Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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आचार्य कक्कमूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८४०-८८०
भक्त श्रावक है तुम्हारी आज्ञा विनो तो हम शोभन को दीक्षा दे ही नहीं सकते हैं शोभन आज ही क्यों पर आर्बुदाचल आया था और मेरा उपदेश सुनाया था तब से ही कह रहा है कि मुझे दीक्षा लेनी है दूसरे श्राप यह भी सोच सकते हो कि इस कार्य में साधुओं को क्या स्वार्थ है मेरे साधुओं की कोई कमी नहीं है तथा शोभन विना हमारा काम भी रुका हुआ नहीं है कि हम इस के लिये कोशीश करे । हाँ कई भी भव्य जीव अपना कल्याण करना चाहे तो हमारा कर्तव्य है कि हम उसको दीक्षा देकर मोक्षमार्ग की आराधना करावे । मंत्रीश्वर बालाअवस्थामें दीक्षा लेना तो अमूल्य रत्न के तुल्य हैं कारण एक तो इस अवस्था में दीक्षा लेने वाले के ब्रह्मचर्यगुण जबरदस्त होता है दूसरा पढ़ाई भी अच्छी होती है तीसरा चिरकाल संमय पालने से स्वपर आत्मा का अधिक से अधिक कल्याण कर सकता है। तथा शोभन की माता फिक्र क्यों करती है जब कि उसके एक भी पुत्र नहीं था आज सात पुत्र है उसमें एक पुत्र शासन का उद्धार के लिए देदे तो उसके कौनसा घाटा पड़ जाता है और शोभन जाता भी कहाँ है वहाँ तुम्हारे पासनहीं तो तुमारा गुरु के पास रहेंगे । मंत्री - मुग्धपुर के श्रावको ने शासन शोमा के लिए अपने पुत्रों को आचार्य श्री की सेवा में अर्पण कर दिये थे यदि शोभन दीक्षा लेगा तो आपका कुल एवं माता मैना की कुक्षको उज्ज्वाल बना देगा अतः शोभन की इच्छा हो तो तुम विच में अन्तराय कर्म नहीं बान्धना इत्यादि । सूरिजी ने मधुर बचनों से ऐसा हितकारी उपदेश दिया कि यशोदित्य कुच्छ भी नहीं बोल सका। थोड़ी देर विचार कर कहा अच्छा गुरु महाराज मैं शोभन की माता को समझा दूगा और आप श्री व्याख्यान में ऐसा उपदेश दीरावे कि उसका चित शान्त हो जाय । मंत्रीश्वर सूरिजी को बन्दन कर अपने मकान पर आगया ।
सेठानी ने पुछा कि श्राप सूरिजी को कह पाये हो न ? सेठजी ने कहा कि मैं सूरिजी के पास गया था पर सूरिजी ने कहा है कि यदि शोभन दीक्षा लेना चाहता हो तो तुम बिच में अन्तराय कर्म नहीं बन्धना शोभन दीक्षा लेगा तो तुम्हारा कुल और उसकी माता की कुक्ष को उज्ज्वल बना देगा और शोभन जाता कहाँ है तुम्हारे पास नहीं तो गुरु के पास रहेगा इत्यादि । सेठानी ने कहा कि फिर आपने क्या कहा? सेठजी ने कहा मैं गुरु महाराज के सामने क्या कह सकता । सेठानी ने कहा क्या गुरु महाराज शोभन को दीक्षा दे देगे। सेठ ने कहा हाँ उनके तो यही काम हैं । सेठानी ने कहा उनके तो यही काम है पर आप इंकार क्यों नहीं किया । सेठजी ने कहा कि गुरु महाराज ने कहा था कि अन्तराय कर्म नहीं बान्धना । जब श्राप शोभन को दीक्षा लेने दोगे ? सेठजी-हाँ अपने छ पुत्र रहेगा यदि बटवार किया जायगा तो तीनतीन पुत्र दोनों के रह जायगा फिर अपने क्या चाहिये । जब कि तुम्हारे एक भी पुत्र नहीं था शोभन दीक्षा लेगा तो भी छ एवं तीन पुत्र रह जायगा अतः गुरु महाराज कह दिया तो लेने दो शोभन को दीक्षा सेठानी ने सोचा कि सूरिजी ने शोभन पर तो जादू डाल ही था परन्तु शोभन के बाप पर भी जादू डाल दिया ऐसा मालूम होता है तब मैं एकली कर ही क्या सकू।
मंत्रीश्वर ने मन्दिर की प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकलवाया जो वैशाख शुक्ल ३ अक्षय तृतीय के दिन मुकर्रर हुआ और उस दिन ही शोभन की दीक्षा का मुहूर्त निकला बस । शिवपुरी में जहाँ देखो वहाँ शोभन के दीक्षा की ही बातें हो रही थी तथा इनके अनुकरण में कई नर नारी दीक्षा की तैयारियाँ भी करने लगे इधर मन्त्रीश्वर ने प्रतिष्ठा एवं पुत्र की दीक्षा के लिये आस पास ही नहीं पर बहुत दूर दूर आमन्त्रण पत्रिकाए भेजवादी जिससे क्या साधु साध्वियाँ और श्रावक श्राविकाएँ खुब गेहरी तादाद में शिवपुरी की शोभन की दीक्षा और प्रतिष्ठा का मुहूर्त ]
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