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शुक्लध्यान उत्पन्न होने पर यथाख्यात चारित्र उत्पन्न होता है। शुक्लध्यान अर्थात् केवल खुद के आत्म स्वरूप का ही ध्यान।
यथाख्यात चारित्र के पूर्ण होने के बाद केवलज्ञान उत्पन्न होता है। 'आत्मा क्या है', पूर्ण रूप से इसका लक्ष्य बैठ जाना, वह यथाख्यात चारित्र है। अर्थात् जैसा है वैसा चारित्र। वह सम्यक् चारित्र से उच्च है और वीतराग चारित्र से ज़रा सा ही कम है।
सम्यक् चारित्र अर्थात् गिरता है और खड़ा होता है, गिरता है और खड़ा होता है और यदि गिरना ही बंद हो जाए तो वह यथाख्यात चारित्र।
केवलचारित्र कोई देख नहीं सकता। वह इन्द्रियगम्य नहीं है, ज्ञानगम्य है। सम्यक् चारित्र को देखा जा सकता है।
इस प्रकार दादाश्री मोक्ष के चारित्र का यथार्थ विवरण देते हैं। कपड़े बदलने को चारित्र नहीं कहा गया है, मोक्ष का चारित्र स्थूल नहीं, सूक्ष्म है। पहले सम्यक् चारित्र उसके बाद यथाख्यात चारित्र और अंत में केवलचारित्र, जो कि केवलज्ञान सहित है और उसके बाद तो कुछ ही समय पश्चात मोक्ष में चला जाता है!
[6] निरालंब लोग भयंकर दुःख भोगते हैं लेकिन किस आधार पर जी रहे हैं ? इन सब से तो मैं बड़ा हूँ न! इस आधार पर। कोई अहंकार के आधार पर, तो कोई रूप के आधार पर, तो कोई रिश्तेदारों के आधार पर, तो कोई विषय के आधार पर जी रहा है ! देह भोजन से जीवित रहता है लेकिन यह मन ऐसे अवलंबनों पर जीवित है। ये सभी टेम्परेरी अवलंबन हैं। सनातन का अवलंबन ही खरा अवलंबन है। निरालंब! सिर्फ ज्ञानी ही निरालंब होते हैं। उन्हें किसी प्रकार का अवलंबन नहीं है, मन का आधार, पैसों का आधार वगैरह इन सब का अवलंबन नहीं है। मन का आधार, पैसों का आधार वगैरह सभी नाशवंत आधार हैं।
फॉरेनर्स को आधार की बहुत नहीं पड़ी होती। डिवॉर्स हो जाए तो दूसरी। अपने यहाँ तो निराधार हो जाते हैं !
महात्माओं को शुद्धात्मा का आधार मिला है, इसीलिए मोक्ष का
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