Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० पू० ५२०-५५८ ]
भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कि आप ठहर जाइये पहले मैं जाकर राजा से मिलू । साध्वी चल कर राजा दधिवाहन के पास आई और राजा से भी सब हाल कहा राना अपनी गणो को पहचान भी ली । बस । फिर तो था ही क्या दोनों राजा अर्थात् पिता पुत्र का मिलाप हुआ जिससे दोनों को बड़ा ही हर्ष हुआ दोनों ओर के सैनिकों एवं नागरिकों का भय दूर हुश्रा और हर्ष का पार नहीं रहा तत्पश्चात सब लोग चम्पा नगरी में गये। राजा ने अपने राज का उत्तराधिकारी करकंडु को बना दिया कारण दूसग पुत्र राजा के था नहीं खैर कुछ अर्सा ठहर कर करकंडु कांचनपुर आ गया।
समयान्तर कोसंबी नगरी का राजा संतानिक चंपा पर चढ़ आया दोनों गजाओं में घोर युद्ध हुआ दधिबाहन राजा मारा गया नगर को ध्वंस किया और धन माल खब लूटा । साथ में रानी धारणी और उसकी पुत्री वसुमती को भी पकडली रानी धारणी तो अपनी शील को रक्षा के लिए जबान निकाल कर प्राणों की आहुती दे दी और वसुमति को कोसुंबी नगरी में ले गाये और उसको बाजार में पशु की भाँती बेच दी जिसको एक धन्ना सेठ ने खरीद की और अपने घर पर लाकर पुत्री की तरह रखी। पर धन्ना सेठ के मू ला नाम की भार्या थी उसने कुंवारी कन्या वसुमति का रुप लावण्य देखकर विचार किया कि सेठजी इसको अपनी श्रद्धौगनी बना लेगा तो मेरा मानपान नहीं रहेगा इस गरज से एक दिन सेठ जी किसी कारण वसात बाहर ग्राम गये थे पिछे संठानी ने वसुमति का सिरमंडवा काछोटा पहना हाथों पावों में बेड़ियाँ डाल कर एक गुप्त घर में बंदकर आप अपने पीहर चली गई जिसको तीन दिन व्यतीत हो गए जब सेठजी प्राम से श्राए तो घर में सेठानी नहीं व वसुमति नहीं पाई इस हालत में इधर उधर देखा तो एक बंद मकान में वसुमति के रुदन का शब्द सुना बस सेठजी ने मकान का कपाट खोल वसुमति को बाहर निकाल कर हाल पूछा तो उसने कहा मैं तीन दिन की भूखी प्यासी हूँ मुझे कुछ खाने को दो फिर पूछना सेठजी ने उधर इधर देखा पर खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला सिर्फ तत्काल के किये उड़दों के बाकुल देखे पर परुषने को कोई बर• तन नही था सेठजी ने सूपड़ा में उड़दों के बाकुले डाल वसुमति को दिया कि बेटी । तूं इसे खा मैं तेरी बेड़ियाँ काटने के लिए लुहार को ले पाता हूँ । सेठजी लुहार को लाने के लिए गए पिछे व सुमति ने सोचा कि मैंने पूर्वभव में कुछ सुकृत नहीं किया अतः आज कोई महात्मा आ जाय तो मैं उसे दान देकर ही भोजन करूँ । इसलिए दरवाजे के एक पैर अन्दर एक पैर बाहर खड़ी रह कर महात्मा की प्रतीक्षा करने लगी इधर भ० महावीर ने ऐसा अभिग्रह किया था कि जिसको पाँच दिन कम छ मास व्यतीत हो गया सफल नहीं हुआ वह अभिप्रद ऐसा था कि जिसका मैं आहार लेऊ कि -१ सुबह की टाइम हो २ राजकन्या हो ३ तीन दिन की भूखी प्यासी हो ४ सिर मुंडा हो ५ कालोटा पहना हुआ हो ६ हाथों में हथकड़ी हो ७ पैरों में बेड़ियाँ हो ८ छाज का कोना में ९ उड़दों के बाकुल हो १० एक पैर दरवाजे के अंदर हो ११ दूसरा पैर दरवाजे के बाहर हो १२ एक आँख में हर्ष हो १३ दूसरी आँख में रूदन के आँसू पड़ते हो ऐसी हालत में मैं आहार ले सकता हूँ। वसुमति के नसीव ने न जाने भ० महावीर को खेंच लाए भ० महावीर के उपरोक्त अभिग्रह के १२ बोल तो मिल गए पर एक आँख में आँसू नहीं पाये कारण वह बहुत दुःखो होने पर भ० महावीर के आने की खुशी थी जब अभिग्रह पूरा नहीं देखा तो भ० महावीर वापिस लौट गर जिससे वसुमति को इतना दुःख हुआ कि आँखों में आँसू पड़ने लगे फिर भी वसुमति रूदन करती बोली अरे प्रभु आये हुए खाली क्यों जाते हो एक बार मेरी ओर देखो तो सही भगवान फिर के वसुमति की ओर देखा तो
__भगवान महावीर और चन्दनवाला
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