Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि०सं० ५२०-५५८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
'तथा भित्ति-ब्राह्मी आदिदेवस्य भगवतो दुहिता ब्राह्मी वा संस्कृतादिभेदा वाणी, तामाश्रित्य तेनेवया दर्शिता अक्षर लेखन प्रक्रिया सा ब्राह्मी लिपिः ।' ___ उक्त लेख से सिद्ध होताहै कि जैन शास्त्र ब्राह्मी लिपि में ही लिखे गये थे।
जैन शास्त्र किस पर लिखे गये ? इसके लिये भोजपत्र, ताड़पत्र, कागज, कपड़ा, काष्ट फलक, पत्थर आदि पर लिखे ज.ने के प्रमाण मिलते हैं । सथाहि:
भोजपत्र:-इसका उपयोग अधिकतर यन्त्र मन्त्रादि में ही हुआ परन्तु शास्त्र लिखा हुआ कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता है । हां, हेमवन्त पट्टावली में उल्लेख मिलता है कि कलिंगाधिपति महाराजा खारवेल ने भोजपत्र पर शास्त्र लिखवाये थे।
ताड़पत्रः -इसके दो प्रकार होते हैं ( १ ) खरताड़ ( २ ) श्री ताड़ । खरताड़ पुस्तकादि लेखन कार्य में नहीं पाता है क्योंकि यह बरड़ होने से जल्दी टूट जाता है । दूसरा श्रीताड़ नरम और टिकाऊ होता है इसको संकुचित करने में ( मरोड़ने में ) भी टूटता नहीं है अतः यह ही पुस्तक लिखने में काम में आता है * ताड़पत्र पर लिखना कब से प्रारम्भ हुआ ? इसके लिये निश्चयात्मक नहीं कहा जा सकता है और न कोई प्राचीन लिखी हुई ही प्रति ही हस्तगत होती है। परन्तु जब पुस्तक लिखना विक्रम की १-२ शताब्दी से प्रारम्भ होता है तो वह ताड़ पत्र पर ही लिखा गया होगा। भारतीय प्राचीन लिपिमाला के कर्ता श्रीमान् श्रोमाजी लिखते हैं कि-'ताड़पत्र पर लिखी हुई एक त्रुटक नाटक की प्रति मिली है वह ईस्वी सन् दूसरी शताब्दी के पास पास की है।"
भारत की प्राचीन लिपि माला में श्रीमान् ओझाजी लिखते हैं कि भोजपत्र पर लिखा हुश्रा 'धम्मपद व संयुक्ता गम' नामक बोध ग्रंथ मिले हैं वे क्रमशः इ० सं० को दूसरी तीसरी और तीसरी चोथी शताब्दी के है
ताड़ पत्र एक प्रकार का माड़ के पत्ते होते हैं। वे लम्बाई में खूब लम्बे होते हैं पर चोड़ाई में बहुत कम होते हैं । वर्तमान जैन ज्ञान भंडारों में कई ताड़ पत्र पर लिखी हुई जातियां हैं उनमें कई कई तो ३७ इंच लम्बी और ५ इंच चौड़ी है पर ऐसी बहुत कम संख्या में मिलती हैं। छोटी से छोटी चार पांच इन्च लम्बी और तीन इन्च चौड़ी पुरतक भी मिलती है ।
ताड़पत्र पर बहुत गहरी संख्या में पुस्तकें लिखी जाती थी चीनी यात्री फाहियान इ० सं० चौथी सद्दी में भारत की यात्रा के लिये आया था । वह १५२० प्रतियाँ ताड़पत्र पर लिखी हुई भारत से चीन जाते समय ले गया तथा । इ. सं० की सातवी सही में चीनी यात्री रायसेन भी १५०. प्रतियें ताड़पत्र की भारत से लेगया इनके अलावा जर्मनी एवं यूरोप के विद्या प्रेमी हजारों ताड़पत्र पर एवं कागजों पर लिखी हुई प्रतियां ले गये थे और वह प्रतियां अद्यावधि उन देशों में विद्यमान हैं।
ताड़ पत्र लिखने का समय विक्रम की बाहरवीं शताब्दी तक तो अच्छी तरह रहा किन्तु बाद में कागजों की बहुलता से ताड़पत्र पर लिखना कम होगया। फिर भी थोड़ा बहुत लिखना पन्द्रहवी शताब्दी तक
६ वइरिसं इमं तालिमादिपत्त लिहितं ते चेध तालिमादिपत्ता पोत्थगता तेसु लिहितं वन्थे वा लिहितं । अ० चू० (ख) इह पत्रकाणी तलताल्यादि सम्बन्धीनि तत्संधात निष्पन्नास्तु पुस्तका वस्त्राणिप्फण्णे इत्यन्ये ।
अनुयोगद्वार सूत्र हारिभद्रो टीका ९४८
[भ० महावीर की परम्परा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org