Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
जैनधर्म ही था वे कब चाहते कि हमारे राजा वामगार्मी हो पर राजा के सामने चलती भी किसकी थो एक बार विहार करते आचार्य रत्नप्रभ सूरि का पधारना उपकेशपुर में हुआ और लोगों ने राजा के लिये अर्ज भी की । इधर वाममार्गियों का भी उपकेशपुर में श्राना होगया । बस फिर तो था ही क्या उन्होंने राजाश्रम लेकर अपना प्रचार बढ़ाने का प्रयत्न करना प्रारंभ किया इस वाद विवाद ने इतना जोर पकड़ा कि जिसका निर्णय राजा की राजसभा में होना निर्धारित हुआ राजा ने भो दोनों पक्ष के अग्रेश्वर नेताओं को आमंत्रण बुलाया और और उन दोनों का आपसी शास्त्रार्थ करवाया जिसमें विजय माला जैनों के ही कण्ठ में शोभायमान हुई और रावजी अपना लघु पुत्र - ऋषभसेन के साथजैन धर्म को स्वीकार किया फिर तो था ही क्या राजा ने जैनधर्म का खूब प्रचार बढ़ाया ।
कर सभा
२३ - राव सिहो- श्राप राव रेखा के पुत्र थे आपभी बड़े ही धर्मात्मा राजा हुए आपने उपकेशपुर एक शान्तिनाथ का मन्दिर बनाकर सालमाम पूजा के लिये भेंट देते थे और आपको जिनदेव की पूजा का अटल नियम था ।
२४ - राव मृलीदेव ( २ ). श्राप सिंहसेन के पुत्र थे आपके सात पुत्रियां होने पर भी कोई पुत्र नई था | आपके सच्चाधिका देवी का पूर्ण इष्ट था पुत्र चिन्ता के कारण श्राप देवी के सामने प्राणों का बलि दान देने को तैयार हो गये अतः देवी अपने ज्ञान बल से जानकर वरदान दिया कि हे भक्त ! तेरे एक ई क्यों पर सात पुत्र होंगे पर कोई दीक्षा ले तो रुकावट न करना फिर तो था ही क्या राजा के क्रमशः सात पुत्र होगये जिसमें पांच पुत्रों ने जैन दीक्षा ले ली थी राजा मूलदेव ने पांच लक्ष द्रव्य व्यय कर अपने पांच पुत्रों को जैन दीक्षा दिलादी थी ।
२५ – राव भीमदेव ( २ ) आप राजा मूलदेव के सात पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र थे आप दीक्षा रंग में रंगे हुये थे | भोगावली कर्म शेष रह जाने के कारण आप दीक्षा तो नहीं ले सके पर वे राज करते हुए भी जैन धर्म के अभ्युदय के लिये ठीक प्रयत्न किया आपने श्राचार्य ककसूरि का उपकेशपु में चतुर्मास करवाकर एक विराट् श्री संघ सभा करवाई जिससे जैन धर्म की बहुत बड़ी उन्नत हुई । २६ - राव अरुणदेव- - आप राव भीमदेव के पुत्र थे आप बड़े ही शान्ति प्रिय थे ।
२७ - राव - खमाण - आप अरुणदेव के पुत्र थे आपकी वीरता की आपने कई युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दिया था दानेश्वरी तो आप आगे पिच्छे का कोई विचार नहीं करते थे ।
२८ - राव मालो - यह राव खुमाण के पुत्र थे श्राप जैन धर्म पालन एवं प्रचार करने में अपने जीवन का अधिक हिस्सा दिया था । वंशावलियों में श्राचार्य सिद्धसूरि के समय तक उपकेशपुर के राजाओं की वंशावली राव माला तक ही है जिसको हमने यहाँ दर्ज कर दी है हाँ वंशावलियों में इन राजाओं का विस्तार से वर्णन लिखा है प्रन्थ बढ़ जाने के भय से मैंने यह संक्षिप्त में नामावली ही लिखा है ।
चन्द्रावती के राजाओं की वंशावली --
१- राजा चन्द्रसेन - आप राजा जयसेन के पुत्र थे पाठक ! पूर्व प्रकरणों में पढ़ आये हैं कि आचार्य स्वयंप्रभसूरि ने श्रीमालनगर के राजा जयसेन को प्रतिवाद देकर जैन धर्मी बनाया राजा जयसेन के दो पुत्र
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बड़ी भारी धाक जमी हुई थी इतने थे कि दान देते समय
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चन्द्रावती नगरी का राजवंश
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