लिए परम शान्तिमय, कल्याण दायक, सौख्य प्रद शुभ मुहूर्त प्रदान करें जिससे सर्व कार्याराधन निर्विदनतया, परमानन्द पूर्वक हो सके। आचार्यश्री ने माह सुद पञ्चमी के मंगल मय दिवस का शुभ मुहूर्त प्रदान किय जिसको, विमल ने अत्यन्त विनयपूर्वक शिरोधार्य कर बधाया । सूरिप्रदत्त शुभमुहूर्त पर यथा समय उपस्थित होने के लिये स्थान २ पर निमन्त्रण पत्रिकाएं भेजी गई । संदेश वाहकों से शुभ संदेश दिलवाये गये । गुरुदेवों ( साधु, साध्वियों ) की विनती के लिये योग्य पुरुषों व अपने भ्राता एवं पुत्रों को भेजे ।
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श्री शत्रुजय का संघ
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