Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ५२० – ५५८ वर्षे ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
आचार्य सिद्धसूरि अपने ५०० शिष्यों के साथ जिसमें नूतन मुनिराज शेखर हंस ( सालग ) भी शामिल थे; पूर्व प्रान्त में रहकर वहाँ की जनता को धर्मोपदेश देने लगे तीर्थ श्री सम्मेतशिखरजी के आसपास के प्रदेश में बहुत जैनों की बसती थी आपके पूर्वजो ने कई बार वहाँ घूम घूम कर उन लोगों को धर्म में स्थिर किये थे उन लोगो ने कई जैन मंदिर बनाये जिसकी प्रतिष्ठाएं आचार्य सिद्ध सूरिने करवाई कइबार संघ निकाल कर बीस तीर्थंकरो के निर्वाण भूमि की यात्रा की । इत्यादि
जिस समय सूरि जी का बिहार पूर्वप्रान्त में हो रहा था उस समय बोद्धोंका प्रचार भी हो रहा था पर सूरिजी के प्रचार कार्य के सामने बौद्धों की कुछ भी चल नही सकती थी आप श्री ने तीन चातुर्मास पूर्व में करके जैनधर्म के प्रभाव को खूब बढ़ाया था बाद कलिंग की कुमार कुमारी तीर्थों की यात्रा करते हुए पुनः भगवान् पार्श्वनाथ के कल्याणक भूमि काशी पधार कर वहाँ तथा उनके आस पास के तीथों की यात्रा की और वह चातुर्मास बनारस नगरी में किया आपके विराजने से जैनधर्म की अच्छी उन्नति एवं प्रभावना हुई इनता ही क्यों पर वहां दो ब्राह्मण और ५ श्रावकों को दीक्षा भी दी जिसका महोत्सव श्रेष्टिगौत्रीय शाह सलखाने सवालक्ष रुपये व्यय करके इस प्रकार किया कि जिसका प्रभाव वहाँ की जनता पर काफी हुआ था ।
वहाँ से सूरिजी महाराज बिहार कर पंजाब की और पधारे आपके मुनिगण पहले से ही वहाँ बिहार करते थे जब उन्होंने सुनाकि आचार्य सिद्धसूरिजी महाराज पंजाब में पधार रहे है तो उनका दीलहर्ष के मारा उमड़ उठा बस सूरिजी महाराज जहाँ पधारते वह चतुर्विध श्रीसंघका का एक खासा मेला हो लगजाता था क्रमशः आप लोहाकोट पधारे वहाँ के श्री संघ के श्राग्रह से सूरिजी ने वहाँ चतुर्मास भी कर दिया बाद चतुर्मास के वहाँ एक संघ सभा की गई जिसमें उसके बहुत से साधु साध्वियों तथा श्राद्ध वर्ग उपस्थित हुए। सूरिजी ने अपनी ओजस्वी वाण से जैनधर्म की परिस्थिति और प्रचार के विषय में बडा ही जोशीला व्याख्यान दिया कि जिसने उपस्थित जनता के हृदय में धर्म प्रचार की एक नयी बिजली पैदा हो गई यों तो पंजाब पहिले से ही वीर प्रसूत भूमि थी फिर सूरिजी जैसे धर्म प्रचारक के वीरता का उपदेश तत्र तो कहना ही क्या था ? वीरों की सन्तान वीर हुआ ही करती हैं मुनियों ने सूरिजी के उपदेश को शिरोधार्य कर कर्तव्यमार्ग में क टेबद्ध होगये सूरिजीने वहाँ से बिहार करने वाले योग्य मुनियों को पदवियां प्रदान कर उनके उत्साह મેં और भी वृद्धि कर दी तत्पश्चात संघ बिसर्जन हुआ सूरिजी महाराज दो वर्ष पंजाब में घूमकर सिव की ओर पधारे सिन्ध में आपके बहुत से मुनि विहार कर रहे थे एक चतुर्मास डामरेल नगर में किया वहाँ भी धर्म की अच्छी प्रभावना हुई । ७ नर नारियों को दीक्षा दी ओर कई अजैनों को जैन बनाये बाद आपके चरण कमल nor भूमि में हुए वहाँ भद्रेश्वरतीर्थ की यात्रा कर वहाँ की जनता को धर्मोपदेश दिया वहाँ भी आपके कई मुनि विहार करते थे उनकी सार संभाल की बाद सरौष्ट्र प्रदेश में पदार्पण कर तीर्थाधिराज श्री शत्रुंजय की यात्रा की तदानन्तर सौराष्ट्र में भ्रमन करते हुए भरोंच नगर में पधार कर वह चतुर्मास वहीं किया जिससे वहाँ कि जनता में धर्म की खूब ही जागृति हुई बाद चतुर्मास के अर्बुदाचल की स्पर्शना की इस बात की खबर चन्द्रावती, पद्मावती, शिवपुरी में मिलते ही हजारों लोग देवगुरू के दर्शनार्थ अर्बुदाचल पर आये और अपने अपने नगर की ओर पधारने की बिनती की सूरिजी वहाँ से विहार कर संघ के साथ एक मकान जलकुण्ड पर किया कि जहाँ आचार्य कक्कसूरिजी द्वारा संघ के प्राणों की रक्षा हुइ थी वहाँ पर एक महाबीर देव का मंदिर बनाया गया था आचार्य श्री जब चन्द्रावती नगरी की और पधार रहे थे तो वहाँ के श्रीसंघ
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[ आचार्य सिद्धसूरि का पूर्व में विहार
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