Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ९२०-९५८
राजाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ आखिर राजा उदाई के योद्धों ने राजा चण्ड को जीवित पकड़ लिया बाद मूर्ति और दासी को लेकर वापिस अपने देश को आ रहे थे पर वर्षा ऋतु होने के कारण रास्ते में जीवों की उत्पत्ति बहुत हो गई तथा वर्षा भी बरस रही थी जहाँ पर आज मन्दसौर नगर है यहाँ श्राये कि राजाने चलना बन्द कर जंगल में पड़ाव कर दिया दश राजाओं ने पृथक् २ अपनी छावनियां डालदी और वर्षाकाल वही व्यतीत करने लगे ।
जब वार्षिक पर्व संवत्सरी का दिन आया तो राजा वगैरह सब लोगों ने सवत्सरी का उपवास किया हालत में रसोइया ने राजा चण्ड जो नजर कैद में था को जाकर पूछा कि आपके लिये आज क्या भोजन इस बनाऊ ं ? राजा ने पूछा कि इतने दिनों में कभी नहीं पूछा श्राज ही क्यों पूछा जा रहा है ? रसोईया ने कहा कि श्राज हमारे सवत्सरिक पर्व है सबके उपवास व्रत हैं केवल आप ही भोजन करने वाले हैं इससे आपको पूछा है इस पर राजा ने सोचा कि हमेशा राजा उदाई के साथ बैठकर भोजन करते थे अतः किसी प्रकार का अविश्वास नहीं था पर आज तो केवल मेरे ही लिए भोजन बनेगा शायद रसोइया भोजन में कुछ विषादिन मिलादे इत्यादि विचार कर राजा चण्ड ने कहा कि जब सबके पर्व का व्रत है तो मैं भी व्रत कर लूंगा मेरे लिये रसोई बनाने की जरूरत नहीं है । रसोइया ने जाकर राजा उदाइ को समाचार कह दिया जब सावत्सरिक प्रतिक्रमण का समय हुआ तो राजा चण्ड को भी बुलाया और क्षमापना के समय राजा उदाइ राजा चण्ड को क्षमापना करने को कहा पर उसने कहा मैं आपसे क्षमापना नहीं करूंगा । यदि श्राप दासी और मूर्ति देकर मुझे छोड़दे तो मैं क्षमापना कर सकता हूँ । राजा उदाइ ने साचा कि यदि राजा चण्ड क्षमापना न करेगा तो इसका पाप तो मुझे नहीं लगेगा पर राजा चण्ड आज पर्व का व्रत किया है जिससे यह मेरा साधर्मी भाई बन गया है केवल मेरे ही कारण इसके कर्म बन्धन का कारण होता है तो मुझे दासी और मूर्ति देकर इसको बन्धन मुक्त करके भी क्षमापना करवा लेना चाहिये - दुसरा राजा उदाई ने निमितिया से यह भी सुन रखा था कि पट्टन दट्टन होने वाली है, फिर उस हालत में मूर्ति कैसे सुरक्षित रह सकेगा । तीसरा जब दासी अपनी इच्छा राजा चण्ड के साथ आई है । यह बात पाठक पहले पढ आये हैं कि राजा उदाइ और चण्ड दोनों राजा, राजा चेटक की पुत्रियों के साथ लग्न किया । अतः वे आपस में सादु भी लगते थे । इत्यादि कारणों में विशेष साधर्मी भाई के कारण को लक्ष में रख बड़ा युद्ध कर दासी और मूर्ति को लाया था पर अपनी उदारता से राजा घण्ड को देकर क्षमापना करवाया । 'पण मोटो साधर्मीतो' इस कहवत को राजा उशइ ने ठीक चरितार्थ कर बतलाया । राजा चण्ड दासी और मूर्ति को लेकर उज्जैन गया और राजा उदाइ अपने नगर आया ।
राज उदाइ संसार से उदास रहता हुआ धर्म कार्य साधन की ओर विशेष लक्ष दिया करता था । एक बार राजा उदाइ श्रष्टम तप कर पौषध किया था, उसमें राजा की भावना ऐसी हुई कि यदि भगवान् महावीर यहाँ पधार जाय तो मैं दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करूं । भगवान महावीर ने अपने केवल ज्ञान से राजा उदाइ के भावों को जानकर एक रात्रि में पन्द्रह योजन का विहार कर सुबह वीतभयपट्टन के उद्यान पधार गये । राजा उदाइ को खबर मिली तो उसने पारणा नहीं किया और भगवान को वन्दन करने को आया । भगवान महावीर ऐसी देशना दी कि जिससे राजा की भावना कार्य रूप में परिणित होगई और दीक्षा लेने का अटल निश्चय कर लिया। जब राजा भगवान को वन्दन कर वापिस नगर में श्रा रहा था,
सावत्सरिक पर्व का क्षमापना
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