Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ४२४-४४० वर्ष]
भिगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
६. अश्वरत्न--चक्रवर्ति के खास सवारी करने के काम में आवे । ७. स्त्री रत्न- चक्रवर्ति के भोग विलास के काम में आवे । ये सात पंचेन्द्रिय रत्न अब सात एकन्द्रिय रत्न कहते है:१. चक्ररत्न- षट् खण्ड विजय के समय मार्ग दर्शक । २. छत्ररत्न-चक्रवर्ति पर छत्र तथा वरसाद समय सैना का रक्षण करे । ३. चामररत्न -नदी समुद्र से पार होने में काम आवे । ४. दण्डरत्न -- तमस्त्र गुफा के द्वारा खोलने में काम आवे । ५. खण्डगरत्न - दुश्मनों का शिर काटने में काम आवे । ६. मणिरत्न--अंधेरा में उद्योत करने के काम में आवे । ७. काकणिरत्न-तामस गुफा में ४९ मांडला करने के काम में श्रावे । इस प्रकार चौदह रत्न होते है तथा चक्रवर्ती के नौ निधान होते है उनके नाम और काम । १. नैसर्पः निधान--नये नये प्राम नगर पट्टनादि स्थान बनाने की विधि । २. पाण्डुक निधान-चौवीस जाति का धान उत्पन्न करना बीज बोनादि की विधि । ३. पिंगल निधान-गीनत विषय एवं सर्व प्रकार के व्यापार करने का विधान । ४. सर्वरत्न निधान- सर्व जाति के रत्नों की परीक्षा पहचान विषय की विधि । ५. महापन निधान-सर्व जाति के वस्त्र बुनना रंगना धोना वगैरह की विधि । ६. काल निधान-भूत भविष्य वर्तमान काल का शुभाशुभ फल वगैरह की विधि तथा शिल्पादि
हुन्नर उद्योग वगैरह स्त्री एवं पुरुषों की तमाम कलाएँ। ७. महाकाल निधान-लोहा तांबा सोना रूपा मणि मुक्ताफलादि की उत्पति और भूषणादि की विधि । ८. मणवक निधान--शूरवीर योद्धा बनाना उनके सर्व प्रकार के शस्त्र बनाना चलाना की विधि !
९. शंख निधान-सर्व प्रकार के नाटक गाना बजाना तथा धर्मार्थ काम मोक्ष एवं चारों पुरुषार्थ वगैरह की विधि । अतः इन नौ निधान में सब संसार के कार्यक्रम की विधि वतलाई है। और संसार में जितने न्याय नीति व्यापार कृषीकम खाने पीने भोग विलास सन्तानोत्पति आदिके साधन वगैरह जितने कार्य है उन सब का विधान इन नौ निधान में आ जाता है ।
चक्रवर्ति के चौदहरन और नौनिधान तो अपने सुन लिया है पर इनके अलावा भी बहुतसी ऋद्धि हैं। १-चौरासी लक्ष हस्ति इतने ही अश्व और रथ होते है। २~ छनुवै करोड़ पायदल हथियार बद्ध पैदल सिपाई होते है। ३-तेतीस करोड़ ऊँट और तीन करोड़ पोटिया भार वहने वाले बलद । ४-बत्तीस हजार मुगटबद्ध राजा चक्रवर्ति की सेवा में रहते है।
५-चौसट हजार अन्तेवर ( रानियों ) इनके साथ दो दो वरगणाए थी उन सब की गनती की जाय तो एक लक्ष और बराणु हजार १९२८०० और इतने ही रूप चक्रवर्ति वैक्रय बनाया करते है कि कोई रानी का महल चक्रवलि शून्य नहीं रहे।
६-बत्तीस हजार नाटक करने वाली मण्डलियां थी। ८३४
[चक्रवर्ती की ऋद्धि का वर्णन
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