Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ४४०-४८० वर्ष]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
विनति की पर उपकेशपुर का संघ घर आई गंगा को कब जाने देने वाला था अतः कुंकुन्दाचार्य को भिन्नमाल चतुर्मास की आज्ञा दी और आपने उपकेश पुर में चतुर्मास करने का निश्चय किया। बात कुछ नही थी पर भविनव्यता बलवंती होती है भिन्नमाल संघ के दिल में कुछ द्वितीय भाव पैदा होगये । अतः उन्होने सोचा कि कुंकुंदाचार्य कों भिन्नमाल संघ ने आचार्य बनाये थे वह बात कक्कसूरिजी के दिल में अभी नहीं निकली है कि अपने लिये कुंकंदाचार्य को आज्ञा मिली है। अतः वे इस विग्रह में ही चलकर अपने नगर को श्रये । बाद कुंकुंदाचाय भी विहार करने की आज्ञा मांगी तो ककसूरि ने कहा कि मेरा विहार पूर्वकी और करने का है अतः पिछे साधुओं की सारसंभार आपके जुम्मा करदी जाती है कारण मेरी दक्षिण की यात्रा के समय भी आपने पीछे की व्यवस्थ अच्छी रखी थी। कुंकुंदाचार्य ने कहाँ पूज्यवर । मैं इतना तो योग्य नहीं हूँ पर श्रापश्री का हूँकम शिरोधार्य कर मेरे से बनेगी मैं सेवा अवश्य करूँगा इस प्रकार वार्तालाप हुआ बाद सुरिजी की आज्ञा लेकर ककुंदाचार्य ने भिन्नमाल की और विहार कर दिया एवं वहाँ जाकर चतुर्मास भी करदिया । आचार्य कक्कसूरि का चतुर्मास उपकेशपुर में होंगया जिससे धर्म की खूब जागृति एवं प्रभावनाहुई । बाद चतुर्मास के अपने पांचसौ शिष्यों के साथ पूर्व की यात्रार्थ बिहार कर दिया। भिन्नमाल का संघ कुंकुंदाचार्य को श्राचार्य कक्कसूरी के विरूद में कई उल्ट पुल्ट बातें कही पर कंकुंदाचार्य ने उनकी बातों पर खयाल नहीं किया इतनाही क्यों पर उनकों यहाँ तक समझाया कि इस प्रकार मतभेद करने से भविष्य में हितनहीं पर अहित होगा। मैंने आचार्य पद्वी लेकर बड़ी भारी भुल की थी पर गच्छनायक आचार्य कक्कसूरि ने अपनी गंभीरता से उनको सुधारली अतः अब वह भूल यही खत्म करदेना चाहिये नकि इनको आगेबढ़ाई जाय । और यही बात कुंकुंदाचार्य ने कक्कसूरि को कही थी कि मैं मेरे पट्टपर कोइ भी आचार्य नहीं बनाऊंगा कि यह मतभेद यहीं समाप्त होजाय । आखिर कुंकुंदाचार्य विद्वान था कहा है किदुश्मन भी हो पर विद्वान हो । इत्यादि पर कुकुदाचार्य के कहने पर भिन्नमाल संघ को संतोष नही हुआ फिर भी उन्होंने अपना प्रयत्न को नहीं छोड़ा खैर चतुर्मास के बाद कुंकुंदाचार्य भिन्नमाल से विहार कर दिया और आस पास के प्रदेश में भ्रमन करने लगे । आपका प्रभाव जनता पर बहुत अच्छा पड़ा था। आपने कई भावुकों को दीक्षा भी दीथी। आपके पास कई २००० साधु साध्वि होगये थे । श्राप की अवस्था वृद्ध होगयी थी आप कई चौमास करने के बाद पुनः भिन्नमाल पधारे तो भिन्नमाल का श्रीसंघ फिर सूरिजी से प्रार्थना की कि प्रभो। अब आपकी वृद्धावस्था है तो हमारे लिये आपके हाथों से किसी योग्य मुनिको प्राचार्य बना दिजिये । कुंकुंदाचार्य ने कहाँ कि मैं आपसे पहले ही कहचूका था कि मैं आचार्य कक्कसूरिजी को बचन देचूका हूँ कि मैं किसी को पट्टधर नहीं बनाऊंगा। अतः आप इस आग्रहको छोड़ दीजिये और एकही गच्छ नायक की आज्ञा का आराधन कीजिये । श्रीसंघ ने कहाँ पूज्यवर ! आपश्री के आग्रह से यहां का श्रीसंघ गच्छ की बदनामी उठाकर आपको प्राचार्य बनाया और आपही इस गादी को खाली रखनी चाहते हो यह तो ऐक विश्वासघात जैसी बात है खैर । आप नहीं बनावेंगे तो भी यहां का श्रीसंघ अपनी बातको कभी नहीं जाने देगा । किसी दूसरे को लाकर गादीधर तो अवश्य बनावेंगे । भीसंघ का कथन सुन सूरिजी को बहुत दुख हुआ पर वे कर क्या सकते थे आखिर भवितव्यता पर संतोष कर अपनी अन्तिम सलेखना में लग गये और अन्त समय २१ दिन का अनसन कर स्वर्ग पधार गये
भिन्नमाल श्रीसंघने कुकुदाचार्य के कई मुनियों को अपने विचारों के शामिल वना कर उनके अन्दर
[खटप नगर के राजसी के बनाया मन्दिर
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