Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ४२४---४४० वए ।
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
-स्वसमय पर समय अर्थात् स्वमत परमत के सर्व शास्त्रों का जानकर हो कि प्रश्न करने वाले को अपने शास्त्रों से या उनके शास्त्रों से समझा सके
३-पढ़ा हुआ या सुना हुआ ज्ञान को बार वार याद करे यानि कभी भुले नहीं । ४-उदात अनुदातादि शब्दों को शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण करे ।
३-शीर सम्प्रदाय जिसके चार भेद १--प्रमाणपेत शरीर अर्थात् न घणा लम्ब, ओच्छा स्थुन कृश हो पर शोभानिय हो । २-दृढ़ संहनन शरीर कमजोर न हो शिथिल न हो पर मजबूत हो । ३-अजजित अंगोपांग हीन जैसे कांना अन्धा बेहरा मुकादि न हो। ४-लक्षणवान् हस्तपदादि में शुभ रेखा शुभ लक्षण वगैरा हो ।
४-वचन सम्प्रदाय-जिसके चार भेद १--आदय वचन-वचार निकलते ही सब लोग आदर के साथ प्रमाण करे । २-माधुर्य सुस्वर कोमल और गर्भिय वचन बोले कि सब को प्रिय लगे। ३-राग द्वेष मर्म कठोर अप्रिय वचन नहीं बोले । ४- स्पष्ट-ऐसा बनन बोले कि सब सुनने वालों के समझ में आजाय ।
५-वाचना सम्प्रदाय-जिसके चार भेद १- योग्य शिष्य-विनयवान को आगम वा बना देने का आदेश दे ( वाचना उपाध्यायजी देते हैं ) आगम क्रमशः पढ़ावें जैले आचारांग पढ़ने के बाद सूत्रकृतांग इ यादि ।
२-पहले दी हुई वाचना ठीक धारण करली हो तब आगे वाचना दें। ३-आगम वाचना का महत्व बतला कर शिष्य का उत्साह बढ़ावें। ४-वाचना निरान्तर दे विच में खलेल न करे। सिद्धान्त का मर्म भी समझावे ।
६-मति सम्प्रदाय-जिसके चार भेद १. उग्गह-सुनना। कोई भी बात हनने पर उसको अनेक प्रकार से शीघ्र ग्रहन करना। २. हा विचार करना अर्थात । द्रव्य क्षेत्र काल भाव से उसका विचार करना। ३-- आपाय-निश्चय करना। शंका रहित निःसंदेह निश्चय करना । ४-धारण-स्मृति में रखना। थोड़ा समय या बहुतकाल स्मृति में रखना।
७-प्रयोग सम्प्रदाय-जिसके चार भेद है एभी किसी बादी प्रतिबादी से शास्त्रार्थ करना हो तो पहिले इस प्रकार विचार करना । १-- अपनी शक्ति एवं ज्ञान का विचार करे कि मैं बादी को पराजय कर सकंगा ? ९-क्षेत्र-यह क्षेत्र कैसा है किसकी प्रबलता है राजा प्रजा किस पक्ष के है इत्यादि । ३-भाविफन्त-शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करने पर भी भविष्यों में क्या नतीजा होगा।
आचार्य की आठसम्मद
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