Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि० सं० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
सूरिजी ने उस आम सभा के अन्दर रावहुल्ला और उनके कई साथियों को पूर्व सेवित मिथ्यात्व की बालोचना करवा कर देवगुरुधर्म का स्वरूप बतला कर वासक्षेप के विधि विधान से जैन धर्म की दीक्षा दे दी। इससे जैनधर्म का बड़ा भारी उद्योत हुआ और जो पाखण्डियों का प्रचार बढ़ता जा रहा था वह रुक गया। इतना ही क्यों पर रावहुल्ला ने तो अपने राज में कोई जीव की हिंसा न करे ऐसा अमर पडहा भी पिटवा दिया । अहा-हा कए सेताधीश को प्रतिबोध करने से कितने जीवों का कल्याण हो सकता है जिसके लिये रावहुल्ला का उदाहरण हमारे सामने विद्यमान है।
रावहुल्ला सूरिजी का परम भक्त बन गया एक समय श्रीसंघ के साथ रावहुल्ला ने सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! अब आप की वृद्धावस्था है कृपा कर यह चतुर्मास यही करावें और बाद भी आप यही स्थिरवास करावें कि आप के विराजने से हम लोगों को बड़ा भारी लाभ होगा ? इस पर सूरिजी ने फरमाया कि आपकी इतनी आग्रह है तो इस चर्तुमास की स्वीकृति मैं दे सकता हूँ आगे के लिये जैसी क्षेत्र स्पर्शना । स्त्रैर अभी तो श्रीसंघ ने इतने से ही संतोष कर लिया ।
सूरिजी का चतुर्मास उपकेशपुर में मुकर्रर होने से यों तो सकल श्रीसंघ को बड़ा ही हर्ष था पर राव. हुल्ला के तो हर्ष एवं उत्साह का पार तक नहीं था और वे हर प्रकार से जैनधर्म की उन्नति एवं प्रचार के लिये कोशिस कर रहे थे। पर कुदरत कुछ और ही घटना घड़ रही थी जिसकी सूचना देने के लिये देवी सञ्चायिका ने एक समय सूरिजी की सेवा में आकर परोक्षपने वन्दना के साथ अर्ज की कि प्रभो! श्राप शासन के बड़े ही प्रभाविक श्राचार्य है। आपने अपने परोपकारी जीवन में बहुत उपकार किया है विशेष इस उपकेशपुर पर सो श्रापका महान उपकार हुआ है परन्तु कहते हुए दुःख होता है कि अब आपका
आयुष्य केवल एक मास और १३ दिन का है अतः आप अपने पट्टधर बना दीजिये। देवी के वचन सुन कर सूरिजी ने कहा देवीजी आप ने मुझे सावचेत कर बड़ा ही उपकार किया है मेरे शिष्यों में उपाध्याय विनय सुन्दर इस पद के योग्य है और उसको ही मैं मेरे पद पर सूरि बनाना चाहता हूँ इसमें आपकी क्या राय है ? देवी ने कहा पूज्यवर ! आपने जो निश्चय किया वह बहुत ही अच्छा है उ. विनय सुन्दर सर्वगुण सम्पन्न एवं इस पद की जुम्मेवारी संभालने के लिये समर्थ भी है कृपा कर आप तो इनको ही सूरि बना दीजिये । बस दूसरे दिन सूरिजी ने श्रीसंघ को सूचित कर दिया कि मेरी इच्छा विनय सुंदर को सूरि बनाने की है । श्रीसंघ इतना तो जानता ही था कि इस गच्छ में आचार्य बनाया जाता है वह प्रायः देवी की सम्मति से ही बनाया जाता है पर देवी ने इस चतुर्मास के अन्दर यह सम्मति क्यों दी होगी अतः संघ ने प्रार्थना की कि गुरुदेव ! उ० विनयसुन्दर को आचार्य पद दिया जाय इसमें तो श्रीसंघ को बहुत खुशी है पर इस प्रकार चतुर्मास के अन्दर इतनी जल्दी से कार्य होना कुछ विचारणीय है अतः चतुर्मास के पश्चात् किया जाय तो हम लोगों को विशेष लाभ मिलेगा ? सूरिजी ने फरमा दिया कि मेरा अायुष्य नजदीक है अतः यह कार्य मेरे हाथों से शीघ्र ही हो जाना चाहिये । श्रीसंघ और रावहुल्ला बहुत उदास हो गये पर इसका उपाय भी तो क्या था श्रीसंघ ने जिन मन्दिरों में अष्टान्हिका महोत्सवादि जो इस कार्य में किया जाय यह सब विधान किया और श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के शुभ दिन में उ, विनयसुन्दर को आचार्य पद तथा अन्यमुनियों को उपाध्याय गणि वाचक पण्डित वगैरह पदवियें प्रदान की। उ० विनयसुन्दर का नाम कक्क
हरिजी का चतु० उपकेशपुर ]
९१३ www.jainelibrary.org
Jain Education Inte? Anal
For Private & Personal Use Only