Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष
[ भगवान् पाश्र्वनाथ की परम्परा का इतिहास
भर में बड़ी भारी हलचल मच गई हजारों नहीं बल्कि लाखों मनुष्य सेठजी को देखने के लिये उपस्थित हो गये । कारण एक कोट्याधीश सेठ अपने विशाल परिवार के साथ एक धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म को स्वीकार करता है यह कोई साधारण बात नहीं थी ब्राह्मणों के तो पैरों तले से भूमि खिसक रही थी उनके आसन चलायमान होगये उन्होंने दौड़ धूप करने में कुछ भी उठा नहीं रखा पर कहा कि सौ वर्ष का गुमास्ता और बारह वर्ष का घर धणी । आखिर सूरिजी महाराज ने उस विशाल समुदाय में अपने मंत्रों द्वारा उन विशाल कुटुम्ब के साथ सेठ सालग को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा देकर जैन बना लिये इस प्रकार सेठजी के धर्म परिवर्तन को देख अन्य भी बहुत से लोगों ने जैनधर्म स्वीकार कर लिया उन सबकी संख्या पट्टावलीकारों ने ५००० नरनारी की बतलाई है वहां के उपकेशवंशी संघ ने सेठ सालगादि सबको अपने साथ मिला लिया और उनके साथ उसी दिन से रोटी बेटी व्यवहार शुरू कर दिया।
__ जिस दिन से सेठ सालगादि को जैनधर्म की दिक्षादी उस दिन से ही ब्राह्मणों का जैनों के प्रति अधिक द्वेष भभक उठा था पर इससे होना करना क्या था जैनों की शान्ति ने और भी ब्राह्मण धर्म पर प्रभाव डाला था कि और लोग और भी जैनधर्म स्वीकार करते गये इस कार्य में विशेष प्रेरणा सेठ सालग की ही थी। सेठ सालग था भी बड़ा भारी व्यापारी एवं कोटीधज इनका व्यापार भारत और भारत के बाहर पाश्चात्य सब देशों के साथ था । एक बड़े आदमी का इस प्रकार प्रभाव पड़ता हो तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यों तो आचार्य सिद्धसूरि बड़े ही प्रभावशाली थे ही पर इस घटना से आपका प्रभाव और भी बढ़ गया चन्द्रावती और उसके आसपास के प्रदेश में जैनधर्म का बड़ा भारी प्रचार हुआ।
एक समय परम भक्त सालग ने सूरिजी की सेवा में अर्ज की कि गुरुदेव! मैंने यज्ञ के लिये एक करोड़ द्रव्य व्यय करने का संकल्प किया था पर आपकी कृपा से मैं उस अनर्थ से तो बच गया पर अब वह संकल्प किया हुआ द्रव्य किस कार्य में लगाना चाहिये । कारण कि संकल्प किया हुआ द्रव्य मैं मेरे काम में तो लगा ही नहीं सकता हूँ अतः आप आज्ञा फरमा उसी कार्य में लगाकर संकल्प के विकल्प से मुक्त हो सकू।
सूरिजी ने कहा सालग तू बड़ा ही भाग्यशाली है तेरे शुभ कर्मों का उदय है संकल्प किये हुये द्रव्य के लिये या तो त्रिलोक पूज्य तीर्थङ्करदेव का मन्दिर बनाने में या तीर्थयात्रार्थ संघ निकालने में या श्रागमवाचना आगम लिखाने एवं विद्या प्रचार करने में लगाना ही कल्याण का कारण हो सकता है जैनधर्म का प्रचार बढ़ाना स्वधर्मी भाइयों को सहायता पहुँचाना भी शासन के कार्य का एक अंग है पर संकल्प किया हुआ द्रव्य पुनः गृहस्थ के काम नहीं आता है अब जिस कार्य में तुम्हारी रुची हो उसमें ही द्रव्य व्यय करके लाभ उठाना चाहिये इत्यादि
____सालग ने सोचा कि सूरिजी कितने निर्लोभी, कितने परोपकारी है कि करोड़ रुपयों से एक पैसा भी अपने काम या अपने शिष्यों के लिये नहीं बतलाया क्या पुस्तक पन्ने या वस्त्र पात्र की इनको जरूरत नहीं होगी पर परोपकारी महात्माओं का यह खास तौर से लक्षण हुआ करते है कि “परोपकारायसतां विभूतयः"। यदि सूरिजी महाराज यहां चतुर्मास करदें तो मैं तीनों कार्य कर सकता हूँ अतः शाह सालागादि सकल श्री संघ ने साग्रह सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्येश्वर ! अापके विराजने से शासन का अच्छा उद्योत हुआ है पर कृपाकर यह चतुर्मास यहां करावे कि शाह सालगादि कई लोग लाभ उठा सकें। सूरिजी
[ सेठ सालग को जैनधर्म की दीक्षा Jain Education Integegnal
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