Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य देवगुप्त सूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८८०-१२०
पाव
८-लासोड़ी के नाहटा जाति शाह पाता के बनाये । मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई ९-रूणावती के गोलेचा जाति , पेथा के
श्रादि. १०-दादोती के रांका जाति
,, ठाकुरसी के
शान्ति ११-पोतनपुर के भद्रगोत्रीय
खीवसी के
नेमिनाथ १२-खीखोड़ी के भूरिगोत्रीय
राजड़ा के
महावीर १३-उच्चकोट के कुमटगोत्रीय ___ भादू के १४-चोट के करणाट गौर जिनदेव के १५-कालोड़ी के सुचंति गौ०
नानग के १६-नागपुर के डिडू गौत्री० पोलाक के
चन्द्रप्रभ १७-उपकेशपुर के श्रेष्ठिगौत्री०
हरपाल के
वासुपूज्य १८ - देवपट्टन के भाद्रगोत्रीय
भाद के
अजित १९-प्राघाट के तप्तभट्ट गो. ऊकार के
महावीर २०-श्रीनगर के प्राग्वट गौ०
पारस के २१- शालीपुर के प्राग्वट गौत्री आनन्द के २२-जागोड़ा के श्री श्रीमाल गौर , आखा के , श्री सीमंधर ,, २३-चेनापुर के श्रीष्टिगोत्री , चिंचगदेव , नन्दीश्वर पर , २४-पोलीसा के पोकरणा जाति , फूलाणी के , महावीर ,
इत्यादि यह तो केवल नाममात्र वंशावलियों पट्टावलियों से ही लिखा है पर उस जमाने के जैनियों की मन्दिर मूर्तियों पर इतनी श्रद्धा भक्ति और पूज्य भाव था कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिन्दगी में छोटा बड़ा एक दो मन्दिर बना कर दर्शन पद की आराधना अवश्य किया करता था यही कारण था कि उस समय उच्च २ शेखर और सुवर्णमय दंड कलस वाले मन्दिरों से भारत की भूमि सदैव स्वर्ग सदृश चमक रही थी।
प्राचार्य देवगुप्तसूरि एक महान् युगप्रवर्तक युगप्रधान आचार्य हुए हैं इन्होंने ४० वर्ष के शासन में जो शासन के कार्य किये हैं उनको वृहस्पति भी कहने में समर्थ नहीं है। यह कहना भी अतिशय युक्ति पूर्ण न होगा कि उस विकट परिस्थिति में जैनाचार्यों ने जैन धर्म को जीवित रखा था कि आज हम मुख-पूर्वक जैन धर्म की आराधना कर रहे हैं ऐसे महान् उपकारी आचायों का जितना हम उपकार माने थोड़ा है मैं तो ऐसे महापुरुषों को हार्दिक कोटि कोटि वार धन्यवाद देता हूँ एवं वन्दन करता हूँ।
चौंतीसवे पट्टधर देवगुप्तसरि, सूरि सूरिगुण भूरि थे।
पूर्वधर थे ज्ञान दान में कीर्ति कुवेर सम पूरि थे । देववाचक को दो पूर्व दे पद क्षमाश्रमण प्रदान किया।
करके आगम पुस्तकारूढ़, जैन धर्म को जीवन दिया ।
इतिश्री भगवान पार्श्वनाथ के ३४वें पट्ट पर आचार्य देवगुप्त सूरि महा प्रभावी प्राचार्य हुए । Jain Education Engional
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PARAMPARAN
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