Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य सिद्धमूरि का जीवन ]
[ओसवाल संवत् ९२०-९५८
(२२) नागहस्ति (२३) रेवति नक्षत्र (२४) ब्रह्मद्वीप सिंह (२५) स्कंदिलाचार्य (२६) हिमवंत (२७) नागार्जुन (२८) गोविंद (२९) भूतदिन्न (३०) लौहित्य (३ ) दुष्य गणि (३२) देवद्धिगणि ।
___ इन दोनों स्थपिरावलिबों में गुरु शिष्य की नामावली नहीं पर युग प्रधान पट्टक्रम है। यही कारण है कि, उपरोक्त स्थविरावलियों में आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ति नामक दोनों परम्परा के जो युग प्रधान स्थाविर हुए हैं। उन्हीं का समावेश दृष्टिगोचर होता है । जैसे नंदी स्थाविरावली में आर्य नागहस्ति का नाम आया है पर वे विद्याधर शाखा के प्राचार्य थे-यथाहिआसीत्कालिक सूरिः श्री श्रुताम्भोनिधि पारगः । गच्छे विद्याधराख्थे आर्य नागहस्ति सूरयः ॥
प्रभावक चरित्र पादलिप्त प्रबंध ४८ विद्याधर शाखा आर्य सुहस्ति के परम्परा की है जो आर्य विद्याधर गोपाल से प्रचलित हुई थी। दूसरा आर्य आनंदिल का नाम भी उपरोक्त नंदीसूत्र स्थविरावली में आता है वे भी सुहस्ति की परम्परा के आचार्य थे"आर्य रक्षित वंशीयः स श्रीमानार्यनंदिलः । संसारारण्य निर्वाह सार्थवाहः पुनातु वः ॥
'प्रभावक चरित्र आगे नं० २५ में ब्रह्मद्वीपी सिंह का नाम आया है । ब्रह्माद्वीपी शाखा आर्य सुहस्ति की परम्परा के श्री सिंहगिरि के शिष्य समिति से निकली थी। अतः श्राप भी सुहस्ति की परम्परा के आचार्य (स्थविर) थे ! इसी प्रकार आर्य स्कंदिल और भूतदिन्न भी आर्य सुहस्ति की परम्परा के प्राचार्य थे।
___ उपरोक्त परम्प ा से नंदी सूत्र की स्थविगवली न तो आर्य महागिरि के परम्परा की स्थविरावली है और न आर्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण आर्य महागिरि की परम्परा के स्थबिर ही थे। नंदीसूत्र की स्थविरावली तो युगप्रधान आचार्यों की स्थविरावली है ! स्वयं क्षमाश्रमणजी ने नंदी सूत्र में अपनी गुरु परम्परा का नहीं किन्तु अनुयोगधर युगप्रधान परम्परा का ही वर्णन किया है । देखिये स्थविरावली के अंतिम शब्दजे अन्न भगवन्ते कालिप सुअ अणुयोगधरा धीरे। ते पणिमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छं।।
इस गाथा से पाया जाता है कि आपने अनुयोगधारक युगप्रधानों को नमस्कार करने के लिये ही स्थविरावली लिखी है।
___ श्राय देवद्धि ,णि क्षमाश्रमण आर्य सुहस्ति की परम्परा के आर्यवज्र के तीसरे शिष्य आर्यरथ से निकली हुई जयंती शाखा के आचार्य थे। इसका उल्लेख स्वयं क्षमाश्रमणजी ने कल्पसूत्र की स्थविरावली में किया है । यद्यपि उस स्थविरावली में क्षमाश्रमणजी का नाम निर्देश नहीं है पर उस गद्य के अन्त की एक गाया किसी क्षमाश्रमणजी के शिष्य या अनुयायी की लिखी हुई पाई जाती है । जैसे"सुतत्थरयणभरिए, खमदमभद्दवगुणेहिं संपन्ने । देवड़िढ खमासमणे कासवगुत्त पणिवयामि ॥
इस (कल्पसूत्र) स्थविगवली से क्षमाश्रमभजी भगवान् महाबीर के २७ वें पट्टधर नहीं किन्तु ३४ वें साबित होते हैं । जैसे
(१) आर्य सुधर्मा (२) जम्बू (३) प्रभव (४) शय्यंभव (५) यशोभद्र (६) सभूति विजय-भद्रबाहु (७) स्थुलभद्र (८) सुहस्ति (९) आर्य सुस्थित सुप्रति बुद्ध (१०) इन्द्रदिन्न (११) दिन्न (१२) सिंहगिरि (१३) भ० महावीर की परम्परा ]
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