Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
आचार्य सिद्धसरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० ९२०-९५८
(अनुसंधान इसी प्रन्थ के पृष्ट ७३५ (ख ) से आया है)
नं० । राज का नाम
समय कहां से कहां तक
राजकाल
६०
विक्रमादित्य धर्मादित्य
इ० सं० पूर्व-५७ से इ. सं०३
३ ,, ४३ ४३ , ५४ ५४ , ६८ ॥
४० ११
वंशावली का समय त्रि० ले० शाह के पुस्तकानु सार दिया है।
भाइल
नाइल
नाइड
श्रावती प्रदेश पर विक्रमवंशी राजाओं के पश्चात चष्टानवंशी राजाओं का समय आता है चष्टानवंशी राजात्रों को क्षत्रप महाक्षत्रप की उपाधि थी और तक्षशिला मथुरा और उज्जैन में इनका राज रहा था यद्यपि जितना चाहिये उतना इतिहास इन वंश का नहीं मिलता है तथापि इन राजाओं का कतिपय शिलालेख और कई सिक्के जरूर मिलते हैं जिससे पाया जाता है कि इस जाति के लोग बाहर से भारत में आये थे और अपने मुजवल से भारत में राज किया था इनके सिक्काओं पर बहुत से ऐसे चिन्ह पाया गया कि जिससे बे जैनधर्म पालन करना साबित हो सकते हैं डाक्टर सर केनिंगहोम ने भी उन चिन्हों को बौद्धों का होने में शंका अवश्य की है तथापि कई विद्वानों की यह भी राथ है कि चष्टानवंशी राजा बौद्ध धर्मी थे इसका कारण कई पाश्चात्य विद्वान बौद्ध धर्म और जैनधर्म को एक ही समझते तथा कई लोग जैनों को एक बौद्धों की शाखा ही सममली थी यद्यपि बहुत विद्वानों का यह भ्रम दूर हो गया है और वे निःशंक मानने लग गये हैं कि जैनधर्म एक स्वतन्त्र एवं बहुत प्राचीनधर्म है तथापि अभी ऐसे लोगों का भी प्रभाव नहीं है कि उन पुराणी लकीर के फकीर बन बैठे है इस विषय में सिक्का प्रकरण में खुलासा किया जायगा यहाँ तो सिर्फ इतना ही लिखा जाता है कि मथुरा का स्तूप को विद्वानों से जैनधर्म का स्तूप होने की उद्घोषना की है उस स्तूप की प्रतिष्ठा महाक्षत्रप राजा राजुबुल की पट्टराणी ने करवाई थी और उसमें महाक्षत्रप भूमक नहपाण वगैरह सब शामिल होकर प्रतिष्ठा महोत्सव किया था यदि क्षत्रिप महाक्षत्रिप बौद्ध हं ते तो इतना विशाल जैन स्तूप बना कर वे प्रतिष्ठा कब करवाते ? दूसरा एनके सिक्कों पर भी जो चिन्ह है वे सब जैनधर्म से ही सम्बन्ध रखते हैं न कि बौद्ध धर्म के साथ । अतः यहां पर उन चष्टान वंशी क्षत्रिप महाक्षत्रिप राजाओं की वंशावली देदी जाती है । आवंती देश के नरेश
९६१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org