Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
View full book text
________________
वि० सं० ५२० - ५५८ वर्ष 1
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
उन घातकी लोगों के साथ मिल गया । जब देवी के सामने राजा की बलि देने की तैयारी हुई तो मैना के वेश वाले मंत्री ने कहा कि जिसकी बलि दी जाती है उस के सब गोपाग तो देख लिये हैं या नहीं ? यदि कोई अंगोपांग खण्डित हुआ तो देवी कोप कर सव मार डालेगी। बस इतना सुनकर राजा का शरीर देखने लगे तो उसकी एक अंगुली कटी हुई पाई तब सबने कहा कि इस खण्डित पुरुष की बलि देवीको नहीं दी जा सकती है इसको जल्दी से निकाल दो । बस फिर तो क्या देरी थी राजा को शीघ्र ही हटा दिया । जब राजा अपनी जान बचाने की गरज से देवी के मन्दिर से चूपचाप चल पड़ा तथा अवसर का जान मंत्री भी किसी बहाने से as से निकल गया और आगे चल कर वे दोनों मिल गये । राजाने कहा मंत्री तू ने आज मेरी जान बचाई है। मंत्री ने कहा नहीं हजूर 'जो होता है वह अच्छे के लिये ही होता है' राजाकी अकल ठीकाने गई और नगर में आकर मंत्री को एकलक्ष सुवर्णमुद्रिका इनाम में दी । ठीक है दुखी लोगों का समय ऐसी बातों में ही व्यतीत होता है । सारंग ने कहा महानुभावों ! आप ठीक समझ लीजिये कि 'जो होता है वह अच्छा के लिये है' इस पर आप विश्वास रक्खें यह आपकी कसौटी परीक्षा का समय है । जहाज के सब लोगों ने सारंग के कहने पर विश्वास कर लिया और यह देखने की उत्कण्ठा लगने लगी कि देखें क्या होता है ? - थोड़ी देर हुई कि उपद्रव ने और भी जोर पकड़ा अब तो लोग विशेष घबराये । सारंग ने सोचा कि धन्य है संसार त्यागियों साधुओं को कि जो संसार की तृष्णा त्यागकर व दीक्षा लेकर अपना कल्याण कर रहे है। यदि मैं भी दीक्षा ले लेता तो इस प्रकार का अनुभव मुझे क्यों करना पड़ता यद्यपि मुझे तो इस उपद्रव से कोई नुकसान नहीं है कारण यदि इस उपद्रव में धन या शरीर का नाश हो भी जाय तो यह मेरी निजी वस्तु नहीं है तथा इनका एक दिन नाश होना ही है परन्तु विचारे जहाज के लोग जो मेरे विश्वास पर आये हैं; आर्तध्यान कर कमोंपार्जन कर रहे है यद्यपि इस प्रकार के आर्तध्यान से होना करना कुच्छ भी नहीं है पर अभी इनको इतना ज्ञान नहीं है। खैर मेरा कर्तव्य है कि मैं इनकों ठीक समझाऊँ । अतः सारंग ने उन लोगों को संसार की असारता एवं उपद्रव के समय मजबूती रखने के बारे में बहुत समझाया पर विपत्ति में धैर्य रखना भी तो बड़ा ही मुश्किल का काम है इतना ही क्यों पर इस विकटावस्था को देख सूर्यनारायण भी अस्ताचल की ओर शीघ्र पलायन करगया जब एक ओर तो रात्रि के समय अन्धकार ने अपना साम्राज्य चारों ओर फैला दिया तब दूसरी ओर जहाजों का कम्पना एवं चारों ओर गोता लगाना तीसरी ओर किसी धार्मिक देव का अट्टहास्य करना इत्यादि की भयंकरता से सबके कलेजे काम्पने लग गये जब लोगों ने प्रार्थना की कि यदि कोई देव दानव हो तो हम उनके हुक्म उठाने को तैयार हैं ? इस पर देव ने कहा कि तुम लोगों ने जहाजों को चलाया परन्तु प्रस्थान के समय हमारे बल बाकुल नहीं दिया है अत: तुम्हारी किसी की कुशल नहीं है अब तो सब लोग सारंग के पास आये और बलि देने की प्रार्थना की इस पर सारंग ने कहा हम अनेक बार जहाज को लाये और लेगये पर बलि कभी नहीं दी और अब भी नहीं दी जायगी हाँ जिसको बलि की आवश्यकता हो वह हमारे शरीर की बलि ले सकता है देव ने कहा तुम अनेक वार जहाजों को लाये होंगे पर इस रास्ते से जो कोई जहाजों को लाता या लेजाता है वह विना बलि दिये कुशल नहीं जाता है अतः अब भी समय है यदि तुम कुशल रहना चाहते हो तो बलि चढ़ा दो । जहाज के लोगों ने कहा सारंग ! यदि एक जीव की बलि के कारण सब जहाज के लोग सुखी होते हों तो आपको हट नहीं करना चाहिये और इस कार्य में आप लोगों को पाप लगने का भय हो तो
1. समुद्र में सारंग की कसोटी का समय ]
Jain Education Intonal
For Private & Personal Use Only
८६७ www.jainelibrary.org