Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ४४०-४८० वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
ही प्रारम्भ कर दीरावे । परन्तु मेरे दील में अर्तध्यान आया करता है इसके लिये क्या करना चाहिये । आप नहीं तो मुझे आज्ञा दे मैं किसी देव देवी की आराधना कर आशा को पूर्ण करूँ ?
सेठजी-मैं जिसको हलाहल जहर (विष ) समझता हूँ भला श्राप मेरे आत्मीय सज्जन है तो आपको इस मिथ्यात्व कर्म की आज्ञा कैसे दे सकता हूँ। आप इस बात पर निश्चय कर लीजिये कि बिना तकदीर में लिखे देवी देवता कुछ भी दे नहीं सकते है हां इधर तो कार्य बनने वाला हो और उधर देवादि का कहना हो तो कार्य बन सके और एक दो ऐसा कार्य बनगया हो तो भद्रिक जनता को विश्वास हो जाता है परन्तु निश्चय तो यही बात है कि पूर्व संचित कर्मानुसार ही कार्य होता हैं दूसरा जैनधर्म का यह मर्म है कि एक पूर्व जन्म की अन्तराय दूसरा मिथ्यात्व का सेवन इससे अधिक कर्म बन्ध का कारण होता हैं यदि अन्तरायोदय के समय धर्ग कार्य विशेष किया जाय तो स्वयं कर्मों की निर्जरा होकर वस्तु की प्राप्ति हो सकती है अतः ओपको तो धर्म करनी विशेष करनी चाहिये । आप नाराज न हो जैसे अच्छा खानदान की स्त्री अपने पति को छोड़ कर घर घर में पति करती फिरे तो क्या उसकी शोभा बढ़ सकती है । इसी प्रकार एक वीतराग देव को छोड़ कर अन्य देव देवियों की मान्यता करनेसे या शिर झूकाने से क्या इस लोक में और परलोक में भला हो सकता है ?
सेठानी-खैर मैं तो संतोष कर लुंगी पर आप से एक अर्ज है कि आप दूसरी सादी करलीरावे कि शायद उसके पुत्र हो जायगा तो भी पीछे नाम तो रह ही जायगा ?
सेठानी- वहा-वहा सेठानी जी ! आपने ठीक सलाहा दी क्या यह भी कभी हो सकता है कि मैं मेरा हृदय एक को दे चुका हूँ फिर क्या कभी दूसरी को दिया जा सकता है जैसे पत्नि को पतिव्रता धर्म पालने का अधिकार है वैसे ही पति को भी पत्निव्रत पालने का अधिकार है । और ऐसा होना ही चाहिये
सेठानी-स्त्रियों के तो एक ही पति है पर पुरुष तो अनेक पत्नियों कर सकते हैं ऐसा बहुत बार शास्त्रों में आता है तो आपको दूसरी सादी करने में क्या हर्ज है।
सेठजी-हाँ शास्त्रों में जाता है और आपन सुनते भी हैं इसके लिये मैं इन्कार नहीं करता हूँ पर कुदरती कानून से देखा जाय तो यह पक्षपात के अलावा कुछ नहीं है जब स्त्रियों के लिये एक पत्नि का नियम है तो पुरुषों के लिये भी ऐसा ही होना चाहिये अगर पुरुष एक से अधिक पत्नि करता है वह सरासर अन्याय करता है क्योंकि एक पुरुष पांच स्त्रियों से सादी करता है वह चार पुरुषों को कुंवारा रखता है। इससे संसार का पतन और व्यभिचार का प्रचार बढ़ता है । दूसरे संसार में प्रभुत्व पुरुषों की ही रह थी उन्होंने स्वार्थ के बस मन मांने कानून बना लिये । यदि स्त्रियों की प्रभुत्व रहती तो क्या स्त्रियां यह कानून न बना लेती कि स्त्रियां अनेक पति बना सकती है। पर पुरुष एक पत्नि से अधिक न बना सके या पुरुष मर जाने पर स्त्री एक दो बार विवाह कर सके पर पुरुष के पनि मर जाने पर वह तमाम जिन्दगी विदुर ही रहे पर दूसरी सादी नहीं कर सके जैसे पुरुषों ने स्त्रियों के लिये नियम बनाये हैं । सेठानी जी। मैंने तो मेरा हृदय एक आपको दे चूका हूँ अब इस भव में तो दूसरी स्त्रियों को हर्गिज नही दिया जा सके भलो । आप सोचिये कि शायद् कोई पुरुष अपना व्रत भंग कर दूसरी सादी कर भी ले तो क्या पुत्र होना
[ सेठजी और सेठानी का संबाद
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