Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धहरि का जीवन
ओसवाल सं० ९२०-९५८
सिक्का-प्रकरण जब से अंग्रेज सरकार के पुरात्व विभाग द्वारा शोध खोज एवं खुदाई का कार्य प्रारम्भ हुआ तब से ही भूगर्भ में रहे हुए भारतीय बहुमूल्य साधन एवं विपुल सामग्री उपलब्ध होने लगी है जिसमें प्राचीन मन्दिर मूर्तियों स्तूप स्तम्भ शिलालेख आज्ञालेख खण्डगलेख ताम्रपत्र दानपत्र और प्राचीन सिक्के मुख्य माने जाते हैं और इतिहास के लिये तो ये अपूर्व साधन समझे जाते हैं इन साधनों द्वारा प्राचीन समय की राजनैतिक सामाजिक धार्मिक एवं राष्ट्रीय तथा उस समय के रीति रिवाज हुन्नरोद्योग शिल्प वगैरह २ और किस किस राष्ट्रीय का पतन एवं उत्थान का पत्ता हम सहज ही लगा सकते हैं इन साधनों के अभाव कई कई देशों के राजाओं का नाम निशान तक भी हम नहीं जान सकते थे हम यह भी नहीं जानते थे कि कौन कौन आति या बाहर से आकर अपनी राजसता जमा कर राज किया था। पर उपरोक्त साधनों के आधार पर विद्वानों ने अनेक वंशों के राजाओं के इतिहास की इमारतें खड़ी करदी है । फिर भी वे साधन पर्याप्त न होने के कारण विद्वानों ने अपना भानुभव एवं कई प्रकार के अनुमानों का मिश्रण करके इतिहास लिखक जनता के सामने रक्खा है हाँ उन विद्वान लेखकों के आपस में कहीं कहीं मतभेद भी दृष्टि गोचर होता है इसका मुख्य कारण साधनों की त्रुटी ही समझना च हिये कारण इतना स्वल्प साधनो पर प्राचीन समय का इतिहास लिखना कोई साधारण बात नहीं है खैर विद्वानों के आपस में कितना ही मतभेद हो पर हमारे लिये तो उन्हों का लिखा इतिहास एक पथ प्रदर्शक एवं महान् उपकारिक ही है जिसका हम हार्दिक स्वागत
___उपरोक्त प्राचीन साधनों के अन्दर से हम यहाँ पर प्राचीन सिक्कों के विषय ही कुछ लिखना चाइते हैं जो इतिहास के लिये परमोपयोगी साधन समझा जाता है। प्रथम तो यह कहा जाता है कि सिक्काओं की उत्पत्ति कब से हुई ? इस विषय में विद्वानों का मत है कि सिक्काओं की शुरुआत शिशु ग. वंशी सम्राट् बिंबसार के शासन समय में हुई थी और इस मान्यता की साबूति के लिये यह भी कहा जाता है कि भारत के चारों ओर की शोध खोज करने पर हजारों सिक्के मिले हैं जिसमें इ० सं० की छटी शताब्दी के पूर्व का एक भी सिक्का नहीं मिला है अतः + नुमान करने वालों को कारण मिलता है कि सिक्का की शुरुआत इ० सं० पूर्व की छटी शताब्दी में ही हुई हो साथ में यह भी कहा जाता है कि सम्राट् बिंबसार ने अपने शासन में व्यापार की सुविधा के लिये पृथक २ व्यापार की श्रेणियां बना दी थी-जैसेवणिक, सुनार, लुहार, सुथार, ठठेरा, दर्जी, बनकर तेली, तंबोली, नाई गान्धी वगैरह २ वे श्रेणियां अपना अपना कार्य किया करे इस प्रकार श्रेणियां बनाने के कारण ही राजा बिंबसार का अपर नाम श्रेणिक पड़ गया था और जैनशास्त्रों में तो विशेष इस नाम का ही प्रयोग हुआ दृष्टिगोचर होता है कई पश्चात्य विद्वानों का भी यही मत है कि सबसे पहले सिक्का व्यापारियों ने अपने व्यापार की सुविधा के लिये ही बनाये थे बाद में जब सिक्काओं का प्रचार बढ़ने लगा तब उस पर राज ने अपनी प्रभुत्व जमानी शुरू करदी
'Wealth in those early times being computed in cattle, it was only natural, the ox or cow should be employed for this purpose, In Europe then, and also in India, the cow stood as the higher unit of Barter. ( Barter exchang in kind ). At
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सिक्का-प्रकरण
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