Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्तसूरि का जीवन ]
११ - राजोली
१२ —रूणावती
१३ - मेदनीपुर
१४ - जोगणीपुर
१५ - विराटपुर
१६ - गोवीन्दपुर
१७- चन्द्रावती
१८ - शिवपुरी
१९ - पाल्हिका
२०- स्तम्भनपुर
२१- भरोंच
२२- वर्द्धमानपुर
२३- राजपुर २४-करणावती २५- सोपारपट्टन
२६--भद्रपुर २७ - भोजपुर २८ - खरखोट
२९ त्रीपुर
३० -- हापी
३१ - डामरेल
३२- नरवर
३३- मारोटकेट
के बाप्पनाग
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४- डिडूपुर ५ - फलवृद्धि
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के चोरड़िया०
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सुचंति गौ
विरहट गौ०
श्रेष्ट गौ०
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कुलभद्र गौ०
श्री श्रीमाल
आदित्यनाग०
भाद्र गौ
करणाट गौ०
लुंग गौ०
लुंग गौ०
मल्ल गौ०
सुघड़ गौ०
लघुश्रेष्टि
डिडू गौ
प्राग्वदवंशी
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के श्रीमाल वंशी
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श्रीश्रीमाल गौ०
१ - माडव्यपुर से डिहूगोत्री शाह
२ - मेदनीपुर से करणाटगौत्री शाह ३ - रुणावती
से चिंचटगौत्री शाह
उपकेशवंश एवं महाजन संघ के अलावा भी पास पुरुष एवं स्त्रियों ने गहरी तादाद में दीक्षा ली थी साध्वियों अनेक प्रान्तों में विहार कर रहे थे ।
शाह
से बलाहगोत्री शाह से चाड़गौत्री शाह
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रावल ने
रामा ने
रांगा ने
सारंग ने
गुणपाल ने
सुलना ने
नारा ने
सरवण ने
संगणने
साश ने
मोटा ने
मेकरण ने
माल्ला ने
लाखण ने
लाला ने
करमण ने
धन्ना ने
[ ओसवाल संवत् ८८० - ९२०
दीक्षा
सूरि
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सालग ने
धंधल ने
धूरड़ ने
डाबर ने
बाल्हण ने
फागुं ने
श्राखा ने
वागा ने
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भूता ने कई प्रान्तों में सूरिजी एवं आपके शिष्य समुदाय के यही कारण है कि आपके शासन में हजारों साधु
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आचार्य देव के शासन में तीर्थों के संघादिसद कार्य
कालिया ने
श्रीजय का संघ निकाला
पुनड़ने
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[ सूरिजी के शासन में तीर्थों के संघ
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