Book Title: Bhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Author(s): Gyansundarvijay
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
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वि० सं० ४००-४२४ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
रिषभ
जैसिंघने
"
७-त्रिभुवनपुर के सुघड़गौ. शाह सुरजणने भ० महावीर म० ८-विरशाली के लुंगगौ०
होनाने ,
" " ९-पुनाकोट के अंष्टिगौ०
करणाने १०-रेणुकोट के बाप्पनाग
रावलने ११-जानाकोट के अदित्यनाग
रामाने १२-परोली के लुंगगोत्री
स्वंगारने
धमक १३- मथुरा के भाद्रगौ०
भैराने
शान्ति १४- कपीलवस्तु के कुमटगौ.
रोड़ाने
सीमंधर १५-विशाला के चिंचटगौ०
कानड़ने
पद्यनाभा १६-खण्डगिरि बाप्पनाग०
लाधाने
महावीर १७-तोसली श्रष्टिगो०
फुवाने १८-चासोर सुचंतिगौ० १९--मावोली डिडुगौ०
बालाने , पार्श्व २८-बनारस कनोजिया०
पेथाने २१-टेलीपुर के चिंचड़गौ०
मगतुलाने , २२-माण्डवदुर्ग के चोरलिया० तोलाने २३-दसपुर के चरडगौ०
जोंगाने
श्रादीश्वर २४-खापोटी के मंत्री
__ यशघरने ,
पार्व, २५-सापोटी श्रादित्य
लछमणने २६-शाकम्भरी के श्रष्टिगी०
विजाने , नेमि " " २७-पाल्हिका वाप्पनाग०
भोलाने
मल्ली २८-रत्नपुर के बलाहगौ०
देवाने , महावीर , " २९-- रणस्थम प्राग्वट.
चुडाने , सीमंधर ३०-चरपटनगर के प्राग्वट०
खुमाने , पार्श्व ३१-चन्द्रावती के श्रीमाल
" खीवाने
, चंद्र इनके अलावा बहुत से घर देरासरों की भी प्रतिष्ठा करवाई थी जिन्हों का उल्लेख वंशावलियों पट्रावलियों वगैरह चरित्र ग्रन्थों में मिलता है पर स्थानाभाव उन सबका उल्लेख करने में हम असमर्थ हैं केवल नमूना मात्र की नामावली लिख दी है पाठक अनुमोदन कर पुन्योपार्जन करें। एक तीस पट्टसरि शिरोमण, रत्नप्रभ उद्योत किया ।
षट् दर्शन के थे वे ज्ञाता, ज्ञान अपूर्व दान दिया ॥ सिद्ध हस्त अपने कामों में जैन ध्वजा फहराया था ।
देश-देश में धवल कीर्ति, गुणों का पद न पाया था । इति श्री पार्श्वनाथ के ३१ ३ पट्टधर प्राचार्य रत्नप्रभसूरि महन् आचार्य हुए ।
[ आचार्य श्री के शासन में मन्दिरों की प्रतिष्टाएँ For Private & Personal Use Only
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